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मंदी के बाजार में खरीदारी का अलग होता है तरीका

Last Updated- December 07, 2022 | 9:41 AM IST

कार्ल पॉपर के बनाए गए रिफलैक्सिविटी के सिध्दांत को उनके चेले जॉर्ज सोरस ने भी अपनाया।

रिफलैक्सिविटी का मानना है कि सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक या आर्थिक रुझान अकसर प्रतिक्रियाओं से काफी व्यापक हो जाते हैं, जो उन्हें मजबूत और अधिक समय के लिए बनाए
रखता है।

खासतौर पर वित्तीय रुझान तार्किक कारणों से शुरू होते हैं, लेकिन अकसर लंबे समय में वे एक ऐसे स्तर पर पहुंच जाते हैं, जहां कीमतें बिना तर्क के काफी अधिक बढ़ती हैं या गिरती हैं।

बाजार के संदर्भ में प्रतिक्रिया को आप साधारण तरीके से कीमतों में वृध्दि के रूप में देख सकते हैं, जो निवेशकों की ओर से मुनाफे को पुनर्निवेश करने पर देखी जाती हैं।

एक कारोबारी मुनाफा कमाता है और उस मुनाफे को वह बाजार में दोबारा लगा देता है और उससे और भी मुनाफा कमाता है। अन्य लोग मुनाफा कमाने के चलते पैसे के लिए अन्य स्रोत तलाशते हैं।


यह तब होता है, जब बाजार तेज होता है। बाजार में मंदी के दौर में प्रतिक्रियाओं में बिक्री और अधिक बिक्री शामिल होती है। एक बिक्री के दहशत की स्थिति के अलावा यह रोजमर्रा के कारोबार की वजह से भी हो सकती है।

एक कारोबारी को जब स्टॉप लॉस होता है, तब वह अपने शेयर बेच देता है। इससे कीमतें गिरती हैं और दूसरा स्टॉप लॉस होता है, जहां दूसरा कारोबारी शेयर बेचता है। इससे मार्जिन पर असर पड़ता है और फिर आगे तीसरी… चौथी…. बार शेयर बेचे जाते हैं।


पिछले कुछ वर्षों में हमने काम के दौरान रिफलैक्सिविटी को देखा है। मई 2006 में जब निफ्टी 3,650 पर कारोबार कर रहा था, कीमतें भारतीय इक्विटी को खरीदने के पक्ष में नहीं थीं।

पीई अनुपात 20 था और टी-बिल का मुनाफा 7 से अधिक था। इस समय बाजार बुरी तरह से टूट गया- तब वहां दहशत में बिक्री का दौर देखने को मिला।
लेकिन यह दौर काफी छोटे समय के लिए था और कीमतें दोबार ऊपर चढ़ी।


निफ्टी अंत में 72 प्रतिशत बढ़कर जनवरी में 6,350 के आंकड़े को छू गया और इससे जुड़ी हुई पीई 29 पर। पूरे 2007 में हमने रिफलैक्सिव खरीदारी देखी है, क्योंकि कीमतें लगातारा सही कीमत से ऊपर ही रहीं।


तब से सूचकांक स्तर 35 प्रतिशत गिर चुके हैं। हम यह नहीं कह सकते कि सुधार प्रतिक्रिया पर आधारित हैं, क्योंकि इक्विटी कीमतें अभी भी निफ्टी पीई 17 के आंकड़े पर है।


 रिफलैक्सिविटी में कीमतों में सही कीमतों से कम का सुधार हो सकता है। संयोग से वे निवेशक जो मई 2006 में दहशत की स्थिति में निकल गए थे, जरूरी नहीं है कि उन्हें बहुत नुकसान हुआ हो।

ऐसे में जो निवेशक मई 2006 से जनवरी 2008 तक शेयरों में बने रहे उन्होंने 19 महीनों में लगभग 70 प्रतिशत रिटर्न कमाया है।

 असल में एसे बहुत कम निवेशक होंगे जो तेज बाजार में निकल पाए हों। जो लगातार इक्विटी में दो वर्षों के लिए बने रहे होंगे उन्होंने लगभग 12 प्रतिशत रिर्टन कमाया- जिससे तो किसी भी फिक्स्ड डिपोजिट धारक का रिर्टन रहता है।


अगर मौजूदा मंदी का बाजार रिफलैक्सिव रहता है तो कीमतें सही कीमतों से और भी गिरेंगी। अब सही कीमतें हैं क्या? मानते हैं कि 11.4 प्रतिशत थोक मूल्य सूचकांक से जुड़ी हुई जोखिम मुक्त 10 प्रतिशत की दर है।


मानते हैं कि निफ्टी का कारोबार 2008-09 में 15 प्रतिशत की औसत दर से बढ़ रहा है। एक निवेशक के लिए 10 के स्तर पर पीई उचित है।
अगर हम मान लेते हैं कि कीमतों में गिरावट आएगी, तब निफ्टी नीचे की ओर पीई 10-15 के बैंड में रहेगा।


 जिसका मतलब है कि निफ्टी 2,800-3,300 के कीमत बैंड में होगा। अगर मंदी का बाजार प्रतिक्रियात्मक रहता है, तब कीमतें इस बैंड में निचले स्तर तक गिरेंगी। यह काफी भयावह स्थिति हो सकती है, जैसा कि पहले हो चुका है।


 यह स्तर तेज बाजार की कीमतों के लगभग 55 प्रतिशत के बराबर हो सकता है, जो बाजार देख चुका है। बाजार में तेजी के बाद गिरावट और फिर दूसरी बार तेजी का दौर भारतीय बाजारों में पहले भी देखा जा चुका है।


अगर आप यह मानते हैं कि यह बाजार प्रतिक्रियात्मक है तो आपको बाहर निकले पर विचार करना चाहिए और 3,500 के स्तर पर फिर दोबार बाजार में प्रवेश करना चाहिए।

एक जोखिम यह भी है कि अगर बाजार असल में प्रतिक्रियात्मक नहीं हुआ तो आपको हमेशा के लिए इंतजार करना होगा। अगर आप यह रिफलैक्सिविटी के बारे में कोई निर्णय नहीं बना पा रहे, या आपको सही समय पर निकले और वापस बाजार में प्रवेश करने पर संदेह है तो ऐसे में मौजूदा कीमतों पर बेचने का कोई मतलब ही नहीं है।


अगर आप रुकते हैं, तो आपको 20-25 प्रतिशत का और नुकसान हो सकता है। अगर यह मुनाफा बुक नहीं किया गया है तो अगले 2-3 वर्षों में 50 प्रतिशत तक की रेंज या फिर जब बाजार 6,000 के स्तर पर पहुंच जाए तो उससे अधिक मुनाफा कमाने की संभावना है।


एक औसत निवेशक जो इक्विटी में लंबे समय से बना हुआ है, उसे अब अपनी औसत को कम करना चाहिए और हर बार गिरावट होने पर बेचने की बजाए खरीदने पर ध्यान देना चाहिए।


एक बहुत ही अच्छा कारोबारी अभी निकल सकता है और दोबारा मंदी के बाजार में बेहद कम स्तर पर प्रवेश कर सकता है। अधिकतर लोग इतने अच्छे नहीं
हो पाते।

First Published - July 7, 2008 | 1:03 AM IST

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