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संपत्ति खोजने की मति

Last Updated- December 07, 2022 | 4:05 AM IST

आपको हम बता रहे हैं कि निवेश किसलिए किया जाता है-परिसंपत्तियों के लिए या फिर परिसंपत्तियों के मद्देनजर।


दोनों की रणनीतियों के बीच एक बड़ा अंतर होता है। मेरी राय में दो प्रकार के निवेशक होते हैं,पहला जो परिसंपत्तियों पर नजर रखते हैं,दूसरे वह जो परिसंपत्तियों के लिए निवेश करते हैं। लिहाजा, जब आप इस पर देखते हैं तो आप पहले ही देर कर चुके हैं।

इस बाबत एक पारंपरिक अवधारणा यह है कि जो सबसे पहले चीजों को देख लेता है या भांप लेता है वह लोनर यानी खुद से चीजों को समझने और बिना किसी की मदद के काम करने वाला होता है। इन लोगों के बाद चीजों को भांपने वाले स्पेक्यूलेटर यानी जैसे संकेत वैसे काम करने वाले होते हैं,जबकि आखिर में चीज समझने वाले लूजर यानी हार का मुंह देखने वाले होते हैं।

लिहाजा, हम कितनी जल्दी चीजों को परखते हुए कदम उठाते हैं, इसी से हम स्पेक्यूलेटर या फिर लूजर की फे हरिस्त  में आते हैं। इस दरम्यान परिसंपत्तियों पर नजर रखते हुए निवेश करने वाली रणनीति के राह में कई मुश्किलें होती हैं। इन मुश्किलों में सबसे पहले है- समय का ख्याल रख पाना, क्योंकि इन पर नजर रखते हुए निवेश करने का मतलब है कि इस काम के लिए काफी समय देना। इन पर नजर रखना खासा समय खपाने वाला होता है।

मसलन भारतीय सेंसेक्स या फिर इसमें लिस्टेड 30 कंपनियों समेत आप डाऊ जोंस पर भी नजर रख सकते हैं। लेकिन इन पर नजर रखने की रणनीति आपको इस बात की स्वीकृति ही नहीं दे सकती कि आप बांड, मुद्रा समेत कमोडिटी जैसी दूसरे प्रकार की संपत्तियों को दरकिनार करते हुए पूरे वैश्विक इक्विटी बाजार को कवर कर सकें। आज के इस जमाने में जहां हॉट मनी एक प्रकार के परिसंपत्ति वर्ग से दूसरे परिसंपत्ति वर्ग समेत एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र की ओर चलता रहता है।

लिहाजा, क्षेत्रीय रणनीति के एक ही सेक्शन पर ध्यान रखने का मतलब है कि आप जोखिम और अनिश्चितता दोनों को न्यौता दे रहे हैं। जाहिर तौर पर हमें इस बात पर कोई आश्चर्य नही होना चाहिए ऐसी स्थिति में हमारा व्यवहार बिल्कुल झुंड में शामिल हिरण की भांति हो जाएगा, जिसे इस बात का पता नहीं होता कि सही दिशा कौन सी होगी और हमें किस ओर रुख करना चाहिए।

खासकर जब किसी संपत्ति का छोटा सा हिस्सा अचानक गति पकड़ लेता है तो हम उस तरफ भागते हैं। यह दूसरी समस्या है, जिसे एक्स फैक्टर के नाम से भी जाना जाता है। इसके लिए आकलनों से भरे बाजार  में पहले से आकलन करना खासा मुश्किल और रुकावट पैदा करना वाला होता है। तीसरी समस्या जो उक्त रणनीति के साथ पैदा होती है, वह है पूर्वाग्रह से ग्रस्त होना।

मसलन मैं एक भारतीय कारोबारी हूं। मैं सिर्फ इंडियन इक्विटी को समझता हूं। मैं पिछले पांच सालों से सिर्फ सोना यानी गोल्ड का कारोबार करता हूं, क्योंकि मेरी समझ सिर्फ इसी में हैं। मैं सिर्फ एक सेक्टर विशेषज्ञ हूं, आदि-आदि। इन सब बातों का मतलब है कि आप किसी प्रकार के पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं और इस मानसिकता को तोड़ना नही चाहते। आप बिल्कुल डैनियल केनमैन की व्यावहारिक मानसिकता का परिचय दे रहे हैं।

इस प्रकार,नोबेल पुरस्कार विजेता खेनमैन के  इनडोमेंट सिद्धांत या तो प्रासंगिक हैं या फिर नहीं तो संपत्ति पर नजर रखते हुए निवेश करने वाली रणनीति ही गलत है। इस सिद्धांत के मुताबिक हमें उन संपत्तियों से लगाव जैसा हो जाता है जिन पर हम लगातार नजर रख रहे होते हैं। हममें से ज्यादातर लोग कमजोर आर्थिक फैसले लेनेवाले और बेवकूफी भरे कदम उठाने वाले होते हैं।

लिहाजा, वैसे सारे प्रारूप और रणनीतियां, जो वैश्विक स्तर पर लागू नहीं हुए होते हैं, भी अपनी भूमिका अदा नही कर पाते। इसी का तकाजा है कि अगर हम वैश्विक संपत्ति के बारे में यह दावा करते हैं कि हमने इसे पूरी तरह से समझ लिया है तो हम मुगालते में हैं और हम बस उस हिस्से की बात कर रहे होते हैं, जो हमारे लिए मुफीद होता है।

दूसरी ओर अगर हम खुद को तेल के कारोबार का विशेषज्ञ समझते हैं,जिसे तेल क्षेत्र के शेयरों की तो पूरी समझ है, लेकिन तेल की कीमतों के उतार-चढ़ाव को समझने में नाकाम हैं या फि र अगर हम सोने की कीमतें सिर्फ रुपये में समझते हैं, डॉलर में हमें इसका कोई भान नहीं या फिर भारतीय सेंसेक्स को समझने के लिए हम रुपये के मुकाबले डाऊ जोंस को ज्यादा तव्वजो देते हैं तो फिर इसका सीधा मतलब है कि हम या तो अपने कौशल को ज्यादा करके आंक रहे हैं या फिर इनको समझने की कवायद में इस्तेमाल होनेवाले उपकरणों या इंस्ट्रूमेंटों के स्तर को ज्यादा अच्छा मान रहे हैं।

जाहिर है कि अगर हम खुद को या फिर अपने कारोबार को सिर्फ अपने देश तक ही सीमित रखते हैं तो फिर निश्चित तौर पर हम घाटे का सौदा कर रहे हैं। खासकर अगर हम चीन, ब्राजील समेत रूस जैसे देशों के साथ कारोबार का साहस नहीं कर रहे हैं तो यह बिल्कुल खुद को सबसे अलग रखने जैसा होगा, जिसका अंजाम कारोबारियों के लिए घातक साबित हो सकता है।

हमारे सहित इन सभी देशों में लगभग समान तरह की कारोबार प्रणालियां ही हैं। लेकिन अगले 15 साल तक खत का मजमूं कुछ और ही रहनेवाला है, इन पूरे सालों के दौरान बाजार तेजी और अनिश्चितता से भरपूर रहेगा,जो हर प्रकार के पूर्वाग्रहों मसलन भौगोलिक, संपत्ति आधारित और कौशल का आंकलन सभी को हटा कर रख देगा। यह बिल्कुल उसी प्रकार का होगा जैसा एक फंड मैनेजर बड़ी साफगोई से मेरे सामने इस बात को स्वीकारता है कि मैं पिछले एक दशक से ज्यादा से बाजार में काम कर रहा हूं, लेकिन सच बात तो यह है कि मैं अब तक बाजार को नहीं समझ पाया हूं।

इनके अलावा दुनिया में ऐसे कम ही निवेशक होते हैं जो अपना निवेश संपत्तियों के लिए ही रखते हैं। यह बिल्कुल उसी प्रकार है, जिस प्रकार कुछ ही मैक्रो फंड होते हैं जो इस श्रेणी के लिए निवेश करते हैं। और चूंकि उनकी संख्या बेहद कम होती है, लिहाजा, इससे वो निवेशक लोनर यानी अकेले अपनी समझ से काम करने वाले में परिणत कर देते हैं। यानी किसी प्रकार के ट्रेंड की ओर बढ़ाने वाले पहले कदम इनके ही होते हैं। इस बाबत जॉन मर्फी की बात खासी प्रासंगिक है। 

संपूर्ण तस्वीर को देखते हुए बाजार एवं परिसंपत्तियों के बीच कारोबार करने वाला इंटरमार्केट एनालिसिस कहलाता है। इसके  तहत तमाम चीजें मसलन कमोडिटी, बांड, मुद्राएं, इक्विटी आती हैं। यह इस बात का वर्णन करता है कि किस कदर बांड शेयरों की कीमतों का रुख तय करते हैं, किस प्रकार कमोडिटी की कीमतें बिल्कुल ब्याज दरों की भांति होती हैं और किस प्रकार डॉलर का कमजोर होना वस्तुओं की कीमतों के लिए एक बेहतर संकेत होता है।

इसी संबंध में स्टैंडर्ड एंड पूअर रैंकिग के प्रमुख वैश्विक रणनीतिकार सैम स्टोवैल अपनी सेक्टर रोटेशन वर्क के सिद्धांत से अर्थव्यवस्था के चक्र को परिभाषित तो करते हैं ही, वे यह भी बताते हैं कि कोई भी आर्थिक क्षेत्र कब काम करता है, कब काम करना बंद करता है।

(लेखक ऑरफेयस कैपिटल के मुख्य कार्यकारी निदेशक हैं।)

First Published - June 8, 2008 | 10:30 PM IST

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