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केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी के मॉडल पर हो रहा है विचार

Last Updated- December 12, 2022 | 8:42 AM IST

बीएस बातचीत
नीतिगत समीक्षा बैठक के बाद आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास, डिप्टी गवर्नर माइकल देवव्रत पात्र, और डिप्टी गवर्नर बी पी कानूनगो ने विभिन्न विषयों पर बातचीत की। इनमें मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) द्वारा लिए गए निर्णयों के अलावा, बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के लिए जरूरत और केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा से संबंधित घटनाक्रम मुख्य रूप से शामिल थे। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
आरबीआई ने अगले साल अनुकूल रुख का संकेत दिया था और बाजार ने इसे जून में समझा। क्या आप इसे 2021 में बढ़ाना चाहेंगे? क्या तब तक हम दरों के संदर्भ में एलएएफ प्रक्रियाओं के संपूर्ण सामान्यीकरण की उम्मीद कर सकते हैं?

आरबीआई गवर्नर: चीजों को समझने के बाजार का अपना स्वयं का नजरिया है। हमने कहा कि हम अगले साल समायोजन के नजरिये से जुड़े रहेंगे। कुल वृहद आर्थिक हालात तेजी से बदल रहे हैं। इसलिए, हम कदम उठाएंगे, लेकिन हमने जून को उस तारीख के तौर पर निर्दिष्ट नहीं किया है जिसके बाद आगामी मार्गदर्शन समाप्त हो जाएगा। तरलता को लेकर हमारा नजरिया अपनी मौद्रिक नीति के अनुरूप सहयोगात्मक बना रहेगा।

केंद्रीय बैंक के साथ प्रत्यक्ष खातों का क्या मतलब है? और यदि यह कारगर है तो क्या इससे हमें वह रास्ता मिलेगा जिसके जरिये हम केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी तक पहुंच बनाने में सक्षम होंगे?
आरबीआई गवर्नर: यह एक बढ़ा ढांचागत सुधार है, क्योंकि दुनिया में अमेरिका और ब्राजील के अलावा कई देशों ने ऐसा किया है। लेकिन एशिया में, हम ऐसा करने वाले पहले देश हैं। जीसेक बाजार को छोटे निवशकों की पहुंच के दायरे में लाने के लिए सरकार और आरबीआई दोनों ने प्रयास किए थे। स्टॉक एक्सचेंजों के जरिये हमारे पास एक एग्रीगेट मॉडल है, लेकिन अब हम छोटे निवेशकों को प्रत्यक्ष पहुंच प्रदान कर रहे हैं।
डिप्टी गवर्नर कानूनगो: कई वर्षों से हम सरकारी प्रतिभूति बाजार का दायरा बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे और सरकारी उधारी के आकार के साथ, यह बेहद जरूरी है कि निवेशक आधार व्यापक बनाया जाए। अब तक, छोटे निवेशक एग्रीगेशन मॉडल के जरिये एनडीएस-ओएम तक पहुंच बना सकते हैं और स्टॉक एक्सचेंजों को मांग को बढ़ाने और इसे एनडीएस-ओएम में आरबीआई के साथ पेश करने की अनुमति थी। भविष्य में, हम इससे आगे बढऩा चाहेंगे, जिससे कि छोटे निवेशक अपनी जी-सेक जरूरतों के आधार पर एनडीएस-ओएम सिस्टम में प्रत्यक्ष रूप से बोली लगा सकें। इसके अलावा, छोटे निवेशक ई-कुबेर सिस्टम में आरबीआई के साथ गिल्ट अकाउंट भी खोल सकते हैं। साथ ही आंतरिक कार्य समूह केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी के मॉडल पर विचार कर रहा है।

जमाओं के संदर्भ में बैंकिंग व्यवस्था पर रिटेल डायरेक्ट स्कीम का क्या प्रभाव पड़ा है?
गवर्नर: जैसे ही जीडीपी बढ़ती है और अर्थव्यवस्था का आकार मजबूत होता है, बचत और जमाओं की कुल मात्रा में स्वाभाविक तौर पर इजाफा होता है। बैंकों के कई अन्य कार्य और सेवाएं हैं जो वे मुहैया करा सकते हैं। इसलिए हमारा मानना है कि इससे बैंकों या म्युचुअल फंडों के लिए जमाओं का प्रवाह प्रभावित नहीं होगा।

क्या आरबीआई फॉर्वर्ड प्रीमियम रेट्स को लेकर कुछ करना चाहता है?
डिप्टी गवर्नर पात्रा: हमारा पहला उद्देश्य अपने घरेलू बाजारों को इस ऊंचे वैश्विक पूंजी प्रवाह से बचाना है। पूंजी प्रवाह में भारी तेजी आई है और सिर्फ ऐसा नहीं है कि प्रतिफल की तलाश से संंधित है। हमारे बाजार घरेलू-केंद्रित बने रहेंगे। इसलिए काफी हद तक, प्रीमियम में तेजी आई है और हम इसे लेकर सतर्क हैं, लेकिन अपने बाजार परिचालन के जरिये हम बाजार के सभी खंडों में क्रमबद्घ स्थिति सुनिश्चित करेंगे।
क्या अब यह स्पष्ट है कि वृद्घि के आंकड़े ताजा उपभोक्ता मांग पर केंद्रित हैं, न कि पिछली रुकी हुई मांग पर?
गवर्नर: हां, यह तेजी से स्पष्ट हो रहा है। हम कुछ हाई स्पीड संकेतकों पर नजर रख रहे हैं और इसकी सूची लंबी है। लगभग सभी सेगमेंटों में हम मांग में वृद्घि देख रहे हैं। इसलिए, मांग अब दबी हुई मांग से आगे बढ़कर वास्तविक मांग से संबंधित है।

क्या दूसरी एक्यूआर (ऐसेट क्वालिटी रिव्यू) की जरूरत है?
गवर्नर: पिछले दो वर्षों में, हम वाकई अपनी निगरानी पर निर्भर रहे। एनबीएफसी के संदर्भ में, मैंने दो साल पहले कहा था कि हमारी सुपरविजन टीम एनपीए से संबंधित स्थिति का सही आकलन करने के लिए कोशिश कर रही है। इसी तरह बैंकों के संदर्भ में हम प्रत्येक बैंक में एनपीए ही सही स्थिति का स्वयं आकलन कर रहे हैं। इसलिए हमें संपूर्ण स्थिति का अंदाजा है। हम वही कर रहे हैं जो एक्यूआर में जरूरी होता है।

First Published - February 5, 2021 | 11:21 PM IST

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