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कृषि क्षेत्र के लिए ऋण लेना बनेगा आसान

Last Updated- December 05, 2022 | 11:45 PM IST

विकास और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाने के लिए आरबीआई औद्योगिक घरानों की कार्यशील पूंजी के लिए लिए जाने वाले कर्ज या ऋण के लिए मार्जिन या कोलैटरल संबंधी जरुरतों को सख्त बना सकती है।


जबकि कृषि क्षेत्र में ऋण का प्रवाह बढ़ाने के लिए नरमी का रुख अख्तियार कर सकती है।सूत्रों ने बताया कि अगले सप्ताह होने वाली वार्षिक नीति की समीक्षा में इस संदर्भ में कुछ उपाय किए जाएंगे। बैंकिंग सूत्रों के अनुसार आरबीआई उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र के ऋणों को आसान बनाने के  लिए कई विकल्पों पर विचार कर रही है।


उल्लेखनीय है कि कृषि क्षेत्र के उत्पादन में कमी आई है।कृषि ऋण में मार्जिन या कोलैटरल की जरुरतों, खास तौर से कृषि क्षेत्र के लिए, को कम करने संबंधी समीक्षा की जा सकती है। वर्तमान में तरजीही क्षेत्र में एक निश्चित सीमा से अधिक के ऋण के लिए कोलैटरल (ऋणाधार) दिया जाता है। सूत्रों ने कहा कि एक विकल्प यह हो सकता है कि तरजीही क्षेत्रों गैर-ऋणाधारीय (नॉन-कोलैटरलाइज्ड) ऋणों की सीमा बढ़ा दी जाए।


दूसरी तरफ कारोबारी और औद्योगिक घरानों के कोलैटरलाइज्ड नकदी उधारी सुविधाओं के लिए मार्जिन की जरुरतों को यह बढ़ा सकता है। सूत्रों ने कहा कि केद्रीय बैंक का मानना है कि कॉर्पोरेट ऋण कई संवेदनशील क्षेत्रों जैसे कि पूंजी बाजार और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में अपनी जगह बना रहा था।


संवेदनशील क्षेत्रों के लिए जोखिम की गंभीरता और नियमों को पहले ही सख्त बना दिया गया है अब समय है कंपनियों के  मामले में इसे लागू करने का। बैंकों के  ऐसे ऋणों के मामले में मार्जिन की जरुरतों को बढ़ा कर पूरा किया जा सकता है खास तौर से वैसे क्षेत्रों के ऋण में जो मुद्रास्फीति के प्रति संवेदनशील हैं।


अग्रिम के मामले में केवल पर्सनल लोन नॉन-कोलैटरलाइज्ड होते हैं। कोलैटरलाइज्ड ऋण का मतलब होता है कि ऋण पाने के लिए व्यक्ति ने कोई प्रतिभूति या परिसंपत्ति गिरवी रखी है। कंपनियों के लिए सभी ऋण सुविधाएं और कार्यशील पूंजी कोलैटरलाइज्ड होते हैं।


एक तरफ ऐसे ऋणों के लिए मार्जिन की जरुरतों को बढ़ाया जा सकता है दूसरी तरफ बैंकों को ऐसी नकदी ऋण सुविधाओं की अवधि घटाने के निर्देश दिए जा सकते हैं।
मुद्रास्फीति में हुई अधिक वृध्दि को देखते हुए आरबीई पहले ही कमोडिटी के कारोबारियों और चुनिंदा कमोडिटी, खासतौर से तिलहन, की कंपनियों की समीक्षा शुरु कर चुकी है। इससे ऐसे कमोडिटी की कालाबाजारी को कम किया जा सकेगा।

First Published - April 25, 2008 | 11:06 PM IST

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