दुनिया में बिजली उत्पादन के लिए कोयला और गैस सबसे अहम प्राथमिक स्रोत हैं। इस बारे में सबूत के तौर पर हमारे सामने आंकड़ा यह है कि कुल ऊर्जा उत्पादन का 65 फीसद हिस्सा कोयला एवं गैस आधारित संयंत्रों में ही तैयार किया जाता है।
लेकिन बढ़ती कीमतें, सीमित आपूर्ति और वातावरण संबंधी मसले दुनियाभर को इन स्रोतों से इतर दूसरे वैकल्पिक स्रोत ढूंढने पर मजबूर कर रहे हैं, ताकि भविष्य में लंबे समय तक ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। इसके चलते इस बात पर शायद ही बहुत ज्यादा आश्चर्य हो कि दुनियाभर के देशों के साथ भारत में भी ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों मसलन वायु, सौर एवं अन्य प्रकार के स्रोतों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन के मद्देनजर वैश्विक स्तर पर सुजलॉन एनर्जी इस अवसर को भुनाती और इससे फायदा उठाती नजर आ रही है जिसका जर्मनी स्थित आरईपावर के साथ गठजोड़ है। सुजलॉन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी पॉवर साल्यूशन प्रदाता कंपनी मानी जाती है।
कंपनी का पूरी तरह से एकीकृत किस्म का कारोबार है जो परामर्श, साइट के विकास, उनके प्रारूप को तैयार करने से लेकर निर्माण एवं मरम्मत संबंधी सेवाएं भी प्रदान करता है। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो पवन ऊर्जा का एक बड़ा बाजार है।
कैलेंडर वर्ष 2006 में जहां कंपनी की बाजार में कुल 7.7 फीसदी की हिस्सेदारी थी वहीं यह कैलेंडर वर्ष 2007 में बढ़कर 13.9 फीसदी हो गई है। इतना ही नहीं, भारतीय बाजारों में भी इसकी जबरदस्त पैठ है और यहां उसकी कुल 58 फीसदी हिस्सेदारी है।
तेज विकास एवं क्षमता
कंपनी के राजस्व में हो रहे तेज इजाफे में माकूल औद्योगिक रुख एवं अन्य बाजारों में इसकी विकसित गति की मौजूदगी की झलक देखती है। कंपनी का अधिग्रहण समेत स्थापित कारोबार कुल 91.6 फीसदी के चक्रवृद्धि ब्याज की दर से सालाना के स्तर पर गतिमान है।
यह गति वित्तीय वर्ष 2005 से 2008 के दरम्यान दर्ज की गई है और कुल कारोबार 1,942 करोड़ रुपये से 13,679 करोड़ रुपये का हो गया है। हालांकि कंपनी इसी रफ्तार से ही शायद आगे न बढ़े पर राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एक स्थापित मौजूदगी के मद्देनजर विकास दर की रफ्तार बेहतर रहनी चाहिए।
खासकर पिछले पांच सालों के दौरान पवन ऊर्जा की क्षमता की बात की जाए तो यह 24 फीसदी के सीएजीआर की दर से बढ़ी है। यह विकास प्राथमिक स्तर पर चीन, भारत, यूरोप एवं अमेरिका जैसे बाजारों से आने वाला है।
राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग (चीन) के मुताबिक वहां 2020 तक पवन ऊर्जा उत्पादन बढ़कर 1 लाख मेगावाट हो जाने की उम्मीद है, जो 2007 में 4,000 मेगावॉट थी। इसी अवधि के दौरान भारत में पवन ऊर्जा उत्पादन का आंकड़ा 45,000 मेगावाट हो जाने की उम्मीद है जो इस वक्त कुल 8,000 मेगावाट है।
बढ़ती पहुंच
इन सब अवसरों को देखते हुए कंपनी ने मौजूं किस्म के कई ऑर्गेनिक एवं इनऑर्गेनिक कदम उठाए हैं, ताकि इसका आपूर्ति संजाल एवं तकनीकी क्षमता को और संवर्द्धित यानी बेहतर किया जा सके।
आत्मनिर्भर एकीकरण
औजारों की समय पर आपूर्ति से लेकर लागत कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सुजलॉन ने हैंसन ट्रांसमिशन जो गियर बॉक्सेज का निर्माण करती है, में 71.3 फीसदी की हिस्सेदारी अधिग्रहीत की है। गियर बॉक्स का इस्तेमाल विंड टरबाइन जेनरेटरों में होता है।
हैंसन भी अपनी क्षमता को 3,600 मेगावाट से बढ़ाकर 14,600 मेगावाट कर रही है। इसके अलावा कंपनी भारत एवं चीन में नए संयंत्र सिंतबर 2008 और सितंबर 2009 में चालू करने जा रही है। इसके अलावा सुजलॉन की भारत में फाउंड्री क्षमताओं को भी स्थापित करने की योजना है।
कंपनी को यह विश्वास है कि इसके इन-हाऊस औजार निर्माण एवं फाउंड्री क्षमताओं की बदौलत इसे डब्ल्यूटीजी की लागत तो कम करने में मदद मिलेगी ही, नई सुविधाओं को वक्त पर या फिर वक्त से पहले लागू भी किया जा सकेगा।
लाभ में स्थिरता
जहां तक मार्जिन का संबंध है तो कमोडिटी कीमतों के बढ़ने के बावजूद सुजलॉन के लाभ पर भी इनका असर कम ही पड़ता प्रतीत हो रहा है। यहां बैकवार्ड इंटीग्रेशन यानी कच्चे माल सहित अन्य चीजों के लिए खुद पर निर्भरता का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि इनकी वजह से बढ़ी हुई कमोडिटी कीमतों का असर उतना नहीं पड़ने वाला है।
वित्तीय वर्ष 2009 की पहली तिमाही की बात करें तो कंपनी ने अपनी कीमतों में इजाफा किया है, पर रुपये के कमजोर होने के कारण इसका रियलाइजेशन बेहतर था। इसी समान अवधि के लिए सेल्स रियलाइजेशन की बात करें तो वित्तीय वर्ष 2008 की पहली तिमाही के मुकाबले इस कारोबार में इजाफा दर्ज किया गया है।
पिछली बार यह जहां 4.73 करोड़ प्रति मेगावाट था वहीं इस बार यह 6.17 करोड़ मेगावाट के स्तर पर है। कुल मिलाकर विश्लेषकों के अनुमान के मुताबिक कंपनी के 14.1 फीसदी के मौजूदा इबडिटा मार्जिन में मामूली इजाफे की गुंजाइश है।
निवेश की वजह
सुजलॉन के शेयरों की कीमतों में जनवरी 2008 में 52 हफ्तों की ऊंचाई के बाद से कुल 47 फीसदी का अंतर आया है। उस वक्त शेयरों की कीमतें 460 रुपये के स्तर पर थीं जो अब 241 रुपये के स्तर पर पहुंच गई है। ऐसा अमेरिकी मंदी मार्जिन पर दवाब और कुछ ऑर्डरों के खारिज होने की आशंकाओं के मद्देनजर हुई है।
लेकिन कंपनी के आरईपॉवर के साथ गठजोड़ से उसे हाल के दिनों में तकनीक से जुड़ी समस्याओं को हल करने में आसानी होगी। इसके अलावा कंपनी को आगे चलकर वैश्विक एवं घरेलू मांग मजबूत रहने का भरोसा है। कुल मिलाकर इस क्षेत्र में निवेश ज्यादा होने के कारण कंपनी को भी लंबे समय में उम्मीद से बेहतर मुनाफा होना चाहिए।
इसके शेयर वित्तीय वर्ष 2010 के लिए अनुमानित कमाई के मुकाबले तकरीबन 14 गुना पर कारोबार कर रहे हैं। विश्लेषकों की अगर बात की जाए, तो उन्होंने इसके शेयरों पर सालाना कम से कम 25 फीसदी का रिटर्न मिलने की संभावना व्यक्त की है और इसी आधार पर उन्होंने शेयर की कीमत 350 से 370 रुपये लगाई है।