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टैक्स बचाने के साथ पाइए बेहतर प्रतिफल

Last Updated- December 09, 2022 | 11:05 PM IST

करदाताओं द्वारा सामान्यत: 80सी से संबध्द इंस्ट्रूमेंट में दिसंबर या जनवरी में निवेश करने की प्रक्रिया शुरू की जाती है।


आमतौर पर परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां (एएमसी) और बीमा प्रदाता इन्हीं दो महीनों में कर बचत योजनाओं की घोषणा करते हैं। म्युचुअल फंडों की बात की जाए तो, पांच फंड हाउस ने पिछले महीने इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) को बाजार में उतारा।

इनमें एडिलवाइस म्युचुअल फंड, क्वांटम म्युचुअल फंड, भारती एक्सा म्युचुअल फंड, आईडीएफसी म्युचुअल फंड और जेपी मोर्गन म्युचुअल फंड शामिल हैं। इन योजनाओं की घोषणा के बाद ओपन-एंडेड ईएलएसएस का आंकडा 35 पर पहुंच गया है।

ईएलएसएस फंड का चुनाव करना उस समय काफी कठिन हो जाता है, जब खासकर वितरक या कोई प्रतिनिधि जल्दबाजी में फंड बेचने की कोशिश करता है।

लेकिन ईएलएसएस का चुनाव करने से पहले इसकी सही जानकारी को टटोलने के लिए यहां हम कुछ अहम तथ्यों को उजागर कर रहे हैं कि ताकि इन योजनाओं में सही तरीके से निवेश किया जा सके।

ईएलएसएस इक्विटी-डाइवर्सिफाइड  फंड है जिसकी  लॉक-इन अवधि 3 साल की होती है। इस योजना में निवेश करने वाले आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत निवेश के आधार पर आयकर में 1 लाख रुपये तक की आय पर छूट का लाभ उठा सकते हैं।

अधिकांश निवेश सलाहकार इस योजना में निवेश की सलाह देते हैं क्योंकि लॉक-इन अवधि के कारण फंड प्रबंधकों को उनकी सक्षमता समय पर साबित करने में मदद मिलती है।

साथ ही इस योजना में निवेशकों के लिए भारी बचत का प्रावधान होता है क्योंकि इसमें तरलता की कोई कमी नहीं होती है।

इस फंड का एक अन्य असरकारक नजरिया यह है कि आप इसमें सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के तहत निवेश कर सकते हैं और ढेर सारी कर सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं, जिसमें शून्य दीर्घकाल पूंजी बढ़ोतरी का भी समावेश है।

हालांकि, ईएलएसएस में निवेश करने से पहले यह सबसे अहम है कि आप इसकी कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताओं को जान जाएं।

निवेश का तरीका 

किसी इक्विटी डाइवर्सिफाइड योजना की तरह इस श्रेणी में भी कुछ फंड उनके निवेश पध्दतियों की तरह आक्रमक और अन्य संतुलित हैं। निवेशक दीर्घ अवधि तक अच्छे नतीजों के लिए पिछले रिकार्डों को टटोल सकता है।

यह प्रक्रिया निवेशक को फंड के निवेश एवं प्रबंधन पध्दतियों को समझने में काफी सहायक सिध्द हो सकता है।

साथ ही आपके जोखिम उठाने की रुपरेखा पर निर्भर करता है, दीर्घकाल तक प्रदर्शन करने वाली योजनाओं (5 वर्षों से अधिक) को चुनें, इन फंडों के रिटर्न की तुलना मध्यावधि (तीन) – और अल्पकालिक (एक वर्ष) में करें। यह प्रक्रिया आपको इसकी अनुकूलता की साफ तस्वीर दर्शाने में सहायक सिध्द होगी।

पूर्ववर्ती या नए फंडों का चुनाव 

पूर्ववर्ती फंडों में निवेश करने का फायदा यह है कि ये पिछले प्रदर्शनों एवं पोर्टफोलियो के आधार पर निवेशक को फैसला करने की अनुमति देता है। नए फंडों की बात की जाय तो यह स्पष्ट है कि इनका कोई पोर्टफोलियो नहीं होता है।

म्युचुअल फंड रिसर्च फर्म –  वैल्यू रिसर्च के मुख्य कार्यकारी अधिकारी , धीरेंद्र कुमार का कहना है, यह हमेशा बेहतर होता है कि किसी योजना के बारे में पूरी तरह अनभिज्ञ होने की बजाय किसी ऐसी योजना का चुनाव किया जाना चाहिए जिसे लोग जानते हैं।

हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि नए फंडों को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया जाय। वित्तीय नियोजन कंपनी ट्रांसेंड इंडिया के निदेशक, कार्तिक झवेरी का कहना है, फंड हाऊस की पूर्ववर्ती योजनाओं की ओर देखें।

साथ ही नया ईएलएसएस भी अच्छा हो सकता है, यदि फंड हाऊस पहले से ही इस कारोबार में है और इसकी पूर्ववर्ती योजनाएं अच्छा कर रही हैं।

अतिरिक्त सुविधाएं

कुछ टैक्स-सेविंग फंडों द्वारा मुफ्त बीमा भी मुहैया कराया जाता है। उदाहरणार्थ, बिरला सन लाइफ टैक्स रिलीफ और एचएसबीसी टैक्स सेवर इक्विटी द्वारा गंभीर बीमारियों के बीमा की सुविधा दी जाती है तथा डीडब्ल्यूएस टैक्स सेविंग मुफ्त जीवन बीमा की सुविधा देता है।

घल्ला ऐंड भंसाली सिक्यूरिटीज के निदेशक, मुकेश देढ़िया का कहना है, यदि इन योजनाओं से थोड़ा लेकिन एकसमान रिटर्न मिलता है, तब भी मैं इन योजनाओं में निवेश करने की सलाह दूंगा। बड़ी कम मात्रा में लोग भारत में गंभीर बीमारियों के लिए बीमा योजनाओं की खरीददारी करते हैं।

फंड प्रबंधक

इक्विटी-डाइवर्सिफाइड योजना से भिन्न ईएलएसएस में निवेश करने से पहले निवेशक को फंड प्रबंधक की सहायता लेने के पर्याय को अंतिम सीढ़ी की तौर पर आजमाना चाहिए।

गौरतलब है कि इन योजनाओं में लॉक-इन अवधि का समावेश होता है, साथ ही फंड हाऊस की प्रतिष्ठा काफी मायने रखती है। फंड प्रबंधक अपनी नौकरी को किसी भी वक्त छोड़ सकता है, लेकिन फंड हाऊस का लंबे वक्त का तजुर्बा दीर्घकाल के लिए लाभ पहुंचा सकता है।

डिविडेंड या ग्रोथ

निवेशक पर निर्भर करता है कि वह ग्रोथ को चुनें या डिविडेंड विकल्प। पहले विकल्प में लाभांश (डिविडेंड) को पुन: फंड में निवेश किया जाता है, जिसके बाद में लाभांश का भुगतान किया जाता है।

झवेरी का कहना है, कोई निवेशक है, जो मात्र कर बचाने के लिए पैसे लगा रहा है तो उसे डिविडेंड विकल्प का चयन करना चाहिए। निवेशक की सच्चाई यह है कि उसकी आय काफी अच्छी है।

वे 1 लाख रुपये का निवेश पूरी आत्मीयता के साथ धारा 80सी के तहत करते हैं और बाद में उन्हें अपनी पूंजी का कुछ हिस्सा कर-मुक्त लाभांश के तौर पर प्राप्त होता है।

कई बार एजेंटों और ब्रोकरों द्वारा निवेशकों को लाभांश घोषित होने के दो-तीन महीने पहले ईएलएसएस में निवेश करने के लिए उत्साहित किया जाता है।

जिससे उन्हें कर-मुक्त लाभांश मिलने में सहायता मिलती है और साथ ही उन परिस्थितियों में पूंजी का कुछ हिस्सा अर्जित करने में मदद मिलती है जहां निवेश तीन वर्षों के लिए पूरी तरह लॉक-इन हो चुका है।

झवेरी ने आगे बताया, कुछ ब्रोकर अधिक कमीशन पाने की लालच में निवेशकों को अन्य इक्विटी-डाइवर्सिफाइड फंड में निवेश करने की सलाह देते हैं। लेकिन झवेरी का मानना है कि कई बार ऐसा ब्रोकरों द्वारा मुनाफा कमाने की लालच में किया जाता है।

First Published - January 25, 2009 | 9:13 PM IST

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