वर्ष 2021 में फैक्ट्रियों में चोटों से मरने वाले 988 श्रमिकों में से 70 प्रतिशत से अधिक मामले केवल पांच राज्यों में दर्ज किए गए थे। बता दें कि यहां वर्ष 2022 और 2023 की बात इसलिए नहीं की जा रही है क्योंकि इस तरह का लेटेस्ट डेटा साल 2021 तक के लिए ही उपलब्ध है।
वर्ष 2021 में सरकार के साथ रजिस्टर्ड फैक्ट्रियों में कम से कम 3,791 कर्मचारी घायल हुए। श्रम और रोजगार मंत्रालय के महानिदेशालय फैक्टरी सलाह सेवा और श्रम संस्थान (DGFASLI) के आंकड़ों के अनुसार, अनुमानित रूप से इनमें से एक-चौथाई चोटों के कारण मौतें हुईं।
वर्ष 2017 में कार्यस्थल पर चोटों के कारण कम से कम 1,084 फैक्ट्री श्रमिकों की मृत्यु हो गई। 2021 के आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि हर दिन फैक्ट्रियों में तीन श्रमिकों की मौत चोटों से होती है। 2021 में गुजरात में ऐसी 235 मौतें दर्ज की गईं, महाराष्ट्र में 180, तमिलनाडु में 147, आंध्र प्रदेश में 65 और छत्तीसगढ़ में 82 मौतें हुईं।
हालांकि घायल होने वाले फैक्ट्री श्रमिकों की संख्या में कमी आई है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में घातक चोटें बढ़ी हैं। वर्ष 2017 में, कम से कम 18 प्रतिशत चोटों के कारण मौतें हुईं। ऑन-साइट श्रमिकों की मृत्यु में घातक चोटें की हिस्सेदारी तब से बढ़कर 26 फीसदी हो गई है।
इस सप्ताह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में हर दिन काम से संबंधित दुर्घटनाओं में लगभग 6,000 लोग मर जाते हैं। ‘सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण के लिए एक आह्वान’ नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि काम से संबंधित दुर्घटनाओं और बीमारियों के कारण सालाना लगभग 30 लाख मौतें होती हैं।
DGFASLI के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 और 2021 के बीच भारतीय फैक्ट्रियों में फिसलन और चोटों के परिणामस्वरूप 2,100 से अधिक लोगों की जान चली गई। मौतों के अन्य कारणों में मकैनिक्ल पावर से चलती मशीनें, विस्फोट और कार्यस्थल में आग शामिल हैं।
भारत में 2017 में राज्य-नियोजित फैक्ट्री निरीक्षकों के लिए कुल स्वीकृत पदों में से लगभग 29 प्रतिशत खाली थे। पांच वर्षों में यह संख्या बढ़कर 32 प्रतिशत हो गई है। कारखानों में चिकित्सा निरीक्षकों के 50 प्रतिशत से अधिक पद रिक्त हैं।