वालमार्ट समर्थित फोनपे की हर महीने लेन-देन की संख्या के हिसाब से यूनाइटेड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) प्लेटफॉर्म पर हिस्सेदारी बढ़ रही है। यह ऐसे समय में हो रहा है, जब भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) इस प्लेटफॉर्म पर संकेंद्रण के जोखिम को घटाने पर काम कर रहा है, जिस पर कुछ बड़े कारोबारियों का प्रभुत्व बन गया है।
वहीं फोनपे के सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी गूगल पे की बाजार हिस्सेदारी में पिछले साल अगस्त से लगातार कमी आ रही है। एनपीसीआई की ओर से जारी हाल के आंकड़ों के मुताबिक जून महीने में इस प्लेटफॉर्म पर फोनपे ने कुल लेन-देन में 46 प्रतिशत हिस्सेदारी की। वहीं गूगल पे की हिस्सेदारी 34.63 प्रतिशत रही। दोनों को मिला दें तो जून में यूपीआई पर इनकी हिस्सेदारी 80 प्रतिशत से ज्यादा रही है।
यह स्थिति दिसंबर, 2020 के पहले से ही जारी है, हालांकि उसके पहले गूगल पे अग्रणी था।
विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ कारोबारियोंं का दबदबा ग्राहकों की तरजीह पर निर्भर है कि वे विभिन्न लेन देन में किस ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसकी संभावना कम है कि फोनपे कुछ अलग कर रहा है या आक्रामक रूप से नए लेन-देन
पर काबिज होने की कवायद कर रहा है।
पिछले साल नवंबर में डिजिटल लेन-देन के मूल प्लेटफॉर्म एनपीसीआई ने दिशानिर्देश जारी कर कहा था कि थर्ड पार्टी ऐप्लीकेशन प्रोवाइडर (टीपीएपी) की लेनदेन में हिस्सेदारी यूपीआई पर लेन-देन की मात्रा के 30 प्रतिशत तक सीमित होनी चाहिए, जो 1 जनवरी, 2021 से प्रभावी होगा। एनपीसीआी ने कहा था कि 30 प्रतिशत की सीमा की गणना तीन महीने में लेन-देन की संख्या के हिसाब से तय की जाएगी।
बहरहाल मौजूदा टीपीएपी जैसे फोनपे, गूगल पे, जिनकी बाजार हिस्सेदारी ज्यादा है, को जनवरी, 2021 से 2 साल का अतिरिक्त वक्त दे दिया गया है।
इस घोषणा के बाद एनपीसीआई ने स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) पेश किया है कि उसकी योजना को किस तरह से लागू किया जाए। एनपीसीआई हर 6 महीने में प्रगति की समीक्षा करेगा, जो जनवरी 2022 से शुरू होगा और एसओपी और बाजार के हिस्सेदारी की पहली समीक्षा जून, 2022 में होगी।