भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) 30 सितंबर को रीपो दर में एक बार फिर बड़ा इजाफा कर सकती है। बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया कि मुद्रास्फीति को तय दायरे में लाने के लिए रीपो दर 35 से 50 आधार अंक बढ़ाई जा सकती है। विश्लेषकों ने कहा कि विकसित देशों के केंद्रीय बैंक भी अपनी मौद्रिक नीति को सख्त बना रहे हैं, जिससे आरबीआई पर दरें बढ़ाने का दबाव है।
बिज़नेस स्टैंडर्ड के सर्वेक्षण में शामिल 12 प्रतिभागियों ने जो अनुमान लगाया है उसके मुताबिक रीपो दर में औसतन 40 आधार अंक तक की वृद्धि हो सकती है। मौद्रिक नीति समिति की तीन दिवसीय बैठक 28 सितंबर से शुरू होगी। फिलहाल रीपो दर 5.40 फीसदी है।
5 संस्थानों ने रीपो दर में 35 आधार अंक की वृद्धि का अनुमान लगाया है और 4 के मुताबिक यह 50 आधार अंक बढ़ाई जा सकती है। एक संस्थान का अनुमान है कि इसमें 40 आधार अंक का इजाफा संभव है और एक ने 25 से 35 आधार अंक बढ़ोतरी की संभावना
जताई है। एक अन्य ने 35 से 50 आधार अंक की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया है।
फरवरी के अंत में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से जिंसों की आपूर्ति में बाधा आने की वजह से वैश्विक स्तर पर जिंसों की कीमतों में तेजी आई है। इसका महंगाई पर भी असर पड़ा है और देश की मुद्रास्फीति कई महीनों से आरबीआई के सहज दायरे से ऊपर बनी हुई है। अगस्त में खुदरा मुद्रास्फीति 7 फीसदी रही। आरबीआई ने खुदरा मुद्रास्फीति को 4 फीसदी (2 फीसदी घट-बढ़ के साथ) पर रखने का लक्ष्य तय किया है।
बार्कलेज में भारत के मुख्य अर्थशास्त्री राहुल बाजोरिया ने कहा, ‘हम रीपो दर में 50 आधार अंक की बढ़ोतरी की संभावना देख रहे हैं। पहले 25 आधार अंक की वृद्धि का अनुमान था मगर खुदरा मुद्रास्फीति 7 फीसदी पर रहने के बाद हमने अनुमान बदल दिया। वैश्विक केंद्रीय बैंकों ने भी दरों में बढ़ोतरी की रफ्तार कम नहीं की है और आरबीआई का रुख भी वैसा ही रहने की संभावना है।’ अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने इस साल अभी तक दरों में 225 आधार अंक का इजाफा कर चुका है। इससे उभरते बाजारों पर भी दरें बढ़ाने का दबाव है। इस साल डॉलर के मुकाबले रुपये में 6.8 फीसदी की नरमी आई है।
आरबीआई का नीतिगत रुख विश्लेषकों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि केंद्रीय बैंक ने मई से अब तक रीपो दर में 140 आधार अंक की बढ़ोतरी के बाद भी अपना रुख तटस्थ नहीं किया है। अगस्त में नीतिगत समीक्षा बैठक में एमपीसी ने कहा था कि वह समायोजन भरा रुख लाने पर ध्यान दे रहा है। सर्वेक्षण में शामिल 4 प्रतिभागियों ने कहा कि आरबीआई अपने रुख में बदलाव कर सकता है मगर तीन ने तटस्थ रुख और एक ने सख्त रुख अपनाने की बात कही। बार्कलेज ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की।
तटस्थ रुख के तहत आरबीआई के पास मौद्रिक नीति में ढील देने या सख्त बनाने की सुविधा होती है,जबकि सख्त रुख में केवल दरें बढ़ाने और सख्त वित्तीय स्थिति का अनुमान होता है।
सर्वेक्षण में शामिल अधिकतर प्रतिभागियों ने कहा कि आरबीआई मुद्रास्फीति के अपने अनुमान में कोई बदलाव नहीं करेगा। मगर दो ने इसमें कमी का अनुमान जाहिर किया। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति 6.7 फीसदी पर रहने का अनुमान लगाया है। अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में इसके 6.4 फीसदी और जनवरी-मार्च में 5.8 फीसदी रहने का अनुमान है।
मुद्रास्फीति का अनुमान घटाए जाने की संभावना जताने वालों का कहना था कि हाल में कच्चे तेल की कीमतों में कमी की वजह से ऐसा संभव है। आरबीआई ने औसतन 105 डॉलर प्रति बैरल मूल्य के आधार पर मुद्रास्फीति का अनुमान लगाया था। लेकिन ब्रेंट क्रूड करीब 95 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है। 12 में से 7 प्रतिभागियों ने कहा कि आरबीआई चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के अपने 7.2 फीसदी के अनुमान को घटा सकता है क्योंकि पहली तिमाही में वृद्धि दर केंद्रीय बैंक के अनुमान से कम रही है। अप्रैल-जून में जीडीपी 13.5 फीसदी बढ़ा था, जबकि आरबीआई ने 16.2 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया था। आरबीआई जीडीपी अनुमान को घटाकर 7 फीसदी कर सकता है।