फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सामग्री हटाने की जांच के लिए पिछले साल गठित निगरानी बोर्ड ने फेसबुक की तरफ से भेजे गए उस मामले को स्वीकार कर लिया है, जिसमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सामग्री पोस्ट करने पर बेमियादी रोक के फैसले की जांच की जाएगी।
निगरानी बोर्ड अपने आप में नया है, जिसे मद्देनजर रखते हुए इस मामले को लेकर पूरी दुनिया की रुचि होगी। सूचना प्रौद्योगिकी पर भारत की संसदीय स्थायी समिति की गुरुवार को फेसबुक और ट्विटर के साथ बैठक हुई थी। इस समिति ने भी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति के अकाउंट पर रोक लगाने और व्हाट्सऐप की प्रस्तावित निजता नीति को लेकर हाल के विवाद पर चर्चा को काफी समय दिया।
ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के अकाउंट पर रोक लगाने के मुद्दे को लेकर भारतीय राजनीतिक वर्ग में कुछ असहजता है। दरअसल ट्रंप के कुछ ट्वीट और पोस्ट को 6 जनवरी को अमेरिकी कैपिटल पर हमले की वजह माना जा रहा है।
संसदीय समिति ने इस बारे में सवाल पूछे कि क्या इन प्लेटफॉर्मों को उस तरह अकाउंट को स्थगित करने का अधिकार है, जिस तरह एक सत्तारूढ़ राष्ट्रपति के अकाउंट पर रोक लगाई गई है। व्हाट्सऐप के स्वामित्व वाली फेसबुक से यह भी पूछा गया कि क्या उसकी निजता नीति दुनिया भर में एक जैसी है या वह क्षेत्रों के हिसाब से अलग-अलग है और इसकी क्या वजह है।
निगरानी बोर्ड ने गुरुवार को अपने एक बयान में कहा कि फेसबुक ने भी बोर्ड से इस बारे में नीतिगत सिफारिश मांगी हैं कि जब कोई यूजर राजनेता हो तो क्या उसके अकाउंट को स्थगित किया जा सकता है। इस निगरानी बोर्ड में 20 वैश्विक सदस्य हैं, जिसका काम फेसबुक और इंस्टाग्राम से सामग्री हटाने की जांच करना है। यथासमय बोर्ड तत्काल सामग्री हटाने के आग्रहों को देखेगा।
ट्रंप के फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने पर 7 जनवरी, 2021 को रोक लगाने के फेसबुक के फैसले ने दुनिया भर का ध्यान खींचा है। निगरानी बोर्ड के बयान में कहा गया, ‘इस मामले में बोर्ड का फैसला फेसबुक के लिए बाध्यकारी होगा और यह तय करेगा कि क्या ट्रंप के फेसबुक और इंस्टाग्राम को इस्तेमाल करने पर बेमियादी रोक को हटाया जाएगा। फेसबुक ने कहा कि निगरानी बोर्ड का निर्देश नहीं मिलने तक उसके प्लेटफार्मों के इस्तेमाल को बहाल नहीं किया जाएगा। फेसबुुक को बोर्ड की नीतिगत सिफारिशों के बारे में विचार करना चाहिए और सार्वजनिक रूप से उनका जवाब देना चाहिए।’
यह बोर्ड सबसे चुनौतीपूर्ण सामग्री के मुद्दे पर फेसबुक के तरीके की स्वतंत्र जांच करने के लिए बनाया गया था। इन मुद्दों का वैश्विक मानवाधिकारों और स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर व्यापक असर पड़ता है। इस मामले पर बोर्ड कैसे फैसला लेगा, इसके बारे में निगरानी बोर्ड ने कहा, ‘हमारे उपनियमों और नियमावली के हिसाब से यह मामला पांच सदस्यीय समीक्षा समिति को सौंपा जाएगा। समिति के किसी नतीजे पर पहुंचने के बाद उसे पूरे बोर्ड के साथ साझा किया जाएगा। किसी मामले का फैसला जारी करने के लिए बोर्ड के बहुमत जरूरी है।’
सदस्य यह फैसला करेंगे कि क्या इस मामले में निहित सामग्री फेसबुक के सामुदायिक मानकों और मूल्यों का हनन करती है। वे इस बारे में भी विचार करेंगे कि क्या फेसबुक के सामग्री को हटाने में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का ख्याल रखा गया है, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकार शामिल हैं। ट्रंप अपने पेज संभालने वाले लोगों के जरिये बोर्ड को एक यूजर स्टेटमेंट सौंप सकते हैं और यह बता सकते हैं कि वह ऐसा क्यों मानते हैं कि फेसबुक के सामग्री पर अंकुश के फैसले को पलटा जाना चाहिए। फेसबुक को इस मामले में अपने मौजूदा सामग्री फैसलों के लिए संदर्भ सूचना और व्यापक व्याख्या भी साझा करेगी।
बोर्ड सभी इच्छुक लोगों और संगठनों के लिए एक प्रक्रिया शुरू करेगा, जिसमें वे बोर्ड को अपनी वह राय दे सकेंगे, जिसे लेकर उन्हें लगता है कि उससे फैसले में मदद मिलेगी। बोर्ड के उपनियम में अधिकतम 90 दिन की सीमा तय है, जिसमें उसे फैसला लेना पड़ता है। इस फैसलो को बोर्ड की वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाएगा। इसमें वे जानकारियां भी दी जाएंगी, जिनका समिति ने नतीजे पर पहुंचने में इस्तेमाल किया है। साथ ही यह भी बताया जाएगा कि समिति कैसे अपने अंतिम निष्कर्ष पर पहुंची। इस प्रकाशन के बाद फेसबुक के पास मामले के फैसले को लागू करने के लिए सात दिन का समय होगा। फेसबुक को बोर्ड की किसी नीतिगत सिफारिश के बाद 30 दिन में अपना फैसला लेना होगा।