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एनबीएफसी के लिए लाभांश नियम सख्त

Last Updated- December 12, 2022 | 3:22 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कुछ मानदंडों के आधार पर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की लाभांश भुगतान के नियम सख्त कर दिए हैं। इन मानदंडों में संबंधित एनबीएफसी के खाते में फंसा कर्ज कितना है और उसका सही से खुलासा किया गया है या नहीं आदि को शामिल किया गया है। शुद्घ मुनाफे का जितना हिस्सा किसी साल में लाभांश दिया जा सकता है उसे लाभांश अनुपात कहा जाता है। आरबीआई ने कारोबार की प्रकृति के हिसाब से एनबीएफसी के लिए लाभांश अनुपात की सीमा 50 से 60 फीसदी तय कर दी है। आरबीआई ने कहा है कि अगर किसी साल कोई अप्रत्याशित आय प्राप्त होती है तो उसे मुनाफे से बाहर रखा जाएगा।
हालांकि आम लोगों से जमा स्वीकार नहीं करने वाली एनबीएफसी के लिए ऐसी कोई सीमा तय नहीं की गई है। आरबीआई ने कहा कि इन निमयों से पारदर्शिता बढ़ेगी और एकरूपता आएगी।
लाभांश की घोषणा से पहले एनबीएफसी के निदेशक मंडल को यह सुनिश्चित करना होगा किगैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) को कम करके नहीं दिखाया गया हो। एनपीए के स्तर से नियामक और ऑडिटरों को संतुष्ट होना होगा और लगातार तीन साल तक यह 6 फीसदी से नीचे होना चाहिए। एनबीएफसी के पास न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता होनी चाहिए जो तीन साल में कम से कम 15 फीसदी होगी। स्टैंडअलोन प्राइमरी डीलर के लिए न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता 20 फीसदी होगी।
आरबीआई ने कहा कि इन मानदंडों को पूरा नहीं करने वाली एनबीएफसी अधिकतम 10 फीसदी तक ही लाभांश दे सकती है। हालांकि इसके लिए शुद्घ एनपीए संबंधित वित्त वर्ष के अंत में 4 फीसदी से कम होना चाहिए। केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक लाभांश की घोषणा पर तदर्थ व्यवस्था के किसी भी अनुरोध पर गौर नहीं करेगा।’ एक प्रमुख निवेश कंपनी के तौर पर पंजीकृत और समूह की कंपनियों में 90 फीसदी निवेश रखने वाली एनबीएफसी 60 फीसदी तक लाभांश का अंतरण कर सकती है।

First Published - June 24, 2021 | 11:39 PM IST

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