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BS BFSI Summit: कामयाबी के लिए बैंक का दर्जा नहीं चाहिए, सेवा देने के लिए अलग-अलग मॉडल की जरूरत

रेवणकर ने सुझाव दिया कि अगर एनबीएफसी को बैंकों में बदलना ही पड़े तो यह काम धीमी गति से और सहजता से होना चाहिए।

Last Updated- November 07, 2024 | 12:03 AM IST
BS BFSI Summit: Bank status is not required for success, different models are needed to provide services कामयाबी के लिए बैंक का दर्जा नहीं चाहिए, सेवा देने के लिए अलग-अलग मॉडल की जरूरत

BS BFSI Summit: देश की अग्रणी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के कई प्रमुखों का यह स्पष्ट मत है कि उन्हें कामयाबी के लिए पारंपरिक बैंकों की तरह काम करने की जरूरत नहीं है। बुधवार को आयोजित बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट के दौरान बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक तमाल बंद्योपाध्याय के साथ बातचीत के दौरान आदित्य बिड़ला कैपिटल की मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशाखा मुलये ने कहा कि एनबीएफसी अपने विशिष्ट मॉडल के साथ अपने दम पर जरूरी भूमिका निभा सकती हैं। उन्होंने कहा, ‘हमारा देश बहुत बड़ा है और यहां सेवा देने के लिए हमें अलग-अलग मॉडल की जरूरत है।’ मुलये ने जोर देकर कहा कि एनबीएफसी की अपनी मजबूती और चुनौतियां हैं और उन्हें अपने अस्तित्व के लिए बैंक में बदलने की जरूरत नहीं है।

श्रीराम फाइनैंस के एक्जीक्यूटिव वाइस-प्रेसिडेंट उमेश रेवणकर ने बैंकों और एनबीएफसी के करीबी रिश्तों के बारे में बात की। खासतौर पर फंडिंग की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ‘एनबीएफसी को ऋण देते समय बैंक सतर्कता बरतते हैं लेकिन वे पूरी तरह पीछे नहीं हट रहे हैं।’

उन्होंने यह भी कहा कि एनबीएफसी अक्सर उन जगहों पर ग्राहकों तक पहुंचती हैं जहां बैंक नहीं पहुंच पाते। उन्होंने कहा कि इन संस्थाओं ने आवास वित्त जैसे क्षेत्रों में एक सफल मॉडल तैयार किया है। रेवणकर ने सुझाव दिया कि अगर एनबीएफसी को बैंकों में बदलना ही पड़े तो यह काम धीमी गति से और सहजता से होना चाहिए। उन्होंने कहा कि श्रीराम फाइनैंस टिकाऊ ढंग से बढ़ रही है और उसकी जमाओं में सालाना आधार पर 20 फीसदी इजाफा हुआ है।

पीरामल कैपिटल ऐंड हाउसिंग फाइनैंस के प्रबंध निदेशक जयराम श्रीधरन ने इस बात को रेखांकित किया कि एनबीएफसी ने गोल्ड और कार लोन के जरिये वित्तीय नवाचार को अंजाम दिया जिसे बाद में बैंकों ने भी अपनाया। हालांकि उन्होंने अनुमान जताया कि नियामकीय बदलावों और बाजार प्रतिस्पर्धा के कारण एनबीएफसी की तादाद मौजूदा 9,325 से कम होकर 3,000-4,000 तक सिमट सकती है।

उन्होंने जोर दिया कि बैंकों पर निर्भरता कम करने के लिए फंडिंग के स्रोतों में विविधता जरूरी है। फिलहाल एनबीएफसी की उधारी का 60 से 70 फीसदी बैंकों से आता है। उन्होंने कहा कि इसे कम करके 40 प्रतिशत तक लाना होगा।

टाटा कैपिटल के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी राजीव सभरवाल ने कहा कि एनबीएफसी को सफलता मिली क्योंकि उनके पास ऐसा मॉडल है जो कारगर है। उन्होंने आगे कहा कि बैंकों के पास जहां कुछ लाभ हैं वहीं कई एनबीएफसी का आकार और संचालन छोटे बैंकों से बेहतर है।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक के हालिया निर्णय मसलन एनबीएफसी को दिए जाने वाले ऋण का जोखिम भार बढ़ाने जैसे फैसलों ने उधारी की लागत बढ़ाई है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि एनबीएफसी को बेहतर ऋण ढांचे पर काम करना चाहिए और कम से कम 20 फीसदी राशि पूंजी में जानी चाहिए।

आरईसी लिमिटेड के चेयरमैन और एमडी विवेक कुमार देवांगन ने रिजर्व बैंक के हालिया मसौदा दिशानिर्देशों के बारे में कहा कि उन्होंने बैंकों और एनबीएफसी को अपनी रणनीतियों पर विचार करने को प्रेरित किया है।

First Published - November 7, 2024 | 12:03 AM IST

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