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क्या और भी बुरा समय आना बाकी है?

Last Updated- December 10, 2022 | 6:38 PM IST

छह महीने पहले अनियंत्रित मुद्रास्फीति के बारे में बात की जा रही थी। सालभर पहले जाने-माने अर्थशास्त्री रुझानों के आधार पर कह रहे थे कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृध्दि दर 8 फीसदी से ऊपर रहेगी। लेकिन ये सब बातें अब बड़ी तेजी से बदल गई हैं।
पिछले महीने सरकारी प्रवक्ताओं ने कीमतों में भारी गिरावट यानी अवस्फीति यानी डिफ्लेशन की संभावना को खारिज कर दिया। डिफ्लेशन का मतलब होता कि थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) का सालाना आधार पर 4 प्रतिशत से नीचे रहना। अंतरिम बजट का अनुमान आशावादी माना गया मगर फिर भी यहअनुमान 8 फीसदी से काफी कम था।
चीजें एक बार फिर तेजी से बदल सकती हैं। बदलाव की तेज रफ्तार इस संकट का एक लक्षण है। विश्व एक ही तिमाही में तेजी से गिरकर धरातल पर आ गया है। त्वरित संचार और आसानी से नकदी के हस्तांतरण की दुनिया में चीजें बड़ी तेजी से बदलती हैं, चाहे वह अच्छे के लिए हो या बुरे के लिए।
गिरावट की गति को देखते हुए हम रिकवरी देख सकते हैं, जो प्रत्याशित की तुलना में काफी तेजी से होगी। लेकिन इसके लिए कुछ बातें जरूरी हैं। पहली बात यह है कि सरकार को अपने स्थिर होने का आभास दिलाना होगा। यह स्वयं में एक बड़ी बात है। इसके बिना तो उपभोक्ता भागीदारी के लिए आगे नहीं आएंगे और उनकी भागीदारी आर्थिक सुधार के लिए बेहद जरूरी है।
 
चुनाव प्रक्रिया के दौरान पैदा होने वाली खलबली से शेयर कीमतें प्रभावित होंगी। कोई भी उस निराशा के माहौल में इन्वेंटरी को निकालने के लिए कीमतों में कमी कर सकता है। सेल के सभी बैनर इसी तरह के संकेत दे रहे हैं। रियल एस्टेट डेवलपर भी निराशा के स्तर से जूझ रहे हैं। बैंकों को भी अपना कारोबार पुन: पटरी पर लाने के लिए दरों में कमी लानी होगी। बैंकिंग क्षेत्र की ओर से दरों को अधिक बनाए रखने पर बाजार स्पष्ट रूप से अपनी खीझ का संकेत दे रहा है।
इस बजट की निष्क्रियताओं के बावजूद इसमें कुछ अच्छी बातें भी हैं। यह राहत पैकेज में उत्पाद शुल्क दर कटौती को बरकरार रखने के लिए प्रतिबद्ध है। यह एनएचडीपी, जेएनएनयूआरएम और भारत निर्माण को लेकर भी प्रतिबद्ध है। ये बड़े आकार के ढांचागत कार्यक्रम हैं।
सभी बड़े सरकारी खर्चों की तरह ये कार्यक्रम भी सभी क्षेत्रों में अपेक्षित परिणाम नहीं देंगे। कुशल राज्य सरकारें और अधिक संसाधनों को अपने कब्जे में कर लेंगी और इनका बड़ी कुशलतापूर्वक इस्तेमाल करेंगी। लेकिन मौजूदा माहौल में कोई भी प्रतिबद्ध निवेश सकारात्मक है।
दुर्भाग्यवश, बुनियादी ढांचे की पीपीपी परियोजनाओं के लिए निजी प्रतिबद्धता में काफी विलंब होने की संभावना है और इनके लिए कुछ धन खत्म हो चुका है। अंत में एक अच्छी बात यह होगी कि मेगा स्कीमों की समीक्षा की जाएगी और फिजूलखर्च को काफी हद तक समाप्त किया जाएगा। अनुबंध और परियोजनाएं सस्ती हो सकती हैं, क्योंकि निर्माण लागत में कमी आई है।
 
अगले 4 से 6 महीनों की अवधि की बात करें तो नई सरकार के लिए नया बजट तैयार करने के लिए यह समय काफी मुश्किल भरा होगा। चार से छह महीने का समय यह भी तय करेगा कि मंदी अपने चरम स्तर पर आ गई है या अभी और गहराती जाएगी।
नई सरकार को वाकई कठिन कार्य करना होगा। राजकोषीय घाटे के प्रबंधन के संदर्भ में उसे संभलकर चलने के अलावा हालात के बारे में उपभोक्ताओं में ऐसा विश्वास कायम करना होगा ताकि वे फिर से खर्च करने में दिलेरी दिखाएं। यदि आर्थिक गतिविधि की दर में बदलाव आता है तो उपभोक्ता व्यवहार पर किए गए तमाम अनुमान गलत हो जाएंगे।
इसे लेकर कोई संदेह नहीं है कि मौजूदा मूल्य निर्धारण या शेयर भाव दीर्घावधि के लिए आकर्षक है। लेकिन अगर जल्द बहाली हुई तो ये भाव  मध्यावधि के लिए आकर्षक हैं। ऐसी स्थिति  आई तो आप वर्ष 2010-11 की तुलना में 2009-10 के अंत तक बाजार में सुधार की उम्मीद कर सकते हैं।

First Published - March 2, 2009 | 8:19 PM IST

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