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सरकारी बैंकों ने की दूसरे कर्ज पुनर्गठन की मांग

Last Updated- December 12, 2022 | 4:40 AM IST

कोविड महामारी की बढ़ती गंभीरता और आर्थिक प्रभाव को देखते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक दूसरी बार कर्ज पुनर्गठन की अनुमति चाह रहे हैं। पिछले साल भी कोविड की वजह से कर्ज पुनर्गठन की मंजूरी दी गई थी ताकि किस्त का भुगतान नहीं करने वाले खातों डिफॉल्ट की श्रेणी में न आ सकें।
कोविड महामारी की दूसरी लहर की वजह से सूक्ष्म, लघु उपक्रमों और परिवारों पर ज्यादा मार पड़ी है। कई लोगों ने पिछली बार पुनर्गठन का लाभ लिया था लेकिन अभी उनकी स्थिति भी अच्छी नहीं दिख रही है।
एक वरिष्ठ बैंकर ने कहा कि कुछ बैंकों के मुख्य कार्याधिकारियों ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के साथ हुई बैठक में इसे लेकर चिंता जताई है और एक बार फिर से कर्ज पुनर्गठन की मांग की है।
इसके साथ ही अगर आरबीआई ऐसे पुनर्गठन की अनुमति देता है तो उससे संबंधित प्रावधान को लेकर भी बैठक में चर्चा की गई। ऋणदाताओं ने ऐसे खातों के लिए कम प्रावधान (करीब 5 फीसदी) रखने की मांग की। पिछले साल दी गई कर्ज पुनर्गठन की अनुमति में 10 फीसदी प्रावधान यानी फंसे कर्ज की 10 फीसदी राशि अलग रखने के लिए कहा गया था। बैंकरों ने कहा कि  बैंकिंग तंत्र पर दबाव को देखते हुए बैंकों ने नियामकीय नियमों से कहीं ज्यादा प्रावधान रख रहे हैं।
ऐसे कई सुझाव औपचारिक रूप से इंडियन बैंक्स एसोसिएशन द्वारा आरबीआई को भेजे गए हैं।
बैंकों के मुख्य कार्याधिकारियों के साथ बैठक में आरबीआई के गवर्नर ने इस बात को स्वीकारा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक महामारी के दौर में आम लोगों और कारोबारों को उधार एवं बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराने में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। दास ने कहा कि बैंकों को आरबीआई द्वारा हाल ही में घोषित उपायों को शीघ्रता से लागू करना चाहिए। उन्हें अपने बहीखातों को दुरुस्त करने पर लगातार ध्यान देना चाहिए।
बैठक में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एमके जैन, एम राजेश्वर राव, माइकल डी पात्रा और टी रविशंकर भी मौजूद थे।बैठक में वित्तीय क्षेत्र की मौजूदा स्थिति पर भी चर्चा की गई। आरबीआई के आर्थिक स्थिति के मूल्यांकन के अनुसार कोविड की दूसरी लहर से भारत और दुनिया भर में व्यापक प्रभाव पड़ा है। उसके अनुसार वास्तविक आर्थिक संकेतकों में अप्रैल-मई 2021 के दौरान नरमी आई है। दूसरी लहर की वजह से मांग पर असर पड़ा है, वहीं गैर-जरूरी खर्चों में कमी आई है और रोजगार भी प्रभावित हुआ है। लेकिन कुल मिलकार आपूर्ति पर कम प्रभाव पड़ा है।
बैठक में छोटे कर्जदारों और एमएसएमई सहित विभिन्न क्षेत्रों में उधारी प्रवाह की भी समीक्षा की गई।

First Published - May 19, 2021 | 10:55 PM IST

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