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मूल वेतन घटा तो ग्रेच्युटी पर चोट

Last Updated- December 15, 2022 | 4:27 AM IST

हाल ही में कई कंपनियो ने कर्मचारियों के वेतन घटा दिए हैं, जिसका बड़ा असर उन कर्मचारियों पर पड़ेगा, जिनका रिटायरमेंट करीब है। उनकी आय पर अभी तो कैंची चल ही गई है, सेवानिवृत्त होने पर उन्हें जो ग्रेच्युटी मिलनी थी, उसकी रकम भी कम हो सकती है। ग्रेच्युटी सेवानिवृत्ति के बाद एकमुश्त मिलने वाली राशि है। आम तौर पर पांच साल तक किसी कंपनी में काम करने वाला कर्मचारी इसका हकदार हो जाता है।
नुकसान इसलिए हो सकता है क्योंकि ग्रेच्युटी तय करने के लिए मूल वेतन देखा जाता है। कर्मचारी ने जितने साल कंपनी में काम किया होता है, उसे और मूल वेतन को मिलाकर ग्रेच्युटी निकाली जाती है। इसका सूत्र होता है मासिक वेतन & साल की संख्या & 15/26
आरएसएम इंडिया के संस्थापक सुरेश सुराना कहते हैं, ‘हालांकि अधिनियम में ‘आखिरी वेतन’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है, मगर ग्रेच्युटी की गणना के लिए उपयोग में आने वाले वेतन शब्द में आखिरी मूल वेतन और महंगाई भत्ता (डीए) शामिल है।’ मगर सेवानिवृत्ति एवं लाभ क्षेत्र के स्वतंत्र सलाहकार अनिल लोबो कहते हैं, ‘यदि कोई कंपनी अधिनियम का पालन करती है, तो ग्रेच्युटी की अधिकतम राशि 20 लाख रुपये होती है। हालांकि कपनी अधिक राशि का भी भुगतान कर सकती है। लेकिन 20 लाख रुपये के अलावा जो भी रकम मिलेगी, उस पर सरकार कर वसूलेगी।’
वेतन कटौती का प्रभाव उन मदों पर निर्भर करेगा जिनमें कमी की गई है। सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार और पर्सनलफाइनैंसप्लान के संस्थापक दीपेश राघव कहते हैं, ‘यदि किसी कर्मचारी के मूल वेतन और डीए में कटौती की गई है, तो उसकी ग्रेच्युटी प्रभावित होगी। मगर इनके बजाय किसी दूसरे मद में कटौती कर दी गई है तो उनकी ग्रेच्युटी पर कोई असर नहीं होगा।’ विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश कंपनियों ने मूल वेतन में कमी की है। मर्सर में बिजनेस लीडर-भारत (स्वास्थ्य तथा धन) प्रीति चन्द्रशेखर कहती हैं, ‘आम तौर पर वेतन कटौती विभिन्न भत्तों या वेतन के दूसरे मदों से की जाती है और मूल वेतन पर कोई असर नहीं पड़ता।’
मगर मूल वेतन घट ही गया हो तो कर्मचारी क्या करें? वे अपने नियोक्ता से बात कर सकते हैं ताकि उनके मूल वेतन से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाए। कर्मचारी इतना ही कर सकते हैं। उनका अनुरोध मानना या नहीं मानना कंपनी पर निर्भर करता है। लोबो कहते हैं, ‘यह अभूतपूर्व संकट है, इसलिए कंपनियों को अभिभाव की तरह नजरिया रखना चाहिए। कर्मचारी ने अगर इतने लंबे अरसे तक कंपनी के लिए काम किया है तो कंपनी को भी ग्रेच्युटी का हिसाब लगाते समय कोविड-19 वाली कटौती से पहले का मूल वेतन देखना चाहिए।’
वकीलों का कहना है कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम के प्रावधानों के हिसाब से ग्रेच्युटी आखिरी महीने में मिले वेतन पर ही आधारित होगी। डीएसके लीगल के पार्टनर, नंद किशोर कहते हैं, ‘ग्रेच्युटी देने का मकसद कर्मचारी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना और सेवानिवृत्ति के बाद जीवन जीने के लिए सक्षम बनाना है। साथ ही ग्रेच्युटी की गणना कर्मचारी के आखिरी वेतन से इसीलिए की जाती है क्योंकि उसे मिला सबसे ज्यादा वेतन वही होता है।’ उन्होंने कहा कि स्पष्टीकरण या कोई खास कानून नहीं होने पर नियोक्ता ग्रेच्युटी की गणना के लिए अंतिम वेतन को ही शामिल करते हैं। वेल्थ 360 में मुख्य वित्तीय सलाहकार अनुज शाह कहते हैं, ‘ग्रेच्युटी किसी तरह की जिम्मेदारी या कानूनी तौर पर बाध्य भुगतान नहीं है। अगर कोई कंपनी निर्धारित सीमा से अधिक भुगतान करना चाहती है, तो वह कर सकती है।’
हालांकि मूल वेतन में कटौती से कर्मी को झटका लगेगा लेकिन इससे उसकी सेवानिवृत्ति योजनाएं प्रभावित नहीं होंगी। राघव कहते हैं, ‘मोटे तौर पर, एक व्यक्ति को काम के प्रत्येक वर्ष के लिए 15-दिन का मूल (यह मानते हुए कि उसे डीए नहीं मिलता) वेतन मिलता है। यदि उसने 20 वर्षों तक काम किया है, तो उसे ग्रेच्युटी के रूप में 10 महीने का मूल मिलेगा। अगर उनके बेसिक में 20 फीसदी की कटौती की गई है, तो उन्हें दो महीने के बेसिक वेतन का नुकसान होगा। इससे वह प्रभावित अवश्य होगा लेकिन अगर वह बचत कर रहा है, तो यह उसकी सेवानिवृत्ति की योजना को प्रभावित नहीं करेगा।’

First Published - July 23, 2020 | 12:32 AM IST

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