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परंपरागत योजनाएं देंगी लंबी अवधि का प्रतिफल

Last Updated- December 12, 2022 | 7:02 AM IST

इस समय कर-बचत की हड़बड़ी रहती है। इसलिए बीमा एजेंट आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कर बचत का तरीका तलाश रहे लोगों को बीमा बेचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। यूलिट लिंक्ड बीमा (यूलिप) पर कमीशन घट गया है, इसलिए अब एजेंट पारंपरिक बीमा बेचने पर जोर दे रहे हैं। बैंक सावधि जमा (एफडी) में प्रतिफल कम होने से भी निवेशक गारंटीशुद प्रतिफल का विकल्प ढूंढ रहे हैं।

लंबी अवधि में गारंटीशुदा प्रतिफल
इस समय दो तरह की पारंपरिक योजना – नॉन पार्टिसिपेटिंग (नॉन-पार) एवं पार्टिसिपेटिंग (पार) हैं। नॉन-पार में खरीदार को प्रीमियम और प्रतिफल की जानकारी पहले से होती है। इंडियाफस्र्ट लाइफ इंश्योरेंस की मुख्य विपणन अधिकारी सोनिया नोटानी के मुताबिक नॉन पार प्लान में बीमा कंपनी बेहद लंबी अवधि में गारंटीशुदा प्रतिफल देती हैं, इसलिए ग्राहकों का निवेश जोखिम में नहीं पड़ता। उन्होंने बताया कि ग्राहकों को 99 साल की उम्र तक गारंटीशुदा प्रतिफल मुहैया कराने वाली योजना भी हैं, जबकि इस समय खुदरा निवेशकों के लिए ज्यादातर योजनाएं बमुश्किल 10 साल के लिए प्रतिफल गारंटी देती हैं। नोटानी ने कहा कि नॉन-पार प्लान 30 साल के व्यक्ति को करीब पांच
फीसदी आंतरिक प्रतिफल दर दे सकते हैं।
दूसरी ओर पार प्लान में बीमा प्रदाता पूंजी की सुरक्षा मुहैया कराता है और निवेश के प्रदर्शन के हिसाब से बोनस भी देता है। नोटानी ने कहा कि 30 साल के व्यक्ति को पार प्लान में 6 फीसदी की आंतरिक दर से प्रतिफल मिल सकता है।

उम्र से जुड़ा प्रतिफल
ऐसी योजनाओं में आंतरिक प्रतिफल दर पर उम्र का असर पड़ता है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत निवेश सलाहकार पर्सनलफाइनैंसप्लान के संस्थापक दीपेश राघव बताते हैं कि 50 साल के व्यक्ति को नॉन पार प्लान खरीदने पर केवल 3 फीसदी की आंतरिक प्रतिफल दर भी मिल सकती है। ऐसे में सुनिश्चित करें कि बीमा राशि प्रीमियम की कम से कम 10 गुनी हो। राघव ने कहा, ‘राशि कम हुई तो परिपक्वता राशि पर कर देना होगा।’ हो सकता है कि इस प्लान की बीमा राशि सालाना आय का 10 से 15 गुना कवर
रखने की आपकी जरूरत को पूरा नहीं कर सके।
 
क्यों करें निवेश?  
बाजार के उतारचढ़ाव से बचने वालों और गिरावट के वक्त पैसा निकाल लेने वालों को ये योजनाएं माफिक आ सकती हैं। कुछ लोग नियिमित रूप से बचत नहीं कर पाते। बीमा प्रीमियम के नाम पर उन्हें मजबूरन बचत करनी पड़ती है। कुछ लोग परिपक्वता पर मिलने वाली एकमुश्त रकम का किसी काम में इस्तेमाल भी कर लेते हैं। लैडरअप वेल्थ के प्रबंध निदेशक राघवेंद्र नाथ ने कहा, ‘जो लोग पूंजी बाजार को नहीं समझते या अच्छे सलाहकार की सेवा नहीं ले सकते, उनके लिए ये योजनाएं अच्छी साबित हो सकती हैं।’
इन दिनों कुछ एचएनआई भी नॉन-पार योजनाएं खरीद रहे हैं। नोटानी ने कहा, ‘उन्हें लगता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था बढऩे पर ब्याज दरें घट सकती हैं, इसलिए वे मौजूदा दरों पर अपना पैसा लॉक करना चाहते हैं।’ नाथ ने कहा, ‘भारतीय स्टेट बैंक की एफडी दर 5 से 5.4 फीसदी हैं, जिस पर स्लैब के हिसाब से कर लगता है। इसकी तुलना में कर मुक्त 5-6 फीसदी गारंटीशुदा प्रतिफल बहुत से लोगों को लुुभाएगा।’
मगर कुछ लोग दरों में गिरावट की बात से असहमत भी हैं। राघव ने कहा, ’25 साल बाद की ब्याज दरों का अनुमान लगाना मुश्किल है। इसमें चक्रीय उतार-चढ़ाव हो सकते हैं। अगर हम ऊंची महंगाई वाली अर्थव्यवस्था बने रहे तो ब्याज दरों में गिरावट आने की उम्मीद नहीं है।’ पूंजी बाजार को समझने वाले या सलाहकार की सेवा लेने वाले इन प्लान से दूर रह सकते हैं। वे टर्म प्लान और इक्विटी म्युचुअल फंडों की रणनीति अपना सकते हैं। नाथ ने कहा, ’10 से 15 साल के दौरान आप इक्विटी म्युचअल फंडों से दो अंकों में प्रतिफल अर्जित कर सकते हैं।’ करीब सात साल गुजरते ही इक्विटी में पूंजी के नुकसान का जोखिम न के बराबर रह जाता है।

First Published - March 14, 2021 | 11:14 PM IST

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