भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने राजकोषीय रूप से सशक्त राज्यों को अपना गुणवत्तापूर्ण व्यय बढ़ाने का सुझाव देते हुए शुक्रवार को कहा कि इसका गुणक प्रभाव पडऩे से दूसरे राज्य भी अपना पूंजीगत
व्यय बढ़ाने के लिए प्रेरित होंगे, जिससे समूची अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा।
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की तरफ से आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा कि राज्यों के व्यय की गुणवत्ता इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि केंद्र एवं राज्यों के सम्मिलित व्यय में इसका अंशदान 60 फीसदी है जबकि वैश्विक स्तर पर राज्यों की औसत हिस्सेदारी सिर्फ 30 फीसदी है।
दास ने अपने भाषण में कहा, ‘राज्यों का वित्त और उनका व्यय देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि में अहम भूमिका निभाता है। मौजूदा समय में जब भारत अर्थव्यवस्था के समक्ष आई सबसे बुरी चुनौतियों में से एक से उबर रहा है, यह और भी अहम हो जाता है।’ उन्होंने कहा कि महामारी की वजह से कुछ घटकों पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा पर व्यय को केंद्र के अलावा राज्यों के स्तर पर भी खासा बढ़ाने की जरूरत स्वीकार करनी होगी। दास ने कहा, ‘शिक्षा एवं स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में व्याप्त अंतर पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि महामारी के दौर में ऑनलाइन क्लास चलाने की बाध्यता ने कंप्यूटर एवं लैपटॉप नहीं खरीद सकने वाले निचले तबके को शिक्षा से दूर कर दिया है।
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि ऑटोमेशन को बढ़ावा मिलने से कम दक्षता वाले श्रमिक बेरोजगार होंगे। इस तरह के लोगों को रोजगार बाजार में टिकाए रखने के लिए नए सिरे से कुशल बनाना होगा। उन्होंने कहा, ‘हमारे सामने नई तरह की समस्याएं खड़ी हुई हैं और इनका समाधान केंद्र और राज्यों को करना होगा।’ उन्होंने कहा कि वैश्विक वित्तीय संकट के बाद सख्त राजकोषीय मानकों को अपनाने के लिए उत्सुक कई राज्यों को अपने पूंजी व्यय में कटौती करनी पड़ी थी। उन्होंने कहा, ‘इस बार इसे दोहराया नहीं जाना चाहिए। यह बेहद अहम है कि राज्य अपने पूंजीगत व्यय में कटौती न करें।’
महामारी के पहले सभी राज्यों का ऋण एवं सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) अनुपात 26 फीसदी था लेकिन उनके बीच काफी फर्क भी थे। राज्यों के बीच यह अनुपात 17 फीसदी से लेकर 42 फीसदी तक था। दास ने कहा कि कुछ विकसित राज्यों में ऋण एवं जीएसडीपी का कम अनुपात होना प्रशंसनीय है और इन राज्यों को खर्च के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि उन राज्यों के पास ढांचागत क्षेत्र, शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाने की गुंजाइश है। जब आप एक राज्य में खर्च कर सकते हैं तो इससे निवेश का एक चक्र शुरू हो सकता है जो दूसरे राज्यों तक जा सकता है। यह देश की जीडीपी में भी योगदान देगा।’
आरबीआई के गवर्नर ने व्यय की गुणवत्ता पर ध्यान देना जरूरी बताते हुए कहा कि इस गुणवत्ता के आकलन के लिए कुछ पैमाने तय करने का वक्त आ गया है। उन्होंने कहा, ‘हमारे सारे मापदंड मात्रात्मक हैं लेकिन व्यय की गुणवत्ता बेहद अहम है।’
उन्होंने केंद्र एवं राज्यों के स्तर पर चल रही सभी योजनाओं की समीक्षा को जरूरी बताते हुए कहा कि इससे पता चल सकेगा कि किन योजनाओं की उपयोगिता खत्म हो चुकी है और उन्हें बंद करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘एक बार योजना शुरू होने के बाद उसे अनिश्तिकाल तक नहीं चलाया जा सकता है। एक लक्ष्य हासिल हो जाने के बाद उसे बंद कर देना चाहिए। और अगर लक्ष्य नहीं हासिल हो पा रहे हैं तो फिर उस योजना में कुछ गलत है जिसे दुरूस्त करने की जरूरत है।’
दास ने सार्वजनिक व्यय में विवेक के इस्तेमाल पर भी जोर देते हुए कहा कि प्रतिस्पद्र्धी मांगों का सामना कर रहे राज्यों को ऐसी मांगों का मूल्यांकन भी करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘किसी योजना को दूसरी योजना पर तरजीह देने का फैसला इस आकलन पर आधारित होना चाहिए कि उसका गुणक प्रभाव क्या होगा और लोगों की जिंदगी पर किस तरह का असर डालेगी?’