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इंतजार से आएगी बहार

Last Updated- December 07, 2022 | 7:06 PM IST

ज्यादातर निवेशक वृध्दिग्रोथ देखते हैं, कुछ कीमत देखकर निवेश करने वाले होते हैं और कुछ किफायती कीमत पर ग्रोथ देखते हैं।


स्पष्ट रूप से रिटर्न कुछ अन्य वजहों के साथ सूचनाओं की गुणवत्ता , निर्णय की क्षमता और भाग्य पर निर्भर करता है। यह रिटर्न उनके लिए ज्यादा हो सकता है जो सर्वसम्मति से अलग कदम उठाते हैं।

सबसे ज्यादा रिटर्न तब आता है जब कोई बाजार में मंदी होने के समय शेयर खरीदता है क्योंकि उस समय वे सस्ते होते हैं और बाजार जब ऊंचाइयों पर होता है तब उन शेयरों को बेचकर अच्छी कमाई कर लेता है। यह सामान्य निवेशक के व्यवहार के विपरीत है। एक लोकप्रिय उदाहरण 1939 में जॉन टेम्प्लटन का है।

जॉन टेम्प्लटन ने दूसरे विश्व युध्द की पूर्व संध्या पर लाभ कमाने वाले वे सभी कारोबार खरीद लिए जिनका कारोबार न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज में एक डॉलर से नीचे हो रहा था। उन्हें छह साल इंतजार करना पड़ा और उन्होंने 400 फीसदी से भी ज्यादा का मुनाफा कमाया।

पहली नजर में हालांकि यह कॉन्ट्रेरियन स्टाइल अंडरपरफॉरमेंस वाला भी हो सकता है यदि संकट के बादल तुरंत नहीं छटते हैं। यदि आप मंदी के बाजार में बहुत जल्दी खरीदते हैं तो आपको महीनों या सालों घाटे में रहना पड़ सकता है। अगर आप ऊंचाई की ओर जाते बाजार में पहले ही बिकवाली कर देते हैं तो आप को कम लाभ मिल सकता है।

दूसरी तरह की यानी कॉन्ट्रेरियन निवेश की रणनीति अपनाना एक बडा जोखिम लेना है। यह रणनीति तब काफी अच्छी है जब कोई जान सके कि कब बाजार की कमजोरी खत्म हो रही है। इस वजह से भी निवेशक यह नजरिया नहीं अपना पाते क्योंकि यह बाजार को टाइम करने जैसा ही है।

हालांकि अच्छे निवेशक चाहे वह ग्रोथ की उम्मीद करने वाले हों या कम भाव पर अच्छा शेयर खरीदने वाले निवेशक हों, प्राकृतिक कॉन्ट्रेरियन ही दिखते हैं। वे मंदी के बाजार में मोलभाव पर बहुत ज्यादा गौर करते हैं। मसलन, वारेन बफेट बाजार को टाइम करने की कोशिश नहीं करते हैं। लेकिन वह तभी खरीदते हैं जब उन्हें लगता है कि कारोबार सस्ता है।

परिणामस्वरूप, उन्होंने निचले स्तर पर किसी कारोबार में निवेश करने की चालाकी अपनाई है। बफेट बाजार के रुझानों को नहीं देखते है, वे उन आंकडों को देखते हैं जिनसे रुझानों को तुरंत नापने में मदद मिलती है। परंपरागत रुप से मंदी के बाजार में कम कीमतों के साथ कम वॉल्यूम पर कारोबार होता है। इस माहौल में भी विभिन्न विश्लेषकों द्वारा कई तरह की उद्धोषणाएं की जाती हैं।

लगभग हर कोई इस समय आशावादी होता है और जिसका मतलब है कि ज्यादातर बिकवाली हो चुकी है। इसी तरह बाजार की ऊंचाइयों पर हर कोई डर रहा होता है और तब भी अधिकतर बिकवाली पूरी हो गई होती है। एक कॉन्ट्रेरियन वैल्यू क्रायटेरिया और सेंटीमेंट इंडीकेटर को जोड़ने का कोशिश करता है ताकि अतिरिक्त सुरक्षा मिल सके। इस तरह वह जानता है कि वह सस्ता खरीद रहा है और बाजार में मंदी के न्यूनतम स्तर पर खरीद रहा है। इस रुख ने इतिहास में भी बेहतर फल दिए हैं।

अब भारतीय बाजार भी कुछ ऐसे ही हालात में पहुंच चुका है जो कॉन्ट्रेरियन लोगों को पसंद है। बाजार में उदासी छाई है। वॉल्यूम काफी कम स्तर तक पहुंच गए हैं। ज्यादातर निवेशक निराशावादी हैं। इसलिए ये रुझान कॉन्ट्रेरियन के लिए काफी आकर्षक प्रतीत होते हैं। वैल्यूएशन अभी भी अच्छा है। निफ्टी 2007-08 की प्रति शेयर आय के 18 गुना से अधिक पर है।

प्राइस बुक वैल्यू रेशियो करीब 3.8 है जबकि डिविडेंड यील्ड 1.3 फीसदी के करीब है। ऐतिहासिक रुप से मंदी के बाजार में प्रति शेयर आय 12 गुना के नीचे आ जाती है, डिविडेंड यील्ड दो फीसदी से कुछ ऊपर होता है और पीबीवी रेशियो 2.5 फीसदी के नीचे होता है।

आप कोई भी वैल्यूएशन मैट्रिक्स अपना ले, वे नंबर काफी ऊंचे होते हैं। अनुमानित कंसेंसस आय 2008-09 की प्रति शेयर आय के 16 गुना के स्तर पर है। जिसका मतलब है कि पीईजी रेशियो का एक फीसदी केऊपर होना और यह ओवर वैल्यूएशन का प्रतीक है। अर्निंग्स यील्ड की तुलना जीओआई सेक्योरिटी और टी-बिल यील्ड से यह दिखाती है कि प्रति शेयर आय बाजार के निचले स्तर से काफी ऊपर है।

मौजूदा कीमतों के आकर्षक मूल्यांकन में बदलने के लिए या तो लंबी समयावधि की जरूरत होती है या कीमतों में और कीमतों में और भी गिरावट होनी है। इसका मतलब है कि भारत मंदी के निचले स्तर के करीब नहीं है। तो यह समय नहीं है कि भारी खरीदारी या निवेश किया जाए। यदि आप अभी खरीदते हैं तो चयनात्मक लिहाज से खरीदिए और 2009-10 के लिहाज से औसत गिरावट के लिए तैयार रहिए।

First Published - September 1, 2008 | 12:06 AM IST

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