सर्वोच्च न्यायालय ने आज निर्देश दिया कि 31 अगस्त तक जिन खातों को गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) घोषित नहीं किया गया है, उन्हें अदालत के अगले आदेश तक या मॉरेटोरियम मामले पर फैसला आने तक एनपीए की श्रेणी में नहीं डाला जाए। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाला पीठ 10 सितंबर को मामले की अगली सुनवाई करेगा।
अदालत ने बैंक एसोसिएशन की ओर से आए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे की बात सुनने के बाद आदेश दिया। साल्वे ने कहा कि कोई भी खाता कम से कम दो महीने तक एनपीए नहीं होगा।
अदालत मॉरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज पर ब्याज वसूले जाने को चुनौती देने वाली आगरा निवासी गजेंद्र शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। शर्मा ने अदालत से आग्रह किया है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की 27 मार्च को जारी अधिसूचना के उस हिस्से को रद्द किया जाए, जिसमें मॉरेटोरियम के दौरान कर्ज के ब्याज पर ब्याज वसूलने की बात कही गई है। कई अन्य संगठनों ने भी ब्याज माफी या ब्याज पर ब्याज माफ किए जाने की मांग के साथ याचिका दाखिल की हैं। इनमें रियल एस्टेट संगठन, होटल एसोसिएशन, बिजली उत्पादकों के सगठन और शॉपिंग मॉल संगठन शामिल हैं।
इससे पहले आरबीआई और केंद्र सरकार ने अदालत में कहा था कि कर्ज भुगतान में छूट की अवधि को कुछ शर्तों के साथ दो साल तक बढ़ाया जा सकता है और अर्थव्यवस्था में नरमी से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों की पहचान की जा रही है। अदालत ने कहा कि वित्तीय क्षेत्र के नियमन में आरबीआई की विशेषज्ञता पर सवाल नहीं उठाया जा रहा मगर सब कुछ बैंकों पर नहीं छोड़ा जा सकता है और छोटे कारोबारों एवं कर्जदारों को मुश्किल समय में ज्यादा राहत की जरूरत है। अदालत ने कहा, ‘बड़े मसलो का समाधान सरकार और आरबीआई को करना चाहिए।’
केंद्र सरकार ने कहा कि आरबीआई की 6 अगस्त को जारी अधिसूचना का मकसद महामारी एवं लॉकडाउन से वास्तव में बेहाल चूककर्ताओं को राहत देना है न कि इरादतन चूक करने वालों को। उसने गुहार लगाई कि किसी भी कदम से बैंकों एवं वित्तीय प्रणाली को नुकसान नहीं होना चाहिए।
सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र एवं आरबीआई का पक्ष रखते हुए कहा कि दुनिया भर में यह मान्य मत है कि बकाया कर्ज पर ब्याज को माफ करना अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कोई अच्छा विकल्प नहीं है। इस पर अदालत ने कहा, ‘हमारी चिंता ब्याज पर वसूले जाने वाले ब्याज को लेकर है।’ आरबीआई ने 6 अगस्त की अधिसूचना में कर्जदाता बैंकों के लिए कर्ज समाधान योजना लागू करने के बारे में एक मसौदा जारी किया था। समाधान योजना में पुनर्गठन के जरिये खातों के नियमितीकरण जैसे कदम शामिल हो सकते हैं। ब्याज दरों में रियायतों के अलावा इस मसौदे में पुनर्भुगतान पर दो साल का स्थगन देने का भी विकल्प दिया गया था।
वैसे आरबीआई कह चुका है कि अगर बैंकों को ब्याज वसूलने से रोका जाता है तो वित्तीय क्षेत्र की व्यवहार्यता पर असर पड़ेगा और बैंक छह महीनों तक ब्याज नहीं लेने पर 2 लाख करोड़ रुपये गंवा सकते हैं।