सीओपी26 प्रेसीडेंसी द्वारा जारी किए गए मसौदे में जलवायु वित्त के बजट में किसी प्रकार की बढ़ोतरी की पेशकश नहीं की गई है और इसमें विकसित देशों से 2009 में तय किए गए 100 अरब डॉलर प्रति वर्ष के लक्ष्य को पूरा करने का आग्रह किया गया है। यह मसौदा वैश्विक जलवायु सम्मेलन के अंतिम परिणाम के लिए चर्चा के विषय वस्तु के तौर पर उपयोग में लाया जाएगा। मसौदा के विषय वस्तु में पहली बार कोयला का इस्तेमाल और जीवाश्म ईंधन पर दी जा रही सब्सिडी को समाप्त करने की बात कही गई है।
हालांकि, चर्चा के विषय वस्तु में नुकसान और क्षति की भरपाई के लिए अलग से फंड बनाने का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इस फंड की मांग विकासशील देशों की तरफ से की जा रही थी। भारत की सरकार समान सोच रखने वाले 24 विकासशील देशों के साथ मिलकर प्रदूषक भुगतान करें के सिद्घांत पर जलवायु आपदा फंडिंग के लिए जोर लगा रही थी।
सीओपी निर्णय के प्रस्ताव में कहा गया है, ‘विकसित देश पक्षों, वित्तीय तंत्र के परिचालक निकायों, संयुक्त राष्ट्र और गैर सरकारी संगठनों तथा निजी स्रोतों सहित अंतरसरकारी संगठनों तथा अन्य द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संस्थाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जुड़े नुकसान और क्षति की भरपाई के लिए बढ़ी हुई और अतिरिक्त सहायता मुहैया करानी चाहिए।’
विषय वस्तु में 2020 तक हर साल विकसित देश पक्षों की ओर से संयुक्त रूप से 100 अरब डॉलर रकम मुहैया कराने के लक्ष्य को अब तक पूरा नहीं कर पाने पर अफसोस जताया गया लेकिन बजट में कितनी वृद्घि की जानी चाहिए इसको लेकर कोई आंकड़ा नहीं दिया गया है और इसे विकसित देशों के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
अमेरिका के नेतृत्व में विकसित देशों ने 2009 में हुए सीओपी15 में 100 अरब डॉलर के जलवायु वित्त का वादा किया था। इस रकम का इस्तेमाल विकासशील देशों को कम कार्बन उत्सर्जन वाले भविष्य की ओर मोडऩे और उनके जलवायु शमन तथा अनुकूलन योजना के वित्त पोषण के लिए किया जाना था। 2015 के सीओपी21 के दौरान इन देशों ने 100 अरब डॉलर के लक्ष्य को बढ़ाकर 2020 से 2025 कर दिया था।
मसौदा के विषय वस्तु में सम्मेलन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए सभी स्रोतों से धन जुटाने की जरूरत पर बल दिया गया है। इस उद्देश्य में विकासशील देशों के लिए सालाना 100 अरब डॉलर से अधिक धन जुटाने का लक्ष्य शामिल है। इसमें 2020 से 2025 के बीच 100 अरब डॉलर के लक्ष्य को पूरा करने के क्रियान्वयन में पारदर्शिता के महत्त्व को भी रेखांकित किया गया है। भारत पहले ही विकसित विश्व द्वारा संसाधनों के आवंटन पर गहरी निराशा व्यक्त कर चुका है। भारत ने सोमवार को हुए पहले जलवायु वित्त पर उच्च स्तरीय मंत्रालयी संवाद में दिए गए एक वक्तव्य में कहा, ‘हम सीओपी26 में अब तक हुई चर्चाओं पर गहरी निराशा व्यक्त करते हैं। ‘