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बैंकिंग क्षेत्र को मजबूत बना सकता है रिजर्व बैंक का समाधान

Last Updated- December 14, 2022 | 9:04 PM IST

प्रमुख ऋणदाता येस बैंक, पंजाब ऐंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (पीएमसी बैंक), और लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) परेशानी से ग्रसित नामों में शामिल रहे हैं।
जब बैंकों पर गहरा संकट आया, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने उनके लिए सार्वजनिक या निजी क्षेत्र के बैंक के साथ विलय के आजमाए हुए उपायों पर अमल नहीं किया। इसके बजाय उसने इन्हें बचाने के लिए अलग दृष्टिकोण को अपनाया। येस बैंक के मामले में, भारतीय स्टेट बैंक ने स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए सिर्फ 49 प्रतिशत हिस्सेदारी (निजी ऋणदाताओं द्वारा छोटी हिस्सेदारी खरीदे जाने के साथ) ली। सितंबर 2019 में मोरेटोरियम के दायरे में लाए गए पीएमसी बैंक ने इस महीने एक छोटे वित्त बैंक (एसएफबी) में तब्दील होने के लिए निवेशकों से आवेदन स्वीकार कर सभी को चौंका दिया।
उसने ऐसे सहकारी बैंकों को एसएफबी में तब्दील होने की अनुमति के लिए इस साल आरबीआई द्वारा जारी किए गए निर्देशों पर अमल किया। यदि अच्छी गुणवत्ता वाले निवेशक दिलचस्पी दिखाते हैं तो पीएमसी बैंक एक दिलचस्प परीक्षण मामला बन सकता है। पीएमसी बैंक के जमाकर्ताओं के पास अपनी जमाओं को इक्विटी में तब्दील करने का विकल्प है। इसी तरह, एलवीबी के लिए समाधान कम महत्वपूर्ण नहींं है। जहां नियामक ने भारत में मौजूद विदेशी बैंकों को 10 प्रतिशत हिस्सा (या गंभीर संकट की स्थिति में ज्यादा) खरीदने की अनुमति दी है, वहीं एलवीबी को डीबीएस बैंक इंडिया के साथ विलय के प्रस्ताव इस तरह का पहला मामला होगा। मैक्वेरी कैपिटल के सुरेश गणपति ने कहा, ‘पिछले समय में आरबीआई के प्रयासों को देखते हुए हम इस कदम से आश्चर्यचकित हुए हैं।’
एनविजन कैपिटल के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी नीलेश शाह के लिए संस्थागत दिलचस्पी बरकराररखने के मकसद के साथ बाजार-केंद्रित समाधान बैंकों में निवेशकों को आकर्षित करने की राह में दीर्घावधि उपाय होगा।
31 दिसंबर 2019 तक विदेशी और घरेलू संस्थागत निवेशकों की 28.5 प्रतिशत और गैर-संस्थागत निवेशकों की 43 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ येस बैंक बड़ी हिस्सेदारी वाला बैंक था।
विश्लेषकों का कहना है कि जब बैंक को मोरेटोरियम के दायरे में लाया गया है तो इक्विटी निवेशकों का हित आरबीआई की शीर्ष चिंता नहीं होगा।
एलवीबी के मामले में, शाह का कहना है कि स्वामित्व पैटर्न येस बैंक स्टाइल के सॉल्युशन जैसा नहीं है। वह कहते हैं, ‘यदि इक्विटी निवेशकों को जोखिम पूंजी में रखा जाता है तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना होगा।’ एलवीबी की नकारात्मक नेटवर्थ स्थिति भी सूचीबद्घता समाप्त किए जाने के निर्णय को तर्कसंगत ठहराती है। शाह कहते हैं, ‘डीबीएस बैंक इंडिया एक विनियमित संस्थागत निवेशक है जो एलवीबी के जमाकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करेगा।’ हालांकि क्या इन खास प्रयासों का परिणाम निकलेगा। येस बैंक बोर्ड में अंतरराष्टीय बैंकिंग विश्लेषक अनंत नारायण का कहना है कि इन समाधानों का परिणाम सामने आने में समय लगेगा।
नारायण नए समाधानों के लिए आरबीआई के प्रयासों की सराहना करते हैं, लेकिन उनका मानना है कि यह विलय मोरेटोरियम के बगैर नहीं होगा। उनका कहना है, ‘चाहे येस बैंक हो या एलवीबी, इसे लेकर बाजार दिलचस्पी कायम थी। फिर भी, आरबीआई के हस्तक्षेप के बगैर कुछ नहीं हुआ।’ वह सवालिया अंदाज में कहते हैं कि यदि निवेशक बैंकों की गुणवत्ता को लेकर आशंकित हों तो सौदे स्वाभाविक तौर पर कैसे हो सकते हैं।
फिर भी, उन्हें उम्मीद है कि इन छोटे कदमों से बेहद चर्चित फाइनैंशियल रिजोल्यूशन ऐंड डिपोजिट इंश्योरेंस (एफआरडीआई) बिल के अस्तित्व में आने में मदद मिल सकेगी।

First Published - November 20, 2020 | 1:05 AM IST

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