कोविड महामारी के दौरान कर्जदारों को कर्ज की किस्त में छह महीने का स्थगन दिया गया था और इस दौरान कर्ज के ब्याज पर ब्याज (चक्रवृद्घि ब्याज) भुगतान में छूट देने से बैंकों को करीब 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) राजीव महर्षि की अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष ऋणदाताओं ने अपने प्रस्तुतिकरण में इसकी जानकारी दी है।
मामले से जुड़े लोगों के अनुसार इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) ने समिति को बताया कि ब्याज माफी की जगह सरकार को कर्जदारों को राहत देने के लिए सरकार से कहा जा सकता है। सूत्रों ने कहा कि समिति ने अपनी रिपोर्ट केंद्रीय वित्त मंत्रालय को सौंप दी है। इस समिति का गठन उच्चतम न्यायालय में ऋण स्थगन अवधि में बैंकों द्वारा ब्याज वसूले जाने को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान किया गया था। इस बारे में जानकारी के लिए महर्षि से संपर्क किया गया मगर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की।
मामले के जानकार बैंकिंग क्षेत्र के एक कार्याधिकारी ने नाम उजगार नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘बैंकों में चक्रवृद्घि ब्याज सामान्य प्र्रक्रिया है और 90 फीसदी जमाकर्ताओं के मामले में ऐसा होता है। यह बैंकिंग का मौलिक सिद्घांत है। किसी भी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में राहत पैकेज सरकार की ओर से दिया जाता है और इस मामले में भी ऐसा होना चाहिए।’
ऋणदाताओं ने समिति को बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कर्ज पुनर्गठन की अनुमति दी है जिसका लाभ उद्योग और कर्जदार उठा सकते हैं। वित्तीय तंत्र में राहत देने का यह श्रेष्ठ उपाय है। कार्याधिकारी ने कहा, ‘चक्रवृद्घि ब्याज का भुगतान माफ करने से वित्तीय संस्कृति खराब होगी। यह उनके साथ भी अनुचित होगा जिन्होंने ऋण स्थगन का लाभ नहीं उठाया।’
आगरा निवासी गजेंद्र शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर ऋण स्थगन अवधि के किस्तों पर ब्याज भुगतान माफ करने की मांग की है। बाद में इस याचिका के साथ कई उद्योगों के निकायों की याचिकाओं को भी जोड़ दिया गया।