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रैनबैक्सी की दवा : फार्मा में अधिग्रहण की हवा

Last Updated- December 07, 2022 | 5:43 AM IST

भारत की प्रमुख फार्मा कंपनी रैनबैक्सी लेबोरेटरीज के अधिग्रहण के लिए गहमागहमी जारी है।


कंपनी के प्रमोटरों की हिस्सेदारी खरीदने की पेशकश रखने वाली जापान की दवा कंपनी दायची सांक्यो ने रैनबैक्सी की कीमत 8.5 अरब डॉलर तय की है। इससे भारत और दुनिया भर में दवा उद्योग में विलय की गाड़ी को रफ्तार मिलेगी।

पहले भी ऐसे सौदे हो चुके हैं, जहां किसी विदेशी दवा कंपनी ने भारतीय फार्मा कंपनी की बहुलांश यानी काफी बड़ी हिस्सेदारी खरीदी हो (मैट्रिक्स ने 73.6 करोड़ डॉलर में मिलान का अधिग्रहण किया था), लेकिन किसी जेनरिक कंपनी को इनोवेटर कंपनी के हाथों खरीदे जाने का यह पहला मौका है।

यह सौदा बेहद अहम है क्योंकि दुनिया की 25 सबसे बड़ी दवा कंपनियों (देखें दवाओं के दिग्गज) में रैनबैक्सी के अलावा केवल नोवार्तिस ही ऐसी कंपनी है, जो जेनरिक और पेटेंट वाले उत्पादों, दोनों से ही राजस्व प्राप्त करती है। नोवार्तिस अपनी सहायक कंपनी सैंडोज के जरिये जेनरिक दवाओं की मार्केटिंग करती है।

बड़ी फार्मा कंपनियों में फिलहाल 22वें नंबर पर मौजूद जापानी कंपनी दायची के लिए सबसे अहम यह है कि वह जेनरिक बाजार में किस तरह कदम रखती है और रैनबैक्सी के मामले में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उसे इस सौदे से कितना फायदा होगा?

वृध्दि

कैलेंडर वर्ष 2007 में दायची सांक्यो की परिसंपत्ति 7.12 अरब डॉलर थी। पिछले कैलेंडर वर्र्ष के मुकाबले इसमें 4.7 फीसद का इजाफा हुआ था। दूसरी ओर रैनबैक्सी 10 फीसद की बढ़ोतरी कर 1.6 अरब डॉलर तक पहुंच गई?थी। इनोवेटर कंपनियों और जेनरिक कंपनियों की कहानी इससे साफ हो जाती है।

पिछले साल दुनिया भर  के फार्मा बाजार में 6 फीसद का इजाफा हुआ और इसका आकार 712 अरब डॉलर हो गया। इसके उलट जेनरिक क्षेत्र में इजाफे की दर 11 फीसद से भी ज्यादा थी और उसका आकार उसी अवधि में 64 अरब डॉलर हो गया। दो कारोबारी क्षेत्रों में एक साथ आगे बढ़ने की रणनीति दायची सांक्यो के लिए भी उसकी वृद्धि दर बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है।

पहुंच

दायची सांक्यो का कारोबार फिलहाल महज 21 देशों में है और रैनबैक्सी के अधिग्रहण के बाद यह आंकड़ा कम से कम तीन गुना हो जाएगा। दायची को इससे बेहद तेज वृद्धि दर वाले कई उभरते हुए बाजारों में अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा हासिल हो जाएगा, रैनबैक्सी को जापान में तैयार कारोबार मिलेगा। जापान दुनिया के सबसे अधिक संभावना वाले जेनरिक बाजारों में शुमार है।

पीसीजी के रिसर्च प्रमुख रंजीत कपाड़िया ने बताया, ‘जापान के 60 अरब डॉलर के दवा बाजार में इस समय जेनरिक बाजार का महज 5 फीसद हिस्सा है, लेकिन जेनरिक दवाओं को बढ़ावा दे रही जापान सरकार की ओर से मिल रहे समर्थन के कारण अगले 2-3 साल में ही इसमें कई गुना इजाफा होने की संभावना है।’

विनिर्माण, बिक्री और आरऐंडडी

इस सौदे से दायची के परिचालन में दक्षता आ जाएगी। यह दक्षता  एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट (एपीआईएस) देने और दुनिया भर में रैनबैक्सी के 25 विनिर्माण संयंत्रों में तैयार उत्पाद बेचने, क्लिनिकल परीक्षण करने और दुनिया भर में अनुसंधान, बिक्री और मार्केटिंग के मामले में हाथ मिलाने से हासिल होगी।

इससे रैनबैक्सी के लिए भी अनुबंध पर विनिर्माण के मौके बढ़ जाएंगे और उसके राजस्व में इजाफा होने की भी पूरी संभावना रहेगी। एंजेल ब्रोकिंग की अनुसंधान उपाध्यक्ष सरबजीत कौर नागरा कहती हैं, ‘रैनबैक्सी के अधिग्रहण से दायची को बढ़त मिल जाएगी, जिसका इस्तेमाल वह अपने पेटेंट युक्त उत्पादों को भारत और  दुनिया  भर  में उतारने के लिए भी  कर  सकती है।’

इसके अलावा रैनबैक्सी के पास 18 नई एब्रेविएटेड ड्रग आवेदन सबसे पहले देने का अधिकार भी मौजूद है, जिससे इसे 27 अरब डॉलर आकार वाले बाजार में 180 दिन तक अकेले उत्पाद बेचने का मौका हासिल हो जाएगा।

शेयरधारकों को लाभ

दुनिया भर के फार्मा बाजार में रणनीति, फायदे और विलय की गतिविधियां चाहे जैसे भी खेली जाएं, शेयरधारक शिकायत नहीं कर रहे हैं। सबसे पहले रैनबैक्सी के शेयरधारकों की बात की जाए।

पिछले एक साल कंपनी के शेयरों में न के बराबर हलचल थी, लेकिन पिछले 1 महीने, 6 महीने और 1 साल में शेयर क्रमश: 14 फीसद, 35 फीसद और 50 फीसद  चढ़ गए हैं। इस सौदे में इक्विटी शेयरों में तरजीही पेशकश, परिवर्तनीय वारंट और दायची को 20 फीसद का ओपन ऑफर  भी शामिल हैं।

अगर इस सौदे को अमली जामा पहना दिया जाता है, तो जापानी कंपनी को रैनबैक्सी की तकरीबन 50.1 फीसद पूर्णतया तरल पूंजी मिल जाएगी। शेयर धारक हर तीन शेयरों पर एक के लिए ऑफर कर सकेगा। शुक्रवार को शेयरों के 4 फीसद उछलकर 567 रुपये पर पहुंचने के बावजूद निवेशक इन शेयरों के लिए इससे 30 फीसद अधिक यानी 737 रुपये की ही पेशकश करेंगे। 

हालांकि यदि कोई और बोली लगाने की दौड़ में शामिल हो जाता है, तो शेयरधारकों को और भी अच्छी कीमत मिल सकती है। अगर दायची रैनबैक्सी को खरीदने में कामयाब हो जाती है, तो  निवेशकों को ओपन ऑफर स्वीकार लेना चाहिए।

इससे उन्हें जापान के नियंत्रण वाली ऐसी भारतीय कंपनी के साथ चलने का मौका मिल सकता है, जिसके पास 3,000 करोड़ रुपये की नकदी होगी, कोई कर्ज नहीं होगा और भारतत तथा दूसरे देशों में ऑर्गनिक और इनऑर्गनिक विस्तार का मौका भी होगा। दायची को जेनोटेक के शेयरधारकों के लिए ओपन ऑफर देना होगा। यह बायोफार्मास्युटिकल कंपनी है, जिसमें रैनबैक्सी की 47 फीसद हिस्सेदारी है।

कमाई पर असर

विशेषज्ञों का मानना है कि इस सौदे के बाद कैलेंडर वर्ष 2008 में प्रति शेयर कमाई पिछले वर्ष के 19 रुपये के आंकड़े से गिरकर 15 या 16 रुपये रह जाएगी। इसकी वजह अनुसंधान एवं विकास (आरऐंडडी) पर होने वाला ढाई करोड़ डॉलर का खर्च है।

विलय होने के बाद यह अलग हुई आरऐंडडी कंपनी के बजाय मुख्य कंपनी के खाते में ही दिखाया जाएगा क्योंकि आरऐंडडी कंपनी अब खत्म की जा रही है। हाल फिलहाल शेयरों में किसी तरह की हलचल होने की गुंजाइश नहीं है, इसलिए ओपन ऑफर के बाद फायदा उठाने के लिए शेयरधारकों को कम से कम डेढ़ साल तक शेयर अपने पास रखने चाहिए, ताकि उन्हें इस विलय और वृद्धि का पूरा फायदा मिल सके।

कैलेंडर वर्ष 2009 में प्रति शेयर कमाई तकरीबन 30 रुपये तक पहुंचने की संभावना है और 567 रुपये पर (इससे कम अधिग्रहण मूल्य का कोई सवाल नहीं क्योंकि दायची की ओर से यही खुली पेशकश है) भी शेयर कैलेंडर वर्ष 2009 की कमाई से 19 गुना कीमत पर उनपलब्ध होंगे। क्या उन प्रोमोटरों के लिए यह सबसे अच्छा कदम था, जो सोचते हैं कि आनेवाले समय में ज्यादा से ज्यादा अधिग्रहण होगें और बाजार तथा क्षमता में भी विस्तार होगा?

इकलौता विकल्प

विश्लेषकों की मानें, तो यही अकेला विकल्प है। प्राइसवाटरहाउसकूपर्स में फार्मालाइफसाइंसेज के सह निदेशक सुजय शेट्टी कहते हैं, ‘रैनबैक्सी उस हालत में थी, जहां जेनरिक बाजार में कड़ा मुकाबला था। लागत से परेशान होकर वह अपना राजस्व लक्ष्य (कैलेंडर वर्ष 2007 के लिए 2 अरब डॉलर था , लेकिन महज 1.6 अरब डॉलर ही  हासिल कर सकी) भी प्राप्त नहं कर पा रही थी।

इतने बड़े कारोबार वाली कंपनी के लिहाज से मुनाफा काफी कम था।’ विशेषज्ञों के अनुसार इस समझौते से भारतीय फार्मा कंपनियां निश्चित तौर पर फोकस में रहेंगी। लेकिन इस बात से इसकी संभावना बिल्कुल नहीं है कि प्रमोटर्स जल्दबाजी में बिकवाली शुरू कर देंगे। इडलवीज कैपिटल के अमोद  करांजीकर का कहना है कि यह समझौता रैनबेक्सी और प्रमोटरों के सामने मौजूद संकट के मद्देनजर खास था।

एक महत्वपूर्ण बात यह है कि चाहे बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय फर्मा कंपनियों को खरीद रही हो या भारतीय कंपनियां विदेशी कंपनियों को खरीदे, विलय की प्रक्रिया तो देर-सबेर पूरी होनी ही है। अगले पांच वर्षों में बड़ी दवाईओं के एक्सपायर होने की स्थिति में बहुराष्ट्रीय फर्मा कंपनियां राजस्व के स्त्रोतों को ढूंढ पाने में दिक्कत महसूस कर रही है।

उनकी नजर ऐसी कंपनियों पर है जिनके पास विनिर्माण की अच्छी सुविधाएं है, जिससे कि उनके मार्जिन रेट को अच्छे स्तर पर बरकरार रखा जा सके। वाह्र्टन बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर जगमोहन सिंह राजू का मानना है कि जेनरिक कंपनियां भारतीय बाजार में अन्य कंपनियों की पहुंच को आसान बनाने में मदद करेगी लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें विश्व के चुनिंदा बाजारों पर अपना कब्जा जमाने में आसानी होगी। भारतीय जेनरिक कारोबारियों को कारोबार के मूल्यांकन से फायदा है।

रैनबैक्सी की वैश्विक मौजूदगी के चलते इसका कैलेंडर वर्ष 2007 की बिक्री से पांच गुना ज्यादा रकम पर बिकना शेयरधारकों के भरोसे को और पुख्ता करता है। मालूम हो कि कंपनी के शेयर ईबीआईडीटीए से 20 गुना पर खरीदे गए हैं। जबकि दूसरी फार्मा कंपनियों मसलन डॉ.रेड्डीज, सिप्ला और सन फार्मा के पास रैनबैक्सी जैसा विनिर्माण आधार न होने के कारण उनके  शेयरों की कीमत कम रही है।

इस प्रकार,सूची का इशारा भारत की बड़ी कंपनियों की ओर है कि वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ मिलकर उन कंपनियों की ओर ध्यान दें जिनमें प्रमोटर होल्डिंग कम हो और जो बड़ी कंपनियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद और  विस्तार योजना के माकूल हों। लिहाजा, इस सौदे को सलाम कीजिए कि फार्मा शेयरों पर भी निगाह पड़ गई।

दूसरे शेयरों पर प्रभाव

पिछले एक महीने के भीतर संवेदी सूचकांक में 10 फीसद की गिरावट आई है जबकि पिछले एक साल के भीतर महज 8 फीसद का उछाल हासिल किया है। लेकिन हेल्थकेयर सूचकांकों का सूरते-हाल कुछ अलग ही है,जहां इसने पिछले एक महीने के भीतर 6 फीसद का उछाल हासिल किया है,वहीं पिछले एक साल के भीतर इसके शेयरों की कीमत 19 फीसद बढ़ी है।

रैनबैक्सी,सन फार्मा समेत डॉ रेड्डीज के शेयर पिछले 52 हफ्तों की सबसे ऊंची कीमत पर है। जाहिर तौर पर जो निवेशक अपने पोर्टफोलियो में विस्तार चाहते हैं वो ल्यूपिन लैब के शेयरों पर निगाह डाल सकते हैं। इसी तरह दिशमान फार्मा, कैडिला हेल्थकेयर के शेयर भी खासे फायदेमंद हैं। इस समय इन सभी कंपनियों के शेयर ऊंची कीमत पर चल रहे हैं।

First Published - June 16, 2008 | 12:15 AM IST

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