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Water crisis: पानी की कमी से भारत की अर्थव्यवस्था को खतरा!

मुंबई के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति इतनी दयनीय है कि महिलाओं और बच्चों को पानी लाने के लिए एक मील से अधिक की दूरी तय करनी पड़ती है।

Last Updated- July 04, 2024 | 4:01 PM IST
Water crisis

नई दिल्ली की विवेकानंद कैंप झुग्गी में, लोगों को दिन में सिर्फ दो घंटे खारा पानी मिलता है। वहीं, हर व्यक्ति को पीने और खाना बनाने के लिए केवल एक बाल्टी अतिरिक्त पानी मिलता है।

राजस्थान के कुछ सूखे इलाकों में तो हालात और भी खराब हैं, जहां चार दिन में केवल एक घंटे के लिए नल से पानी आता है। मुंबई के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति इतनी दयनीय है कि महिलाओं और बच्चों को पानी लाने के लिए एक मील से अधिक की दूरी तय करनी पड़ती है।

बेंगलुरु जैसे बड़े शहर भी इस समस्या से जूझ रहे हैं, जहां इस साल टैंकरों से पानी पहुंचाना पड़ा। दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाले लोगों को रोजमर्रा के कामों के लिए भी पानी की किल्लत झेलनी पड़ती है। हालांकि यह समस्या नई नहीं है, लेकिन इस साल की भीषण गर्मी ने स्थिति और बिगाड़ दी है।

नदियां और तालाब सूख गए हैं, और भूजल स्तर गिर गया है। इसका असर खेती, उद्योग और खाद्य मुद्रास्फीति पर पड़ रहा है। गंदे पानी से हर साल लाखों लोगों की जान जा रही है। यह समस्या न केवल लोगों के जीवन को प्रभावित कर रही है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डाल रही है।

पानी की कमी से कृषि और उद्योग पर पड़ रहा असर

भारत में बढ़ती पानी की समस्या को देखते हुए, सरकार और प्राइवेट सेक्टर इस संकट से निपटने के लिए गंभीर प्रयास कर रहे हैं। पानी बचाने, इस्तेमाल किए गए पानी को फिर से उपयोग में लाने और खासकर कृषि क्षेत्र में मानसून पर निर्भरता कम करने पर फोकस किया जा रहा है। मूडीज़ जैसी रेटिंग एजेंसी ने चेतावनी दी है कि पानी की कमी भारत की आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकती है, जो वर्तमान में दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ है।

पानी की कमी से कृषि उत्पादन और औद्योगिक गतिविधियां बाधित हो सकती हैं, जिससे खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और लोगों की आय घट सकती है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने एक बड़ा लक्ष्य रखा है, जिसके तहत 2030 तक इस्तेमाल किए गए पानी के 70% हिस्से को पुनः उपयोग में लाने की योजना है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारी कृष्णा एस. वत्स ने हाल ही में कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्यों की जानकारी दी है। इन लक्ष्यों के तहत भारत सरकार ने पानी की कमी की समस्या से निपटने के लिए योजना बनाई है। इस योजना के तहत भूजल और नदियों तथा झीलों से निकाले जाने वाले पानी की मात्रा को कम किया जाएगा। अभी यह मात्रा दुनिया में सबसे ज्यादा है, इसे आने वाले दशक के अंत तक 66 प्रतिशत से घटाकर 50 प्रतिशत से कम करने का लक्ष्य रखा गया है।

सरकार और प्राइवेट सेक्टर की जल संरक्षण योजनाएं

इस साल गांवों में एक कार्यक्रम शुरू किया जाएगा, जिसमें किसानों को यह बताया जाएगा कि उनके इलाके में पानी की उपलब्धता के हिसाब से कौन सी फसलें उगाना बेहतर रहेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही आदेश दे दिया है कि देश के सभी 785 जिलों में कम से कम 75 तालाबों का निर्माण या मरम्मत का काम कराया जाए।

सरकार का कहना है कि 83,000 से ज्यादा तालाबों पर काम शुरू हो चुका है या पूरा हो चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन तालाबों से जमीन के नीचे पानी का स्तर बनाए रखने में मदद मिलेगी।

मोदी सरकार ने 2019 में लगभग 50 अरब डॉलर की योजना शुरू की थी, जिसका लक्ष्य हर ग्रामीण घर तक नल का पानी पहुंचाना है। सरकार का कहना है कि अब तक 19 करोड़ 30 लाख से ज्यादा ग्रामीण परिवारों में से 77 फीसदी को इस योजना का लाभ मिल चुका है, जबकि पांच साल पहले यह संख्या सिर्फ 17 फीसदी थी। हालांकि, गांवों के लोगों और विशेषज्ञों का कहना है कि सभी नलों में अभी भी पानी नहीं आता है।

वत्स ने कहा कि पानी का संरक्षण अब बहुत जरूरी हो गया है। उन्होंने बताया कि बिना पानी के नल सूखे रह सकते हैं। भारत अपने 1.42 अरब लोगों और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए मानसून पर बहुत निर्भर है। चावल, गेहूं और गन्ना जैसी फसलें कुल पानी का 80% से ज्यादा इस्तेमाल करती हैं। मानसून अनिश्चित होता है और शहरीकरण के कारण बारिश का पानी समुद्र में बह जाता है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 2031 तक घटकर 1,367 घन मीटर रह जाएगी। 2011 से ही भारत ‘जल तनाव’ की स्थिति में है। विज्ञान और पर्यावरण केंद्र के दिपिंदर सिंह कपूर ने कहा कि अब हर साल पानी का संकट होता है और यह पहले से ज्यादा गंभीर है। हालांकि, कुछ जगहों पर प्राइवेट कंपनियां इस समस्या का समाधान कर रही हैं।

प्राइवेट सेक्टर के प्रयास और भविष्य की चुनौतियां

नागपुर में, विश्वराज ग्रुप ने 2020 में 100 करोड़ डॉलर का एक प्लांट बनाया जो रोज़ 200 मिलियन लीटर गंदे पानी को साफ करता है। इससे 190 मिलियन लीटर शुद्ध पानी निकलता है जो बिजली घरों को बेचा जाता है। कंपनी के संस्थापक अरुण लखानी ने कहा कि इससे बचा हुआ ताजा पानी अगले 35 सालों तक शहर की बढ़ती आबादी के लिए काफी होगा।

कुछ उद्योग अपने पानी के इस्तेमाल को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। टाटा स्टील और जेएसडब्ल्यू स्टील इसके लिए योजना बना रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि घरों में इस्तेमाल होने वाले 90% पानी को फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है।

लेकिन बड़े शहरों में पानी की सप्लाई और गंदे पानी के शोधन की व्यवस्था ठीक नहीं है। मोदी सरकार शहरों में गंदे पानी के शोधन की क्षमता बढ़ा रही है। 2021 से 2026 के बीच, सरकार पानी के समान वितरण, गंदे पानी के पुन: उपयोग और जल स्रोतों की मैपिंग के लिए लगभग 36 अरब डॉलर खर्च करने की योजना बना रही है।

अर्ध-शुष्क राज्यों में चावल जैसी फसलों की खेती ने बोरवेल के माध्यम से भूजल के अत्यधिक दोहन और पानी के स्तर में भारी गिरावट का कारण बना है। विश्वराज के लखानी ने कहा कि कृषि सबसे बड़ी समस्या है।

हम अभी भी बाढ़ सिंचाई का उपयोग करते हैं, बूंद-बूंद या फव्वारा सिंचाई का नहीं। उन्होंने कहा कि अगर हम खेती में इस्तेमाल होने वाले पानी का सिर्फ 10% बचा लें, तो यह सभी भारतीय शहरों की पानी की समस्याओं का समाधान कर देगा।

आपदा प्रबंधन अधिकारी वत्स ने बताया कि सरकार इस साल पानी के उपयोग पर एक राष्ट्रव्यापी ग्रामीण कार्यक्रम लागू करने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि हर गांव के लिए पानी का बजट तय करना होगा – कितना पानी उपलब्ध है, सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिए कितना पानी इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसी के आधार पर यह तय होगा कि किस तरह की फसलें उगाई जाएंगी।

किसानों के विरोध के बारे में पूछे जाने पर वत्स ने कहा कि कोई दूसरा विकल्प नहीं है। पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है और एक समय ऐसा आएगा जब बोरवेल फेल हो जाएंगे। (रॉयटर्स के इनपुट के साथ)

First Published - July 4, 2024 | 4:01 PM IST

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