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घर खरीदारों के लिए बाद में भुगतान की योजना फायदेमंद

Last Updated- December 15, 2022 | 8:01 PM IST

इस समय देश में गोदरेज, ओबेरॉय, सनटेक, रुनवाल जैसे बहुत से रियल एस्टेट डेवलपर बाद में भुगतान करने की योजनाएं ला रहे हैं। इनमें खरीदार को खरीद के समय प्रॉपर्टी की कीमत का 5 से 30 फीसदी देना होता है और बाकी कीमत कब्जा मिलने पर चुकाई जाती है। बाद में भुगतान की इन कुछ योजनाओं में निर्माण के विभिन्न चरणों में भुगतान करना होता है। यह विभिन्न अनुपात 20:60:20, 30:50:20 आदि में हो सकता है। ये योजनाएं राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा प्रतिबंधित उन रियायत योजनाओं से अलग हैं, जिनमें खरीदार आवास ऋण लेते थे और बिल्डर को पूरी कीमत का अग्रिम भुगतान कर देते थे। इसके बदले डेवलपर निर्माण की अवधि के दौरान प्री-ईएमआई (ऋण का ब्याज) का भुगतान करते थे।
डेवलपर ये योजनाएं अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए मुहैया करा रहे हैं। एनारॉक प्रॉपर्टी कन्सल्टेंट्स के मुख्य कारोबार अधिकारी राहुल फोंगडे ने कहा, ‘डेवलपर लॉकडाउन के कारण बिना बिके मकानों का ढेर बढऩे और लागत में इजाफा होने जैसी दिक्कतों से पार पाने के लिए अनोखी पेशकश ला रहे हैं।’
इन योजनाओं की बदौलत डेवलपर लॉकडाउन के दौरान भी बिक्री करने में सफल रहे हैं। सनटेक रियल्टी के सीएमडी कमल खेतान ने कहा, ‘रेरा दस्तावेजों के पंजीकरण के बिना डेवलपरों को ग्राहकों से 10 फीसदी से अधिक राशि लेने की मंजूरी नहीं देता है। मगर लॉकडाउन के दौरान ऐसा करना मुश्किल था।’ बीते वर्षों में परियोजनाओं में देरी और हाल के दौर में अपनी आय को लेकर अनिश्चितता के कारण खरीदार तब तक आवास ऋण जैसी बड़ी देनदारी अपने ऊपर नहीं लेना चाहते हैं, जब तक मकान हाथ में आने के पुख्ता आसार नजर नहीं आ रहे हों। कोलियर्स इंटरनैशनल इंडिया के राष्ट्रीय निदेशक (पूंजी बाजार) गगन रामदेव ने कहा, ‘ये योजनाएं खरीदारों को आश्वस्त करने और घर खरीद में उनके जोखिम को कम करने के लिए हैं।’
जो खरीदार खुद के पैसे से खरीदने की योजना बना रहे हैं, उन्हें शेष राशि एकत्रित करने के लिए कुछ अतिरिक्त समय (निर्माण पूरा होने तक) मिलेगा। ऐसी योजनाएं (10:90 या 20:80 सरीखी) खरीदारों को एक साथ किराया चुकाने और प्री-ईएमआई चुकाने से बचाती हैं। इनसे डेवलपरों पर समय पर फ्लैट देने का जिम्मा आ जाता है।
इनमें खरीदारों को साफ तौर पर वित्तीय लाभ है। बैंकबाजार के सीईओ आदिल शेट्टी ने कहा, ‘ वे ब्याज की लागत बचा सकते हैं क्योंकि वे निर्माण आधारित योजना से इतर बाद में अपना आवास ऋण शुरू कर सकते हैं।’ इसे एक उदाहरण की मदद से समझते हैं। माना किसी आवासीय परिसंपत्ति की कीमत 60 लाख रुपये है। खरीदार 48 लाख रुपये का ऋण लेता है। इस पर ब्याज दर 8.5 फीसदी और अवधि 20 साल है। कब्जा 16 महीनों में मिलता है। अब माना कि भुगतान की तीन योजनाएं 20:80, 30:70 और एक निर्माण आधारित योजना है, जिसमें हर महीने पांच फीसदी भुगतान करना होता है। खरीदार अग्रिम जितना कम भुगतान करता है, उतनी ही अधिक प्री-ईएमआई में बचत होती है।
ऐसी योजनाओं के कुछ नकारात्मक पहलू भी होते हैं, जिन्हें खरीदार को देखना चाहिए। एनसीआर की एक रियल एस्टेट सलाहकार कंपनी सैनिक एस्टेट के प्रमुख प्रदीप मिश्रा ने कहा, ‘निर्माण के चरण में पूंजी लगती है, जिसकी लागत यहां डेवलपर वहन करता है। यह संभव है कि वह ऐसी योजनाओं में ग्राहकों से प्रॉपर्टी की निर्माण आधारित योजनाओं के मुकाबले ज्यादा कीमत वसूले।’ वह कहते हैं कि खरीदार को इस योजना में परिसंपत्तियों की कीमतों की उसी इलाके की रहने के लिए तैयार प्रॉपर्टी या पुरानी प्रॉपर्टी के बाजार की कीमतों से तुलना करनी चाहिए। वह कहते हैं, ‘अगर कीमतें समान हैं तो ही आपको अच्छा सौदा मिल रहा है।’ जीएसटी (केवल निर्माणाधीन परिसंपत्तियों पर वसूला जाता है) जैसे अन्य खर्च समेत खरीद कीमत की पहले से बनकर तैयार प्रॉपर्टी से तुलना करें।
ऐसी योजनाओं में खरीदार जिस 10 से 20 फीसदी राशि का भुगतान करता है, उसे लेकर जोखिम होता है। रामदेव का सुझाव है कि ऐसे डेवलपर के पास जाएं, जिसके पास परियोजना पूरी करने के लिए वित्तीय व्यवस्था है। आखिर में टाइटल को जांचने के अलावा बिक्री समझौते के बारीक अक्षरों में लिखे नियम एवं शर्तों को देखें, जिनमें देरी, रद्द और रिफंड से संबंधित ब्योरा होता है।

First Published - June 8, 2020 | 12:16 AM IST

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