भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफ आई) पर ब्याज दर की सीमा हटाने का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि इस तरह के सूक्ष्म ऋणों का नियमन सामान्य दिशानिर्देशों के जरिये भी किया जा सकता है भले ही कोई भी ऋ ण देता हो।
आरबीआई ने कर्ज-आमदनी अनुपात की एक सीमा का प्रस्ताव करते हुए कहा कि कर्ज इस तरह से दिया जाना चाहिए कि किसी भी वक्त किसी परिवार के सभी बकाया ऋ णों के लिए ब्याज का भुगतान और मूलधन की अदायगी परिवार की आमदनी के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
रिजर्व बैंक का मानना है कि इस ऋ ण-आय सीमा से एमएफ आई को कई तरह के प्रतिबंधों का सामना नहीं करना पड़ेगा। देश में सूक्ष्म वित्त ऋ णों में एमएफ आई का योगदान महज 30 फीसदी है।
यहां इस बात पर गौर करना अहम है कि बैंकों और अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (एनबीएफ सी) जैसे कर्ज देने वाली संस्थाओं के लिए सूक्ष्म ऋ ण को लेकर कोई विशेष नियम तय नहीं हैं भले ही वे 70 फीसदी एमएफआई ऋ णों के लिए जिम्मेदार हैं।
अपनी वेबसाइट पर एक परामर्श पत्र में, आरबीआई ने बेहद छोटी रकम वाले कर्ज के लिए एक तरह के नियमों का प्रस्ताव रखा और इसमें सभी तरह के वित्तीय संस्थानों के लिए एक ही तरह के प्रस्ताव की बात की गई है। इसका कारण यह भी है कि बैंकों के पास काफी कम लागत वाला फंड उपलब्ध है और इसीलिए वे एमएफ आई की तरह ही ऐसे ऋ णों के लिए समान ब्याज दर वसूलते हैं। इससे ऐसे सूक्ष्म ऋ णों को मुहैया कराने का मकसद ही नाकाम हो रहा है और यह उद्योग का मानक बन गया है। आरबीआई एमएफ आई को इससे मुक्त करना चाहता है ताकि सबके लिए समान अवसर बनें।
आरबीआई ने एक परामर्श पत्र में कहा, ‘ब्याज दर के लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं होगी। हालांकि ऐसा करते समय उन्हें (एमएफ आई) यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बहुत ज्यादा ब्याज दर न लिया जाए। इरादा यह है कि पूरे एमएफ आई क्षेत्र के लिए बाजार तंत्र ऋ ण दरों को कम करने में सक्षम कर सके।’ अब सभी विनियमित संस्थाओं को एमएफ आई ऋ णों पर उनके द्वारा वसूले जाने वाले न्यूनतम, अधिकतम और औसत ब्याज दरों का ब्योरा देना होगा । यह आरबीआई की जांच के दायरे में होगा। एमएफ आई की एक स्व-नियामक संस्था सा-धन के कार्यकारी निदेशक पी सतीश ने आरबीआई के कदम का स्वागत किया है।