अर्थव्यवस्था में सुधार की गति भले ही धीमी हो लेकिन इसमें तेजी लाने के लिए जो भी कदम उठाने की जरूरत होगी, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) उसके लिए पूरी तरह तैयार है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज एक कार्यक्रम में ये बातें कहीं।
उद्योग संगठन फिक्की के एक कार्यक्रम को ऑनलाइन संबोधित करते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा कि कुछ सुधार हुआ है लेकिन कुछ क्षेत्रों में अभी इसका पूरा असर नहीं दिखा है। उन्होंने कहा, ‘अर्थव्यवस्था को बहाल करने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों से सभी धीरे-धीरे सुधार होने की उम्मीद है।’
अर्थव्यवस्था में स्थायित्व लाने और सुधार तेज करना फौरी तौर पर नीतिगत प्राथमिकता है। लेकिन कोविड के बाद मध्यम अवधि के लिए भी नीतियां उतनी ही महत्त्वपूर्ण होंगी। इस बारे में गवर्नर ने मानव पूंजी और उत्पादकता बढ़ाने एवं वैश्विक आपूर्ति शृंखला में हिस्सेदारी हासिल करने सहित पांच प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देने का सुझाव दिया।
उद्योग के प्रमुखों द्वारा दबाव वाले खातों के समाधान से संबंधित नियमों को आगे और उदार करने के अनुरोध पर दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक के लिए जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना और वित्तीय स्थायित्व लाने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
दास ने कहा, ‘बैंकिंग तंत्र में प्रमुख ध्यान जमाकर्ताओं के पैसों की रक्षा करने पर है। आखिरकार, वह जमाकर्ताओं का पैसा होता है जिसे बैंक कर्ज में देते हैं।’ इसमें छोटे जमाकर्ता, मध्यवर्ग के जमाकर्ता और सेवानिवृत्त जमाकर्ता शामिल हैं, जो बैंक जमा के ब्याज पर निर्भर रहते हैं, उनकी रक्षा करने की जरूरत है। इसके साथ ही बैंकिंग क्षेत्र के वित्तीय स्थायित्व पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
भारत जैसे उभरते बाजारों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में बैंकों की अहम भूमिका है क्योंकि वे कर्ज उपलब्ध कराने में आगे रहते हैं। इसलिए जमाकर्ताओं के हितों के साथ दास ने कहा, ‘हम नहीं चाहेंगे कि पहले जैसी स्थिति हो। चार-पांच साल पहले बैंकों में गैर-निष्पादित आस्तियों (एनसीए) का स्तर काफी ज्यादा हो गया था। इसके साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना है कि कोविड ने बड़े पैमाने पर कारोबार को नुकसान पहुंचाया है, खास तौर पर जिन्होंने बैंकों से कर्ज लिया है। उन्हें भी थोड़ी राहत की जरूरत है।’
दास ने कहा कि ऐसे कारोबार जो सही चल रहे हैं लेकिन अस्थायी अड़चनों की वजह से नकदी की किल्लत से जूझ रहे हैं, उनका भी ध्यान रखना होगा। उन्होंने कहा कि एनपीए स्तर को कम रखते हुए आर्थिक सुधार को सुगम बनाना सुनिश्चित करने के लिए संतुलन साधने की जरूरत है।
दास ने कहा कि आरबीआई गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र (एनबीएफसी) को बैंकों की तरह ही रियायत नहीं दे सकता है क्योंकि एनबीएफसी अभी तक सख्त नियमन के दायरे में नहीं आई है।