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फ्लोटिंग बॉन्ड के जरिये रकम जुटाने पर जोर

Last Updated- December 12, 2022 | 1:47 AM IST

भारतीय रिर्जर्व बैंक (आरबीआई) की आसान मौद्रिक नीति और लगातार समायोजन के लिए प्रतिबद्धता ने भारतीय कंपनियों की रकम जुटाने संबंधी रणनीति को बदल दिया है। भारतीय कंपनियां वित्त पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्धारित दर वाले ऋण पत्रों के बजाय फ्लोटिंग रेट बॉन्ड की ओर धीरे-धीरे रुख करने लगी हैं।
फ्लोटिंग रेट बॉन्ड का प्रचलन काफी पहले से रहा है लेकिन जारी किए गए कुल बॉन्ड में उसकी हिस्सेदारी महज 1 फीसदी के दायरे में रही है। हालांकि कैलेंडर वर्ष 2020 और 2021 में अब तक भारतीय कंपनियों ने इन बॉन्डों की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 5 फीसदी कर दिया है। उदाहरण के लिए, 2019 में कुल 7,798 करोड़ रुपये के फ्लोटिंग बॉन्ड जारी किए गए थे जो जारी किए गए कुल बॉन्डों का महज 1 फीसदी था। साल 2020 में कुल 53,706.50 करोड़ रुपये के फ्लोटिंग बॉन्ड जारी किए गए जो कुल बकाये का करीब 5.3 फीसदी था। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, साल 2021 में अब तक 30,453.86 करोड़ रुपये के फ्लोटिंग बॉन्ड जारी किए गए हैं जो कुल बकाये का करीब 5.1 फीसदी है।

आरबीआई ने कोरोनावायरस संकट के मद्देनजर ब्याज दरों में नरमी बरकरार रखा जिससे 2020 में फ्लोटिंग रेट बॉन्ड की लोकप्रियता बढऩे लगी। साल 2021 में भी फ्लोटिंग रेट बॉन्ड की रफ्तार बरकरार है जबकि व्यापक तौर पर उम्मीद की जा रही है कि आरबीआई दरों में कटौती करेगा जिससे बॉन्ड प्रतिफल में तेजी आने की उम्मीद है। मुख्य तौर पर गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) फ्लोटिंग रेट बॉन्ड जारी कर रही हैं लेकिन कुछ बड़ी कंपनियां भी इससे जुड़ गई हैं। इन बॉन्डों के लिए 91 दिनों के ट्रेजरी बिल की दर को संदर्भ दर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि इनमें से कुछ ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बॉन्ड जारी किए हैं। अधिकतर बॉन्ड की परिपक्वता अवधि 2 साल के दायरे में है जबकि कुछ 2032 में परिपक्व होंगे।

एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड रिसर्च के सेंटर फॉर फाइनैंशियल स्टडीज (सीएफएस) के अर्थशास्त्री हर्षवर्धन और इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च (आईजीआईडीआर) में अर्थशास्त्र की सहायक प्रोफेसर राजेश्वरी सेनगुप्ता का मानना है कि यह सॉवरिन प्रतिफल कर्व में विश्वसनीयता में क्षरण की घटना है। बॉन्ड बाजार में रिजर्व बैंक के बढ़ते हस्तक्षेप के कारण ऐसा हो रहा है। 
आरबीआई कम से कम जून तक 10 वर्षीय बेंचमार्क बॉन्ड में काफी हस्तक्षेप करता था। वह ब्याज दरों को कम रखने के लिए अधिकांश बकाये को अपने बहीखाते में समाहित करता था। हालांकि अन्य श्रेणियों के प्रतिफल में सुधार हुआ जो प्रतिफल कर्व को खराब करता है।

First Published - August 19, 2021 | 12:34 AM IST

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