गत 28 अगस्त को दिनेश कुमार खारा को एक तरह से जन्मदिन का तोहफा मिला। सरकारी बैंकों के संचालन में सुधार के लिए सन 2016 में गठित स्वायत्त संस्था बैंक्स बोर्ड ब्यूरो ने उनका नाम उस पद के लिए प्रस्तावित किया जिसे देश का सर्वाधिक शक्तिशाली बैंकर कहा जा सकता है।
अगर यह मान लें कि सरकार देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन पद पर खारा के नाम को मंजूरी दे देगी तो वह आगामी 8 अक्टूबर से मुंबई के नरीमन प्वाइंट स्थित स्टेट बैंक भवन में बैठने लगेंगे। उनके पूर्ववर्ती रजनीश कुमार का तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो रहा है और अगर खारा के नाम को मंजूरी मिलती है तो उन्हें तीन वर्ष का सेवा विस्तार मिलेगा क्योंकि सामान्यतया तो वह अगस्त 2021 में सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
दिल्ली स्थित फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए करने वाले खारा ने सन 1984 में प्रोबेशनरी अधिकारी के तौर पर स्टेट बैंक में काम शुरू किया। यही वजह है कि अंदरूनी लोगों को लग रहा है कि वह बैंक के कामकाज में कोई बड़ा बदलाव नहीं ला पाएंगे। खारा संस्थान को औरों से बेहतर जानते हैं क्योंकि वह तमाम बड़े पदों पर काम कर चुके हैं। उन्होंने स्टेट बैंक के शिकागो कार्यालय में भी काम किया है। वह शीर्ष प्रबंधन में भी शामिल रहे और उन्हें 2016 में प्रबंध निदेशक बनाया गया था (तीन अन्य प्रबंध निदेशक भी शीर्ष पद के साक्षात्कार में शामिल थे)।
इस परिदृश्य से इतर खारा को ठोस कार्ययोजना तैयार करनी होगी क्योंकि भीतरी व्यक्ति होने के कारण वह एसबीआई की कार्य संस्कृति को बेहतर जानते हैं और उनके पास एक अनुभवी टीम है।
एसबीआई के साथ व्यापक अनुभव के अलावा उनकी सबसे बड़ी पूंजी उनका सहज और विनम्र व्यक्तित्व हो सकता है। खारा के साथ काम कर चुके एसबीआई के एक वरिष्ठ बैंकर का कहना है कि उन्हें आसानी से नहीं मनाया जा सकता और वह सौहार्दपूर्ण रहते हुए भी सख्त रहते हैं। माना जा सकता है कि उनकी यह काबिलियत कोविड-19 के कारण उत्पन्न आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण इस समय में बैंक के अंशधारकों के साथ तालमेल की दृष्टि से बेहतर रहेगी। यकीनन सरकार के साथ रिश्ते सभी एसबीआई प्रमुखों के लिए थोड़ा जटिल मुद्दा रहा है और अपने पूर्ववर्तियों की तरह खारा पर भी नजर रहेगी कि एसबीआई बोर्ड में वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधि के साथ उनका तालमेल कैसा रहता है।
यह बात तो सभी मानते हैं कि देश के बैंकिंग क्षेत्र के लिए आगे की राह आसान नहीं है। ऋण प्रवाह बरकरार रखना और साथ ही परिसंपत्ति गुणवत्ता पर नजर रखना एक बड़ा काम है। एक वरिष्ठ बैंकर कहते हैं कि ऐसे में बहुत सावधानी से काम करना होगा।
अच्छी बात यह है कि खारा उस समय प्रभार संभाल रहे हैं जब बैंक की परिसंपत्ति गुणवत्ता और पूंजी पर्याप्तता प्रोफाइल चार वर्ष पहले की तुलना में बेहतर हैं। मार्च 2016 में एसबीआई का कुल फंसा हुआ कर्ज 6.5 फीसदी और प्रोविजनिंग कवरेज रेशियो (पीसीआर) 60.7 फीसदी था। बाद के वर्षों में आरबीआई की परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के कारण फंसे हुए कर्ज में इजाफा हुआ और मार्च 2018 में यह 19.91 फीसदी तथा पीसीआर 66.17 फीसदी जा पहुंचा। जून 2020 तक फंसा हुआ कर्ज घटकर 5.44 फीसदी हो गया जबकि पीसीआर 86.32 फीसदी रहा। मार्च 2017 में जो पूंजी पर्याप्तता अनुपात 13.12 फीसदी था वह जून 2020 में 13.4 फीसदी हो गया।
इन चार वर्षों में बैंक ने यह सीखा कि कॉर्पोरेट जगत में पूंजी कैसे संचालित होती है और उसकी वसूली कैसे की जाती है। अब ऋण का जोखिम अंकन और निगरानी मानक बहुत कड़े हैं। ये बातें खारा के पक्ष में रहेंगी।
अनुषंगियों और संबद्ध पोर्टफोलियो के प्रमुख के रूप में खारा संबद्ध बैंकों के मुख्य बैंक के साथ एकीकरण में शामिल रहे हैं। ऐसे में उन पुराने बैंकों के कई अधिकारी अब शीर्ष प्रबंधन में शामिल हो रहे हैं। इस समीकरण को भी मानव संसाधन क्षेत्र की चुनौती के रूप में देखना होगा।
महामारी ने बदलावों की गति तेज कर दी है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग- खुदरा, एमएसएमई और कॉर्पोरेट क्षेत्र में। एसबीआई ने योनो के रूप में एकीकृत डिजिटल बैंकिंग प्लेटफॉर्म तैयार किया है उसे आगे बढ़ाना और डिजिटल बैंकिंग को गति प्रदान करना भी अहम चुनौती होगी।
एसबीआई के निजी क्षेत्र के प्रतिद्वंद्वी मसलन आईसीआईसीआई, एचडीएफसी और एक्सिस बैंक आदि जिस तरह काम कर रहे हैं उसी तर्ज पर सभी वित्तीय सेवाओं के लिए एक एसबीआई की पहचान को बढ़ावा देना भी प्राथमिकता होनी चाहिए। म्युचुअल फंड जैसे अनुषंगियो में काम कर चुके खारा इस बात को समझते हैं कि एसीबीआई के ग्राहकों को उसकी अन्य सेवाओं से जोडऩे से हासिल होने वाला शुल्क कितना अहम है। यह आय मुश्किल दिनों में राजस्व का मजबूत स्रोत बन सकती है और ब्याज से होने वाली आय की सहायक सिद्ध हो सकती है।
एसबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बैंक के मजबूत अनुषंगियों की मदद से भी अच्छी पूंजी जुटाई जा सकेगी। बैंक ने बीते तीन वर्षों में इक्विटी पूंजी नहीं जुटाई है और अनुषंगियों में उसके हिस्से का मुद्रीकरण भी पूंजी का एक अहम जरिया होगा।