सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पेंशन की देनदारी के लिए लगभग 12,000 करोड़ रुपये का इंतजाम करना होगा। इन बैंकों ने इतनी राशि का मोटा आकलन किया है।
इंडियन बैंक एसोसिएशन कर्मचारियों के प्रतिनिधियों से वेतन में बढ़ोतरी के संदर्भ में बातचीत कर रहा है। इस मुद्दे पर पहले का समझौता 31 अक्टूबर 2007 को ही समाप्त हो गया। नए वेतन 1 नवंबर 2007 से लागू होने हैं।
बैंकिंग सूत्रों का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर पेंशन की देनदारी और उपलब्ध फंड के बीच जो अंतर है वह 12,000 करोड़ रुपये का है। इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया के अकाउंटिंग स्टैंडर्ड 15 (एएस 15)के अनुसार यह गणना की गई है।
वर्ष 2006 में जब एएस 15 अमल में लाया गया तब अतिरिक्त पेंशन प्रावधानों के लिहाज से यह अनुमान लगाया गया कि यह रकम 6,000 करोड़ रुपये होगी। हाल की वेतन समीक्षा में अतिरिक्त 275,000 बैंक कर्मचारी भी शामिल हो रहे हैं जिन्होंने पहले प्रोविडेंट फंड का विकल्प चुना था।
बैंकों को उन 65,000 कर्मचारियों की पेंशन देनदारी को भी चुकाना पड़ सकता है जो रिटायर तो हो गए हैं लेकिन वे 1996 से चल रही पेंशन स्कीम के तहत पेंशन पाना चाहते हैं। दूसरे विकल्प में भी अतिरिक्त 6,000 करोड़ रुपये के प्रावधान की जरूरत होगी।
इस तरह कुल मिलाकर यह देनदारी 12,000 करोड़ रुपये की होगी। सूत्रों का कहना है कि बैंकों को पेंशन स्कीम में बहुत योगदान करना होगा क्योंकि ब्याज दरों में गिरावट आनी शुरू हो गई है तथा इस योजना से किए जाने वाले निवेश से ज्यादा प्रतिफल नहीं मिल सकता है।
नए मानकों के लिहाज से संगठन को कर्मचारियों द्वारा लिए गए अंतिम वेतन का आकलन करना होगा और उसी आधार पर पेंशन और ग्रेच्युटी की देनदारी का इंतजाम करना होगा।
इस लेखा मानक से पहले कंपनियां आमतौर पर मौजूदा वेतन के आधार पर ही पेंशन और ग्रेच्यूटी की देनदारी तय करती थीं लेकिन वास्तविक भुगतान पिछली दफा पाए गए वेतन के आधार पर ही किया जाता था।
बैंकरों का कहना है कि अगर बैंकों को पेंशन स्कीम के लिए इंतजाम करना है तो यह वेतन बिल में कुल बढ़ोतरी के हिसाब से ही समायोजित करना होगा।
ऑल इंडिया बैंक इंप्लॉयी एसोसिएशन के महासचिव और यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के संयोजक पी. एच. वेंकटचलम का कहना है कि यह स्वीकार करने लायक नहीं है।
उनका कहना है कि आईबीए ने सालाना वेतन में 10 फीसदी की बढ़ोतरी का जो ऑफर दिया है वह भी स्वीकार करने लायक नहीं है। सार्वजनिक बैंकों का मौजूदा वेतन बिल लगभग 2,75,000 करोड़ रुपये है।
तकनीकी तौर पर वेतन बढ़ोतरी की गणना बैंकों की स्थापना से जुड़े कुल खर्चो के आधार पर ही किया जाता है। महाप्रबंधक के स्तर तक के कर्मचारी इसी नियम के तहत आते हैं।