राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार को कहा कि त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए अदालतों में ‘स्थगन की संस्कृति’ को बदलने के प्रयास किए जाने की जरूरत है। जिला न्यायपालिका के दो-दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अदालतों में लंबित मामलों का होना हम सभी के लिए बड़ी चुनौती है। मुर्मू ने कहा कि न्याय की रक्षा करना देश के सभी न्यायाधीशों की जिम्मेदारी है।
उन्होंने कहा कि अदालती माहौल में आम लोगों के तनाव का स्तर बढ़ जाता है। उन्होंने इस विषय पर अध्ययन का भी सुझाव दिया। उन्होंने महिला न्यायिक अधिकारियों की संख्या में वृद्धि पर भी प्रसन्नता व्यक्त की। राष्ट्रपति मुर्मू ने भारत मंडपम में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उच्चतम न्यायालय का ध्वज और प्रतीक चिह्न जारी किया।
इस मौके पर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी अदालतों में स्थगन की संस्कृति यानी ‘तारीख पे तारीख’ की आम धारणा को तोड़ने के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने का आह्वान किया और कहा कि इस तरह के प्रयासों से नागरिकों के बीच न्यायपालिका के प्रति विश्वास मजबूत होगा। उन्होंने लंबे समय से चल रहे मुकदमों के मामले में गहन विश्लेषण करने का भी प्रस्ताव रखा।
दूसरी ओर, भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जिला स्तर पर केवल 6.7 प्रतिशत अदालतों का बुनियादी ढांचा ही महिलाओं के अनुकूल है। इस स्थिति को बदलने की जरूरत है। जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अदालतें समाज के सभी सदस्यों के लिए सुरक्षित और सहज वातावरण प्रदान करें।
उन्होंने कहा, ‘हमें बिना किसी सवाल के इस तथ्य को बदलना होगा कि जिला स्तर पर हमारी अदालतों के बुनियादी ढांचे का केवल 6.7 प्रतिशत ही महिलाओं के अनुकूल है। क्या यह आज ऐसे देश में स्वीकार्य है, जहां कुछ राज्यों में भर्ती के बुनियादी स्तर पर 60 या 70 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं?’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘अदालतों में चिकित्सा सुविधाएं, शिशुगृह (क्रेच), ई-सेवा केंद्र जैसी सुविधाओं के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के उपकरण होने चाहिए। इन प्रयासों का उद्देश्य न्याय तक पहुंच बढ़ाना है। स्वाभाविक रूप से, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारी अदालतें समाज के सभी सदस्यों, विशेषकर महिलाओं और अन्य कमजोर समूहों जैसे विकलांग व्यक्तियों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों तथा सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के सभी लोगों के लिए एक सुरक्षित और अनुकूल वातावरण प्रदान करें।’