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किस्त घटा सकते हैं या फिर बैंक से कर सकते हैं बात

Last Updated- December 07, 2022 | 7:44 PM IST

होम लोन के लिए कर्ज लेने वालों को इस बात की चिंता हमेशा सताती है कि कहीं वहे डिफॉल्टर न हो जाएं। वे ऐसा चाहते हैं या नहीं, यह अलग बात है, लेकिन हालात ऐसे बन जाते हैं कि वे ऐसा करने को विवश हो जाते हैं।


मिसाल के तौर पर 11 जुलाई 2006 को मुंबई बम धमाके के  बाद बहुत सारे पीड़ित परिवारों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी और उस वक्त वे ऐसी हालत में नहीं थे कि होम लोन की किस्तें जमा कर सकें। ऐसे और भी कई अवसर आते हैं, जब आदमी इस स्थिति में नहीं होता कि वे मासिक किश्त (ईएमआई) जमा कर सकें।

कभी कभी नौकरी चले जाने पर भी ऐसा होता है और कभी कभी बढ़ती ब्याज दरें भी इसकी वजह होती हैं। ऐसी हालत में यह काफी महत्त्वपूर्ण है कि स्थिति जब खराब हो जाए, तो इसकी सूचना बैंक को अतिशीघ्र दी जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो बैंक यह भी दावा कर सकता है कि अमुक व्यक्ति जानबूझ कर डिफॉल्ट कर रहा है। और अगर ऐसा हो जाता है, तो परेशानी का लंबा सिलसिला शुरू हो सकता है।

अगर ईएमआई में चूक लगातार तीन महीने तक रहती है तो ऐसी स्थिति में वह कर्ज बैलेंस शीट पर गैर-निष्पादनीय संपत्ति (एनपीए) मान लिया जाता है।  इस दौरान बैंक एक चिट्ठी भेजता है और उसके बाद संग्राहक एजेंटों को चिट्ठी भेजी जाती है।

लेकिन एक बार अगर कर्ज एनपीए हो जाता है, तो बैंक स्थानीय अखबारों में एक विज्ञापन देता है कि कर्ज की राशि 30 से 60 दिनं के भीतर चुका दी जाए (इसे लोन रिकॉल अवधि भी कहा जाता है) । इसके बाद वित्तीय संपत्ति की सुरक्षा और पुनर्निर्माण और प्रतिभूति प्रवर्तन (एसएआरएएफईएसआई) कानून 2002 के तहत उस संपत्ति को हथिया लिया जाता है। अंत में उस संपत्ति की नीलामी की जाती है।

कर्ज और बीमा की ऑनलाइन पोर्टल अपना लोन डॉट कॉम के हर्ष रूंगटा का कहना है कि यह प्रक्रिया लंबी होती है। इसमें कितनी भी जल्दबाजी क्यों न की जाए, नीलामी से पहले तक नौ महीने से साल भर का वक्त लग ही जाता है। नीलामी प्रक्रिया के बाद बैंक अपना दिया हुआ कर्ज वसूलकर बाकी की राशि खरीदार को लौटा देता है। लेकिन कर्ज लेने वाले का घर चला जाता है, जो किसी भी हालत में एक बहुत बड़ी हानि है।

इसलिए जब उस घर की नीलामी हो रही हो, तो वह क्या कर सकता है?  हाउसिंग विशेषज्ञ इसके लिए कई तरह के उपाय सुझाते हैं। अगर परिवार के कमाने वाले सदस्यों के साथ कुछ भी होता है, तो शीघ्र बैंक से संपर्क स्थापित करें।

इस तरह से हो सकता है कि बैंक आपकी हालत को समझ सके और आपको कुछ राहत दे सकें, जैसे कि जब तक स्थिति अच्छी नहीं है, तब तक के लिए ईएमआई की रकम कम कर बाद में माली हालत अच्छी होने पर ईएमआई में बढ़ोतरी कर सकते हैं।

कोटक बैंक के होम लोन प्रमुख कमलेश राव का कहना है कि अगर कर्ज लेने वाले की आर्थिक स्थिति किसी कारण से खराब हो गई है, तो उसे हमारे पास आना चाहिए और एक आम सहमति से ईएमआई की रकम तय की जानी चाहिए। इसके बाद हम कर्ज को फिर से संरचित करते हैं ताकि उनकी जरूरतों को पूरा किया जा सके।

लेकिन ऐसा करने से पहले बैंक कर्ज लेने वाले की सिबिल (क्रेडिट इंफॉरमेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड) देखते हैं, जिसमें उसके कर्ज लेने और भुगतान करने का रिकॉर्ड, उसका पिछला प्रदर्शन, भुगतान इतिहास और भुगतान में विलंब होने के पक्ष में दिए गए दस्तावेजों का ब्योरा मौजूद रहता है। लेकिन इसके बावजूद अगर आप भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं तो बैंक को निश्चित तौर पर सूचित करें।

अगर एक बार घर नीलामी के लिए चला जाता है, तो कर्ज लेने वाले के पास कोई ज्यादा विकल्प नहीं बचता है। एक प्रमुख प्रॉपर्टी डीलर के मुताबिक डिफॉल्टर के लिए कानून का रवैया भी नरम नहीं है। लेकिन कुछ बैंक प्रबंधक इस बात को मानते हैं कि अगर कर्ज लेने वाला अपने स्तर से ऐसा ग्राहक ढूंढ़ लेता है, जो उस घर की अधिक कीमत अदा करने को तैयार है, तो बैंक उसे स्वीकार कर लेते हैं।

बैंक ऑफ बड़ौदा के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अंतिम क्षण तक कर्ज लेने वाले के पास यह मौका रहता है कि वह कर्ज अदा करने संबंधी सुविधाओं का तालमेल बैंक से स्थापित कर ले। इसके लिए वह अपने स्तर पर भी नीलामी का आयोजन कर सकता है, क्योंकि बैंक को केवल बकाया राशि हासिल करने से मतलब होता है।

हालांकि नीलामी तक अगर फिर से भुगतान को समायोजित नहीं किया जाता है, तो आगे समस्या बढ़ती ही जाती है और इस स्तर तक बात पहुंच जाने पर बैंक किसी तरह की रियायत देने को भी राजी नहीं होता है।

First Published - September 3, 2008 | 10:39 PM IST

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