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थोक मुद्रास्फीति रिकॉर्ड के करीब

Last Updated- December 11, 2022 | 7:46 PM IST

थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित मुद्रास्फीति दर मार्च में बढ़कर मौजूदा 2003-04 मुद्रास्फीति शृंखला में दूसरे सर्वाधिक स्तर पर पहुंच गई। ऐसा रूस-यूक्रेन के बीच बढ़ते टकराव के कारण जिंस कीमतों में आई तेजी के कारण हुआ है।  
उद्योग विभाग की ओर से आज जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक थोकमूल्य मुद्रास्फीति की दर 14.55 फीसदी के साथ मार्च महीने में चार महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई जो पिछले वर्ष नवंबर में दर्ज किए गए रिकॉर्ड 14.87 फीसदी के स्तर से मामूली पीछे है। मार्च के आंकड़े आने के बाद समूचे वित्त वर्ष 2022 में डब्ल्यूपीआई दो अंक में रही। पूरे वित्त वर्ष में औसत मुद्रास्फीति 12.96 फीसदी रही जो 30 वर्षों में सर्वाधिक है।   
यूक्रेन पर रूस द्वारा धावा बोले जाने से खाद्य और जिंस कीमतों पर दबाव बढ़ गया है जिससे मजबूर होकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को अपने उदार रुख का पुनराकलन करना पड़ा। इसी महीने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों में तो कोई बदलाव नहीं किया लेकिन संकेत दिए कि वह अब वृद्घि को प्रोत्साहन देने के ऊपर मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने को प्रमुखता देगा। रिजर्व बैंक नीतिगत उद्देश्यों के मद्देनजर खुदरा मुद्रास्फीति पर नजर बनाए रखता है। रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2023 के लिए अपने वृद्घि अनुमान को संशोधित कर 7.8 फीसदी से कम कर 7.2 फीसदी कर दिया जबकि वर्ष भर के अपने मुद्रास्फीति अनुमान को 4.5 फीसदी से बढ़ाकर 5.7 फीसदी कर दिया। रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति का अनुमान कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल मानकर दिया है।  
पिछले हफ्ते जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि देश की खुदरा मुद्रास्फीति मार्च में बढ़कर 6.95 फीसदी के साथ 17 महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई जिसकी वजह से यह लगातार तीसरे महीने रिजर्व बैंक की उदार सीमा से ऊपर बनी हुई है। बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा अर्थशास्त्रियों पर कराए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक बढ़ी हुई मुद्रास्फीति के कारण रिजर्व बैंक नीतिगत दर में वृद्घि की शृंखला शुरू कर सकता है जिसकी शुरुआत जून की नीतिगत समीक्षा से हो सकती है।
मार्च के दौरान थोकमूल्य खाद्य मुद्रास्फीति नरम होकर क्रमिक रूप से 8.06 फीसदी पर आ गई वहीं सब्जियों की कीमत वृद्घि 19.88 फीसदी के साथ उच्च स्तर पर बनी रही। गैर-खाद्य वस्तुओं में कच्चे पेट्रोलियम में मार्च महीने में 83.56 फीसदी की जबरदस्त वृद्घि हुई जिसके कारण उस महीने ईंधन मुद्रास्फीति की दर 34.52 फीसदी पर पहुंच गई।   
विनिर्मित मूल्य मुद्रास्फीति दर मार्च में दो महीने के अंतराल के बाद 10.71 फीसदी के साथ लौटकर दो अंक में आ गई। ऐसा इसलिए हुआ कि खाद्य तेल और आम धातुओं की कीमतों में क्रमश: 16.06 फीसदी और 25.97 फीसदी की वृद्घि हुई। उतार चढ़ाव वाले खाद्य और ईंधन वस्तुओं को छोड़कर प्रमुख मुद्रास्फीति मार्च में बढ़कर 10.9 फीसदी पर पहुंच गई जो फरवरी में 10 फीसदी रही थी।
इंडिया रेटिंग्स में प्रधान अर्थशास्त्री सुनील कुमार सिन्हा ने कहा कि चूंकि बढ़ती इनपुट, परिवहन और लॉजिस्टिक लागतों के कारण विनिर्माताओं के मार्जिन पर दबाव बना रहा है लिहाजा वे इसका बोझ अपने आउटपुट कीमतों पर डाल रहे हैं जिससे विनिर्मित वस्तुओं के दाम में इजाफा हो रहा है।
उन्होंने कहा, ‘इनपुट खासतौर पर कच्ची सामग्रियों की उच्च लागत रूस और यूक्रेन के टकराव की वजह से भड़क गई है। चूंकि यह टकराव जल्द समाप्त होता नजर नहीं आ रहा है ऐसे में वैश्विक आपूर्ति शृंखला में बाधा के कारण उपजे मुश्किलों और अनिश्चितताओं से घरेलू थोक मूल्य मुद्रास्फीति पर दबाव बना रहेगा।’     
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि पिछले महीने के मुकाबले मार्च में डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति में आई उछाल में सबसे बड़ा योगदान कच्चे तेल की कीमतों में उछाल है।  

First Published - April 19, 2022 | 12:42 AM IST

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