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सरकार से RBI के बजाय बैंकों में नकद शेष रखने की अपील, PSBs ने कहा- CASA का हिस्सा बढ़ाने में मिलेगी मदद

ताजा आंकड़ों के अनुसार 9 अगस्त को सरकार का नकद शेष 2.1 लाख करोड़ रुपये था, जो आम चुनाव के बाद सरकारी खर्च में तेजी आने से कम हो गया।

Last Updated- August 21, 2024 | 11:06 PM IST
Government banks are eyeing new markets to increase deposits, many attractive schemes are being made for opening accounts जमा बढ़ाने के लिए सरकारी बैंकों की नए बाजारों पर नजर, खाते खोलने के लिए बना रहे कई आकर्षक योजना

बैंकों की जमा वृद्धि सुस्त है और कम लागत वाली जमा की हिस्सेदारी घटने के साथ ही ऋण आवंटन भी पिछड़ रहा है। ऐसे में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) ने वित्त मंत्रालय से सरकारी नकदी शेष को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास जमा कराने के बजाय बैंकों के पास रखने का आग्रह किया है जिससे उन्हें चालू और बचत खाता जमा (कासा) का हिस्सा बढ़ाने में मदद मिलेगी।

वर्ष 2021 में सरकार ने केंद्र प्रयोजित योजनाओं के अंतर्गत धन के प्रवाह के लिए संशोधित फ्रेमवर्क (एसएनए-स्पर्श प्लेटफॉर्म) लागू किया था। इसका उद्देश्य राज्यों को जारी किए गए पैसों की उपलब्धता और उपयोगिता की बेहतर निगरानी करना था। इस व्यवस्था के लागू होने के बाद सरकार अपनी नकद शेष बैंकों के बजाय भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा कराने लगी थी।

बैंकरों के अनुसार इससे बैंकों में नकदी का प्रवाह घट गया और परिचालन दक्षता भी प्रभावित हुई है। इसके साथ ही उनकी जमा लागत भी बढ़ गई और शुद्ध ब्याज मार्जिन पर भी असर पड़ा है। बैंकरों ने इस मुद्दे पर सरकार के समक्ष विस्तृत प्रस्तुति दी है और उनके प्रस्ताव पर विचार करने का अनुरोध किया है।

बैंक इस तरह के पैसों को ब्याज वाले बचत खाते में रख रहे थे जबकि आरबीआई नकद शेष पर किसी तरह के ब्याज का भुगतान नहीं करता है। इससे सरकार की आय को भी नुकसान हो रहा है। इस हफ्ते वित्त मंत्री के साथ हुई बैठक में बैंकरों ने सरकार की नकद शेष को संबं​धित बैंकों में रखने का प्रस्ताव दिया था जिससे उन्हें मौजूदा तरलता की कमी से निपटने में मदद मिलेगी।

ताजा आंकड़ों के अनुसार 9 अगस्त को सरकार का नकद शेष 2.1 लाख करोड़ रुपये था, जो आम चुनाव के बाद सरकारी खर्च में तेजी आने से कम हो गया। बैंकों ने तर्क दिया है कि संशोधित फ्रेमवर्क से केंद्रीय बैंक के तरलता प्रबंधन पर भी असर पड़ता है क्योंकि यह प्रणालीगत तरलता को प्रभावित करता है।

पिछले एक साल में ज्यादातर बैंकों की कुल जमा में कम लागत वाली जमा (चालू और बचत खाता जमा) की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। उदाहरण के लिए चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के अंत में भारतीय स्टेट बैंक का कासा अनुपात घटकर 40.7 फीसदी रह गया जो पिछले वित्त वर्ष की समान अ​व​धि में 42.88 फीसदी था।

आरबीआई के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार बैंकों की ऋण वृद्धि 13.7 फीसदी बढ़ी है जबकि जमा वृद्धि 10.6 फीसदी रही। आरबीआई के गवर्नर श​क्तिकांत दास और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, दोनों ने बैंकों को ऋण वृद्धि के लिए संसाधन जुटाने के लिए जमा बढ़ाने के लिए कहा है।

इस हफ्ते सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुखों के साथ बैठक के दौरान वित्त मंत्री ने भी बैंकों को विशेष अ​भियान चलाकर जमा जुटाने के ठोस प्रयास करने के लिए कहा था।

इस बीच आरबीआई ने बैंकों को कम अव​धि वाली कॉर्पोरेट जमा पर ज्यादा निर्भर रहने की प्रवृ​त्ति पर आगाह किया है क्योंकि इससे संरचनात्मक तरलता की समस्या हो सकती है।

ज्यादातर बैंकों ने हाल के समय में अपनी जमा दरें बढ़ाई हैं और जमाकर्ताओं को ऊंची दरों के लिए नई योजनाएं शुरू की हैं। कोष की लागत बढ़ने से आने वाली तिमाहियों में बैंकों के शुद्ध ब्याज मार्जिन पर असर पड़ सकता है।

First Published - August 21, 2024 | 10:55 PM IST

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