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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सरकारी समर्थन की जरूरत

Last Updated- December 15, 2022 | 4:55 AM IST

कोविड-19 महामारी के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की दबावग्रस्त परिसंपत्ति में भारी इजाफा होने से सरकार को उन्हें काफी मात्रा में पूंजी समर्थन देने की जरूरत है। भारतीय स्टेट बैंक जैसे कुछ बैंकों के पास ही अपने दम पर बाजार से पूंजी जुटाने की क्षमता है। 
फिच रेटिंग के मुताबिक औसत दर्जे के दबाव की स्थिति में भारतीय बैंकों को 10 फीसदी का भारित औसत (डब्ल्यूए) सामान्य इक्विटी टियर-1 (सीईटी1) अनुपात को पूरा करने के लिए जरूरी पूंजी में करीब 15 अरब डॉलर की कमी है। यह स्तर नियामकीय न्यूनतम स्तर से ऊपर पर्याप्त प्रतिरोध मुहैया कराएगा। उच्च दबावग्रस्त परिस्थिति में जहां अर्थव्यवस्था के चरणबद्ध रूप से खुलने के बावजूद अर्थव्यवस्था की वृद्धि में टिकाऊ तौर सुधार नजर नहीं आने से वित्त वर्ष 2022 में यह अंतर बढ़कर करीब 58 अरब पर पहुंचने के आसार हैं।
फिच ने कहा कि सरकारी बैंकों में ही बड़े पैमाने पर पूंजी में कमी आएगी, क्योंकि उच्च दबावग्रस्त परिदृश्?य में थोड़ी मात्रा में पूंजी का ह्रास होने के बावजूद बड़े निजी बैंकों के न्यूनतम जरूरतों से ऊपर ही बने रहने के आसार हैं।        
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कार्यकारियों ने कहा कि वास्तविक तस्वीर अगस्त 2020 में ऋण स्थगन अवधि के पूरे जाने पर ही स्पष्ट होगी। साथ ही, पुनर्गठन के लिए भारतीय रिजर्व बैंक जो रकम देगा उसका असर प्रावधान के दायरे पर पड़ेगा। परिसंपत्ति मानक के उपचार की गुंजाइश के साथ एकबारगी गहरे पुनर्गठन से एक निश्चित सीमा तक दबाव के प्रबंधन में सहायता मिल सकती है।
इनमें से कई जैसे एसबीआई, केनरा, पंजाब नैशनल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा पहले से ही इस साल अपने स्तर पर बाजार से पूंजी जुटाने पर काम कर रहे हैं। एसबीआई को 20,000 करोड़ रुपये तक जुटाने की मंजूरी है और पीएनबी 7,000 करोड़ रुपये तक जुटाने के लिए शेयरधारकों से मंजूरी लेगा।
भारतीय बैंक संघ के मुख्य कार्याधिकारी सुनील मेहता ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकिंग दायरे में समेकन से पूर्व इस बात का मूल्यांकन किया गया था कि बैंकों को कितनी पूंजी की आवश्यकता है। उसी के आधार पर सरकार ने वित्त वर्ष 2020 में इनमें पूंजी डाली थी।      
वास्तव में कुछ योजना पीएनबी, यूनियन बैंक, केनरा बैंक और इंडियन बैंक जैसे संयुक्त संस्थाओं की पूंजी जरूरतों का मूल्यांकन करने की बनी थी। लेकिन यह योजना कोविड-19 के प्रकोप से पहले बनी थी। इस महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को भारी धक्का लगा है। यह दबावग्रस्त परिसंपत्तियों की संख्या बढ़ाने वाला साबित होने जा रहा है।
प्रभावितों के लिए पुनर्गठन पैकेज की उम्मीदें ऊंची हैं। यदि ऐसा होता है तो इससे चालू वित्त वर्ष में पूंजी की जरूरतें सीमित होंगी। मेहता ने कहा कि सरकार को अगले वित्त वर्ष में पूंजी डालने की जरूरत पड़ सकती है।
कुछ उपायों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को झटके को झेलने और दबावग्रस्त मामलों का सामना करने में मदद मिल सकती है। इनमें से एक है फंसे ऋणों के लिए उच्च प्रावधान कवरेज अनुपात (पीसीआर)। दूसरी बात है पिछले अनुभव से मिले सबक के बाद बैंकों ने प्रशासन की पकड़ को मजबूत करने के लिए प्रणाली और निगरानी व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त किया है। 
तीसरी बात है समेकन के कारण बैंकों का बड़ा आकार। सरकार ने संचयी तौर पर विगत पांच वर्ष (वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2020) में बैंकों में करीब 43 अरब डॉलर की पूंजी डाली है।
हालांकि, इस पूंजी निवेश से बैंक की मुख्य पूंजी में कोई अर्थपूर्ण सुधार नहीं हो पाया क्योंकि बैंकों का नुकसान निवेशित पूंजी से दो से तीन गुना अधिक था। सही संदर्भ में देखें तो बैंकों में डाली गई पूंजी का करीब 60 फीसदी हिस्सा पिछले दो वर्षों में डाली गई जिसमें से अधिकांश का उपयोग पूंजीगत कमी की भरपाई के लिए किया गया था। 

First Published - July 13, 2020 | 12:14 AM IST

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