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श्रीलंका में वित्तीय संकट को लेकर सावधानी बरत रहे बैंक व कंपनियां

Last Updated- December 11, 2022 | 10:02 PM IST

वित्तीय संकट से हलाकान श्रीलंका ने पहले ही भारत से 1 अरब डॉलर के ऋण की मांग की है। उसने यह ऋण आवश्यक जिंसों के आयात के लिए मांगे हैं। इस बीच, भारतीय बैंक और कॉर्पोरेट इस द्वीपीय देश के साथ सौदा करने के संबंध में एहतियाती दृष्टिकोण अपना रहे हैं।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के वरिष्ठ कार्यकारी ने कहा कि उनका बैंक लंबे वक्त से श्रीलंका में एक संस्था के तौर पर उपस्थिति दर्ज कराने के लिए प्रतिबद्घ है। उन्होंने कहा, ‘जहां तक ऋण की रकम की बात है तो बैंक वहां पर परिस्थिति में सुधार होने तक श्रीलंकाई संस्थाओं को अमेरिकी डॉलर में ऋण देने को लेकर सचेत रहेंगे।’ एसबीआई स्थानीय मुद्रा श्रीलंकाई रुपया में भी सौदा करता है और ये जारी रहेंगे क्योंकि उस मुद्रा को लेकर कोई जोखिम नहीं है।        
भारतीय कंपनियों में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की स्थानीय इकाई है जिसे कुछ प्रकार के दबाव का सामना करना पड़ सकता है। श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री उदय गम्मंपिला ने पहले ही संकेत दिया है कि जनवरी के तीसरे हफ्ते में ईंधन की कमी हो सकती है और केंद्रीय बैंक से जरूरत पडऩे पर विदेशी मुद्रा देने का अनुरोध किया था।
यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि लंका आईओसी (एआईओसी) के पास द्वीपीय देश में कुछ 12 से 15 फीसदी खुदरा बाजार हिस्सेदारी है और उसके पास 200 से अधिक ईंधन आउटलेट हैं। बताया जाता है कि कच्चे तेल की उच्च अंतरराष्ट्रीय कीमतों के कारण कंपनी को नुकसान छेलना पड़ रहा है। इसके बावजूद कंपनी का रुख यह है कि यदि सरकारी क्षेत्र की सीलोन पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (सीपीसी) यदि मांग की पूर्ति करने में असफल रहती है तो वह जरूरी आयातों से काम चलाएगी। एलआईओसी के प्रबंध निदेशक मनोज गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड के कॉल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। परेशानी को और अधिक बढ़ाने वाली बात यह है कि श्रीलंका अस्थायी तौर पर केलानिया रिफाइनरी को बंद कर सकता है क्योंकि देश में व्याप्त विदेशी मुद्रा संकट की वजह से कच्चे तेल की खरीद करने में मुश्किल हो रही है। पिछले तीन महीने में ऐसा दूसरी बार होगा। एक अधिकारी ने कहा कि भले ही एनटीपीसी के पास एक कोयला आधारित विद्युत संयंत्र और सौर बिजली पार्क की योजना है लेकिन ये अभी भी ड्राइंग बोर्ड पर ही हैं।     
एलआईओसी के पूर्व प्रबंध निदेशक सुबोध डकवाले ने कहा, ‘एलआईओसी के पास धन संबंधी कोई दिक्कत नहीं है और हम तैयार माल खरीदते हैं। हम आयात के माध्यम से निश्चित तौर पर जरूरत को पूरा कर सकते हैं। रिफाइनरी से केवल करीब आधी जरूरत ही पूरी हो रही है। इसलिए, उस पर बहुत अधिक निर्भरता है भी नहीं। विगत में भी उन्हें इसी तरह की परेशानी थी और हमने हाजिर बाजार से ईंधन की खरीद की थी।’
दिलचस्प है कि श्रीलंका भारत का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है और भारत ने वहां के बुनियादी ढांचे और सामाजिक क्षेत्र की परियोजनाओं में भी भारी निवेश कर रखा है। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (फियो) के अध्यक्ष ए शक्तिवेल ने कहा कि श्रीलंका संकट के कारण भारतीय निर्यातों के क्षेत्र पर कोई दबाव नहीं है। यहां तक भारत इस पड़ोसी देश के बंदरगाह सुविधाओं का भी इस्तेमाल कर रहा है। भारत ने 2019 तक के 15 वर्ष की अवधि में यहां पर विभिन्न बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के लिए करीब 2 अरब डॉलर का ऋण दे रखा है और 1.7 अरब डॉलर का निवेश भी किया है।
भारत ने श्रीलंका को 90 करोड़ डॉलर से अधिक की वित्तीय सहायता दी
भारत ने श्रीलंका को 90 करोड़ डॉलर से अधिक का कर्ज देने की घोषणा की है। इससे देश को विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने और खाद्य आयात में मदद मिलेगी।  आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका में इस समय लगभग आवश्यक वस्तुओं की भारी किल्लत देखने को मिल रही है। श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के गवर्नर अजीत निवार्ड कैबराल ने बुधवार को कहा था कि उनका देश भारत से एक अरब अमेरिकी डॉलर के ऋण पर बातचीत कर रहा है। श्रीलंका में भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले ने गुरुवार को कैबराल से मुलाकात की और पिछले सप्ताह आरबीआई द्वारा 90 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की सुविधाओं का विस्तार करने के मद्देनजर श्रीलंका को भारत का मजबूत समर्थन जताया।
एक ट्वीट में कहा गया, इनमें एशियाई समाशोधन संघ के 50.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक के निपटान को स्थगित करना और 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर की मुद्रा अदला-बदली शामिल है। भारत के कदम पर टिप्पणी करते हुए विश्लेषकों ने यहां कहा कि भारतीय सहायता श्रीलंका के दिसंबर के अंत में घोषित विदेशी मुद्रा भंडार को दोगुना करने में योगदान दे सकती है।     भाषा

First Published - January 14, 2022 | 11:33 PM IST

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