वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने आज कहा कि भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) की संपत्ति की गुणवत्ता में संभवत: कोविड-19 की वजह से तेज गिरावट नहीं आएगी और इन्हें अगले वित्त वर्ष में संभावित आर्थिक रिकवरी से मदद मिलेगी।
बहरहाल बैंकों को पूंजी की कमी का सामना करना पड़ेगा क्योंकि कर्ज की ज्यादा लागत होने के कारण उनका मुनाफा कमजोर बना हुआ है और इसकी वजह से किसी भी अप्रत्याशित दबाव की स्थिति में उनकी अति संवेदनशीलता बनी हुई है। सरकार द्वारा इक्विटी डालने के बावजूद यह स्थिति बने रहने की संभावना है।
मूडीज में अस्टिेंट वाइस प्रेसीडेंट और विश्लेषक रेबाका टैन ने कहा, ‘उधारी लेने वालों का समर्थन करने के लिए भारत सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की गैर निष्पादित कर्ज (एनपीएल) की वृद्धि को रोकने में मदद मिलेगी। पुनर्गठित कर्ज का आकार उतना नहीं है, जितना हमने कल्पना की थी।’
देश के पांच बड़े सरकारी बैंकों भारतीय स्टेट बैंक, बैंक आफ बड़ौदा, पंजाब नैशनल बैंंक, केनरा बैंक और यूनियन बैंक आफ इंडिया की संपत्ति की गुणवत्ता में वित्त वर्ष 21 के पहले 9 महीनों में मामूली सुधार हुआ है, भले ही महामारी के कारण आर्थिक संकुचन आया है। पांच बैंकों के सकल गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) का अनुपात औसत पिछले साल की तुलना में 2020 के अंत तक करीब 100 आधार अंक कम हुआ है। ऐसा उस स्थिति में भी है जब अगस्त 2020 के अंत से कर्ज चूक वाला हो गया है, लेकिन उच्चतम न्यायालय में मामला लंबित होने के कारण इसे औपचारिक रूप से एनपीए के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
ज्यादातर बैंकोंं में जहां सकल एनपीए अनुपात उच्च बना हुआ है, वहीं विरासत वाले एनपीए के खिलाफ अहम प्रावधान बनने के कारण शुद्ध एनपीए अनुपात बहुत कम है।
वित्त वर्ष 20 की तुलना में वित्त वर्ष 21 के पहले 9 महीनों में सभी 5 बैंकों में एनपीए की वसूली सुस्त रही है। इसमें कहा गया है कि महामारी की वजह से न सिर्फ आर्थिक व्यवधान हुआ है, बल्कि इससे ऋण शोधन एवं दिवाला संहिता के तहत मार्च 2021 तक समाधान प्रक्रिया भी लंबित है। बहरहाल आर्थिक रिकवरी के साथ अगली कुछ तिमाही में धीरे धीरे रिकवरी तेज होने की संभावना है।
सरकार ने पीएसबी में वित्त वर्ष 22 में 20,000 करोड़ रुपये इक्विटी पूंजी डालने की योजना बनाई है, जो वित्त वर्ष 21 के 20,000 करोड़ रुपये बजट के अतिरिक्त है। टैन ने कहा, ‘पूंजी डालने से जहां उनको बेसल पूंजी जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी, लेकिन इससे कर्ज में वृद्धि को गति नहीं मिलेगी।’