भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ओवरसीज डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (ओडीआई) को आसान बनाने के लिए इनमें बदलाव लाएगा। 2020-21 के लिए रणनीति उन सभी पहलों को समेकित करने और आगे बढ़ाने की है जो पूर्ववर्ती वर्ष में शुरू की गई थीं। इसके अलावा मुख्य जोर यह सुनिश्चित करने पर भी रहेगा कि फेमा परिचालन ढांचा तेजी से बदल रहे वृहद आर्थिक परिवेश की जरूरतों के अनुरूप हो।
नियामक ने भारतीय पक्षों और रेजीडेंट भारतीयों द्वारा ओडीआई की विलंबित रिपोर्टिंग के लिए विलंब शुल्क लागू करने की भी योजना बनाई है।
भारतीय कंपनियों द्वारा बाह्य (आउटवार्ड) प्रत्यक्ष निवेश मजबूत बना हुआ है, क्योंकि इन कंपनियों ने अपने वैश्विक परिचालन में लगातार इजाफा किया है। सालाना रिपोर्ट के अनुसार, शुद्घ बाह्य एफडीआई 2017-18 के 9.1 अरब डॉलर से बढ़कर 2018-19 में 12.6 अरब डॉलर और 2019-20 में 13 अरब डॉलर पर पहुंच गया। बाह्य एफडीआई मुख्य तौर पर इक्विटी और सहायक इकाइयों/संबद्घ उद्यमों (खासकर सिंगापुर, अमेरिका, ब्रिटेन, मॉरिशस, स्विटजरलैंड और नीदरलैंड) के लिए ऋणों के स्वरूप में था, जिनका इस अवधि के दौरान कुल वैश्विक निवेश में 75 प्रतिशत योगदान रहा।
इनमें से ज्यादातर निवेश व्यावसायिक सेवाओं, निर्माण और रेस्तरां तथा होटल सेक्टर में किए गए थे।
आरबीआई ने 2019-20 के लिए अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा है कि फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट रेग्युलेशंस, 2015 के तहत विदेशी एक्सचेंज और मुद्रा से संबंधित प्रावधानों में बदलाव के दायरे में विदेशी एक्चेंज के प्रत्यावर्तन और समर्पण, पजेशन ऐंड रिटेंशन ऑफ फॉरेन करेंसी को शामिल किया जाएगा। ये प्रावधान मौजूदा समय में फेमा के अधीन चार अलग अलग अधिसूचनाओं में शामिल हैं जिन्हें अब एक नियम के दायरे में लाया जाएगा।