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लक्ष्मी विलास बैंक की नजर वसूली पर

Last Updated- December 14, 2022 | 8:58 PM IST

नकदी संकट से जूझ रहे 94 वर्ष पुराने बैंक लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) डीबीएस सिंगापुर की सहायक इकाई डीबीएस बैंक इंडिया के साथ विलय के जरिये अपनी पूंजी संबंधी समस्या से निपटने के लिए तैयार है। उसने गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया है जो बैंक के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बैंक ने अगले 4 से 5 महीनों के दौरान 400 से 500 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा कि ऐसा काफी हद तक ओटीएस और वसूली के जरिये किया जाएगा। एनपीए में वृद्धि का असर बैंक की परिसंपत्ति गुणवत्ता पर भी दिखा जो काफी खराब हो चुकी है। बैंक का सकल एनपीए बढ़कर वित्त वर्ष 2021 की दूसरी तिमाही के अंत में 24.45 फीसदी हो गया जो सितंबर 2019 के अंत में 21.25 फीसदी रहा था। क्रमिक आधार पर भी इसमें तेजी दर्ज की गई जो जून 2020 तिमाही के अंत में 25.40 फीसदी रहा। सितंबर 2020 तक बैंक का सकल एनपीए 4,063.27 करोड़ रुपये था जबकि एक साल पहले इसी महीने के अंत में यह आंकड़ा 4,091.05 करोड़ रुपये रहा था। दूसरी ओर, शुद्ध एनपीए 7.01 फीसदी (946.72 करोड़ रुपये का हिसाब) से बढ़कर 10.47 फीसदी (1,772.67 करोड़ रुपये) हो गया।
डूबते ऋण के लिए प्रावधान की रकम फिलहाल 80 फीसदी पर है। जबकि छह महीने पहले यह 70 फीसदी के स्तर पर रही थी। ये सभी अनुपात काफी सहज हैं। इन 52 दिनों में, उन्न्यन के जरिये और एनपीए से वसूली लगभग 50 करोड़ रुपये रही। बैंक ने 150 करोड़ रुपये से अधिक के बकाये का निपटान एकमुश्त भुगतान के साथ किया। लक्ष्मी विलास बैंक के निदेशक शक्ति सिन्हा ने कहा, ‘इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि 200 करोड़ रुपये से अधिक बैंक में आएंगे।’
सिन्हा के अनुसार, अन्य मामलों के विपरीत लक्ष्मी विलास बैंक में कोई आपराधिक मामला नहीं है। बल्कि समस्या यह थी कि अधिक बड़ा होने के लिए अन्य कंपनियों के पीछे चला गया। उन्होंने कहा, ‘कंसोर्टियम का कुल एनपीए 60 फीसदी है। इसे वापस मिलने की बहुत कम गुंजाइश दिखती है और लगभग 70 फीसदी को बट्टे खाते में डाल दिया गया है।’

First Published - November 23, 2020 | 12:27 AM IST

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