वित्तीय रूप से मजबूत और अच्छे प्रबंधन वाली सहकारी ऋण समितियों को शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) का लाइसेंस दिया जा सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस समितियों को यूसीबी का लाइसेंस देना 17 साल पहले ही बंद कर दिया था, जब वित्त वर्ष 2004 में इन बैंकों की संख्या 1,926 थी। मगर अब इनकी संख्या केवल 1,539 बची है और एक बार फिर लाइसेंस जारी किए जा सकते हैं।
इसके साथ ही 100 करोड़ रुपये से अधिक जमा राशि वाले यूसीबी के लिए प्रबंधन बोर्ड तैयार करने और इनके राष्ट्रीय संगठन के दिशानिर्देश तैयार करने पर भी विचार चल रहा है। ये कदम शहरी सहकारी बैंकों के नियमों एवं आगे की राह की की नवगठित सहकारिता मंत्रालय द्वारा की जाने वाली समीक्षा का हिस्सा होंगे। मंत्रालय राष्ट्रीय सहकारिता विकास नीति (2002) को भी नया रूप प्रदान कर सकता है। एक शीर्ष नियामकीय अधिकारी ने कहा, ‘संसद का मॉनसून सत्र समाप्त होने के बाद सहकारिता मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक इस पर काम कर सकते हैं।’
अधिकारियों को उम्मीद है कि रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन की अध्यक्षता में ‘शीर्ष (शहरी) सहकारी बैंकों पर विशेषज्ञ समिति’ पखवाड़े भर के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश कर सकती है। इस समिति को यूसीबी के लिए आरबीआई और अन्य प्राधिकरणों द्वारा उठाए गए नियामकीय कदमों का जायजा लेने और पिछले पांच साल में उनके असर का आकलन करने का जिम्मा दिया गया है ताकि यदि उनके सामाजिक-आर्थिक मकसद पूरे करने में को अड़चन आई हो या सकारात्मक बात हो तो उसे पहचाना जा सके। समिति नियमन और निगरानी के वर्तमान तरीके की भी समीक्षा करेगी।
इस समिति का गठन अमित शाह की अगुआई में सहकारिता मंत्रालय का गठन होने से चार महीने पहले फरवरी 2021 में किया गया था। यह भी कहा गया कि आगामी समीक्षा इसलिए भी है कि बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 में हाल के संशोधनों के बाद यूसीबी पर आरबीआई की शक्तियां बढ़ी हैं। यूसीबी पर रिजर्व बैंक की उतनी ही नियामकीय और निगरानी शक्तियां हो गई हैं, जितनी अनसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर हैं।
प्रबंधन बोर्ड को लेकर आरबीआई की 31 दिसंबर, 2019 की अधिसूचना में कहा गया था, ‘प्रबंधन बोर्ड में विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो लेखा शास्त्र, कृषि एïवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था, बैंकिंग, सहकारिता, अर्थशास्त्र, वित्त, विधि, लघु उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्रों से लिए जाएंगे।’ यह बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 10ए की उपधारा के तहत आता है। हालांकि केंद्रीय बैंक की दिसंबर, 2019 की अधिसूचना में इस उप-धारा का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया।
यहां समस्या यह है कि शहरी सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल के साथ प्रबंधन मंडल की जरूरत पर पुनर्विचार उस समय हो रहा है, जब मुख्य धारा के बैंकों को भी अच्छे निदेशक नहीं मिल पा रहे हैं। आरबीआई ने साफ तौर पर यह उल्लेख नहीं किया है कि निदेशक मंडल को धारा 10ए की उपधारा 2 के प्रावधानों का पूरी तरह पालन करना होगा अथवा नहीं। एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘अगर ऐसा है तो यह अनावश्यक दोहराव है। निदेशक मंडल को सुधारने पर जोर देना ज्यादा बेहतर होता।’ यहां यह तर्क दिया जा रहा है कि प्रबंधन बोर्ड पर जोर देने से यूसीबी का प्रबंधन अपने कारोबार से दूर हो गया है।
भारत में बैंकिंग का रुझान एवं प्रगति पर आरबीआई की 2019-20 की रिपोर्ट में भविष्य की राह पर व्यापक संकेत दिए गए थे। बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के साथ ही यूसीबी को भी महामारी के कारण दबाव परीक्षण करने को कहा गया था। इसके तहत पूंजी में संभावित कमी का अग्रिम आकलन करना था।