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बॉन्ड बाजार में बढ़ रही है कंपनियों की दिलचस्पी

Last Updated- December 09, 2022 | 10:20 PM IST

वैश्विक संकट की वजह से मौजूदा वित्तीय माहौल में रेटिंग एजेंसियों के समक्ष भी तमाम तरह की चुनौतियां हैं।


घरेलू रेटिंग एजेंसी क्रिसिल लिमिटेड हमेशा उभरते पहलुओ पर नजर रखती है। धीरेन शाह और जितेंद्र कुमार गुप्ता ने कंपनी की रणनीति, भविष्य की योजनाएं और भारतीय बाजार की संभावनाओं पर क्रिसिल की एमडी और सीईओ रूपा कुड़वा से की बात :

कॉरपोरेट बॉन्ड रेटिंग बाजार की क्या स्थिति है?

अगर स्ट्रक्चर्ड वित्तीय कारोबार को छोड़ दें, तो कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट में विकास की राह बड़ी मुश्किल नजर आ रही है। वित्त वर्ष 2006 की बात करें, तो बॉन्ड बाजार करीब 90,000 करोड़ रुपये का था, जिसमें 10,000 करोड़ रुपये स्ट्रक्चर्ड फाइनैंस के तहत था।

वर्ष 2008 में बॉन्ड बाजार 1,73,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जबकि स्ट्रक्चर्ड कंपोनेंट करीब 70,000 करोड़ रुपये का था। यानी कि स्ट्रक्चर्ड फाइनैंस में इस दौरान काफी तेजी आई। इसकी मुख्य वजह वित्तीय बाजार की अनियमितता थी।

बॉन्ड बाजार की स्थिति में कब तक सुधार आने की संभावना है?

पिछले माह में हमने बाजार में नया ट्रेंड देखा। विनिर्माण कंपनियां, जो कुछ समय पहले तक घरेलू बाजारों से फंड की व्यवस्था कर रही थीं। लेकिन अब वे बॉन्ड मार्केट का रुख कर रही हैं।

आपके बैंक लोन रेटिंग कारोबार में बेसल-2 मानक का किस तरह प्रभाव पड़ता है?

बेसल-2 के तहत रिजर्व बैंक ने कहा है कि वैसे सभी कर्जदाता, जिन्हें 10 करोड़ रुपये से ज्यादा की बैंकिंग सुविधा मिली हुई है, वे मार्च 2010 तक चरणबद्ध तरीके से रेटिंग हासिल करें। इससे हमें अच्छा अवसर मिल सकता है।

बहुत सी ऐसी कंपनियां, जो पहले रेटिंग के दायरे में नहीं आती थीं, उन्हें भी अब रेटिंग प्राप्त करनी होगी। वर्ष 2007 में जहां हमारी कंपनी करीब 400 कंपनियों की रेटिंग करती थी, वहीं 2008 में इसकी संख्या बढ़कर 1,200 पहुंच गई। अनुमान के मुताबिक, करीब 7000 से 9,000 कंपनियों को रेटिंग की दरकार है।

इसका मतलब यह हुआ कि अर्थव्यवस्था में सुधार से अधिक मार्जिन मिलेगा?

नहीं, मार्जिन में थोड़ी-गिरावट आ सकती है। बहुत सी कंपनियां बैंक लोन रेटिंग के लिए आ रही हैं और उनमें से बहुत सी कंपनियां छोटी हैं। ऐसे में कीमत अहम मुद्दा है और ये कंपनियां कम शुल्क पर ही रेटिंग हासिल करना चाहती हैं।

लेकिन हम मार्जिन बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। इसके लिए तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर आप दो स्टील कंपनियों की रेटिंग करते हैं, तो आपका खर्च बढ़ जाता है। लेकिन अगर 50 कंपनियों की रेटिंग करनी हो, तो काम आसान हो जाता है।

क्रेडिट रेटिंग के संबंध में आपकी रणनीति क्या है?

हम करीब 400 कंपनियों की रेटिंग करते हैं और देश की सबसे बड़ी रेटिंग एजेंसी हैं, लेकिन इससे संतुष्ट होने की जरूरत नहीं है।

यही वजह है कि हमने यह तय किया है कि जहां कहीं भी क्रेडिट से संबंधित मसला आएगा, वहां कंपनी अपनी रेटिंग उपलब्ध कराएंगे। ऐसे में छोटे-मझोल कंपनियों को भी रेटिंग की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं।

आपको लगता है कि विकास दर बरकरार रहेगी?

जी हां, विकास दर आगे भी अच्छी रहेगी। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि हमने 2005 में अंतरराष्ट्रीय शोध कंपनी का भी अधिग्रहण किया है और उसकी सेवाओं और अनुभवों का भी लाभ कंपनी को मिलेगा।

लेकिन इस बात की भी आशंका है कि वर्ष 2009 में रेटिंग कंपनियों की विकास दर पर थोड़ा असर पड़ सकता है।


मौजूदा हालात में आपके समक्ष क्या चुनौतियां हैं?

मौजूदा वित्तीय हालात में हमारो समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कंपनी समय पर और सटीक रेटिंग जारी करे।

First Published - January 18, 2009 | 9:54 PM IST

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