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सरकार से हमें फिलहाल ज्यादा पूंजी लेने की जरूरत नहीं है

Last Updated- December 09, 2022 | 10:51 PM IST

इलाहाबाद बैंक ने सुधार की कार्रवाई के तहत कम मुनाफे वाले और ज्यादा ब्याज दर वाली जमाओं को हटा रहा है। इसके अतिरिक्त बैंक सोने के सिक्के, कैश प्रबंधन बिजनेस के जरिए फीस पर आधारित कारोबार को बढ़ाने पर ध्यान दे रहा है।


इलाहाबाद बैंक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के. आर. कामत ने नम्रता आचार्य को बताया कि बैंक को फि लहाल अतिरिक्त पूंजी की जरूरत नहीं है क्योंकि बैंक से जुड़े जोखिम पर नियंत्रण कर लिया गया है।


तीसरी तिमाही में बैंक का कारोबार कैसा रहा ?

पिछली तिमाही सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद फरोख्त के लिहाज से बेहतर रही है। इससे इक्विटी बाजार के असर को खत्म करने का बैंकों को बेहतर मौका मिला। उद्योगों के लिए यह संतुलित तिमाही है। मौजूदा साल में कई तरह की चुनौतियां हैं?

फंड जुटाने के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?

हमें अतिरिक्त पूंजी जुटाने के लिए सरकार से संपर्क से करने की जरूरत ही नहीं है। क्योंकि सितंबर तक पूंजी पर्याप्तता 11.46 फीसदी थी। अब जोखिम कम हुआ है तो पूंजी पर्याप्तता पर भी दुबारा से काम किया गया है और अब यह 12.20 फीसदी है।

हमलोगों ने ऋण उपकरणों का पूरा इस्तेमाल नहीं किया है। बैंक के दूसरे दर्ज की पूंजी सीमा 1,900 करोड़ रुपये है और पहले दर्जे की सीमा लगभग 700 करोड़ रुपये है जो कमाई के अतिरिक्त हैं। बिना सरकार की मदद के भी हमारे पास पूंजी जुटाने की पर्याप्त क्षमता है।

अगर बाजार के हालात अच्छे हैं तो हम फंड भी जुटा सकते हैं। लेकिन यह केवल पूंजी पर्याप्तता को पूरा करने के लिए होगा।


सत्यम प्रकरण के मद्देनजर अब आप कॉरर्पोरेट सेक्टर को कर्ज देने में कितने सतर्क रहेंगे?

हमारा सत्यम से कोई लेना-देना नहीं था। अब हम कर्ज देने में ज्यादा सतर्क होंगे। कर्ज देते वक्त बैंकों को विवेक से काम लेने की जरूरत है और उन्हें बैलेंस शीट की भी जांच करनी चाहिए।

रिटेल में कोई नई योजना शुरु करने के बारे में सोच रहे हैं?


हम लोग अपनी योजनाएं फिर से पेश कर रहे हैं। हम सोने के कारोबार में बहुत सक्रिय हैं। हम लोग अप्रैल से सोने के सिक्के की बिक्री भी शुरू कर रहे हैं। सर्राफा कारोबार में भी प्रवेश कर रहे हैं।

इसमें सोने के आयात करने और ग्राहकों को बेचने का काम किया जाएगा। हम अपने मौजूदा उधारकर्ताओं के लिए नकदी प्रबंधन सेवाओं का विस्तार कर रहे हैं मसलन चेक जुटाने और रुपये भेजने जैसी सेवाएं भी दी जाएंगी।

थर्ड पार्टी प्रोडक्ट में म्युचुअल फंड की बिक्री को कम किया गया है। लेकिन इंश्योरेंस की बिक्री को बढ़ा दिया गया है।

बैंकिग उद्योग के लिए एनपीए का प्रबंधन एक बड़ी चिंता होती है?

एनपीए हमेशा से ही बैंकिंग उद्योग के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। हमारा सकल एनपीए सितंबर तक 1.93 फीसदी और शुद्ध 0.85 फीसदी था। एनपीए प्रबंधन के लिए हमने एक रणनीति बनाई है।

5 लाख ने कम के लोन की वसूली के लिए कर्मचारियों को कुछ इंसेंटिव दिया जाएगा ताकि वे प्रोत्साहित हों। भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के दिशा निर्देशों के मुताबिक हम छोटे और मझोले उद्योग वाले सेक्टर के लोन को फिर से तैयार कर रहे हैं।

बैंक ने जमाओं के साथ वृद्धि का कितना लक्ष्य रखा है?

इस वित्तीय वर्ष में जमाओं में बढ़ोतरी 17 फीसदी होगी और ऋण 20 फीसदी होगा। बैंक  ने काफी सोच समझकर ज्यादा ब्याज दरों वाली जमाओं को कम किया है। मार्च 2008 तक हमलोगों ने 20,000 करोड़ रुपये की बड़ी जमाओं के स्तर को बनाए रखा है।

वर्ष 2008-09 में ज्यादा ब्याज दरों वाली जमाओं में से 6,000 करोड़ रुपये कम किए है। यह हमारे लिए फायदेमंद है क्योंकि हमें बाजार से अब सर्टिफिकेट ऑफ डिपोजिट (सीडी) मिलेगा। इसलिए जमाओं में बढ़ोतरी अब ज्यादा नहीं होगी।

अब हम महत्वपूर्ण जमाओं पर ध्यान दे रहे हैं। हम कम लाभ वाले ऋणों के बजाय ज्यादा लाभ वाले ऋणों को तरजीह दे रहे हैं।

जमाओं में संतुलित गति से बढ़ोतरी हो रही है उसी तरह से कर्ज में भी ऐसी ही स्थिति है। बैंलेंस शीट में भी एक तरह से बदलाव नजर आ रहा है इससे आधार मजबूत रहा।

जब तरलता की कोई समस्या नहीं थी तब हमलोगों ने सब पीएलआर रेट पर उधार दिया। अब हम समझ सकते हैं कि इस दर पर कोई उधार नहीं दे सकता। इससे हमें अपने आधार को और भी सुधारने में मदद मिलेगी।

इस वक्त व्यवसायिक रियल एस्टेट, एसएमई (छोटे एवं मझोले उद्योग) जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के लिए बैंक की कर्ज देने की रणनीति क्या होगी?

एसएमई में जहां भी कहीं दिक्कतें हैं वहां इसे फिर से बनाने की संभावना जरूर है। यह जरूरी है उनकी मदद के लिए आगे आया जाए। मुमकिन है कि हमें कुछ एनपीए मिले लेकिन हम किसी सेक्टर पर ऐसे प्रतिबंध नहीं लगा सकते।

हमने जितना कर्ज दिया है उनमें से एसएमई का 7 फीसदी हिस्सा है। रियल एस्टेट में हम कर्ज देने में ज्यादा सतर्क होंगे।

First Published - January 22, 2009 | 9:22 PM IST

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