रुपये में आज आई सबसे बड़ी गिरावट के बावजूद भारत के निर्यात में कुल मिलाकर तत्काल कोई बढ़ोतरी होने की संभावना नहीं है, क्योंकि जिंसों के दाम बढ़ रहे हैं।
आज दिन डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर 76.97 पर पहुंच गया, जो पहले की बंदी से 1.05 प्रतिशत कमजोर हुआ है। सोमवार को कच्चे तेल की कीमत 2008 के बाद के सर्वोच्च स्तर 139 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई है। अमेरिका और यूरोप के सहयोगियों द्वारा रूस के तेल आयात पर प्रतिबंध की संभावना तलाशे जाने और ईरान के कच्चे तेल के वैश्विक बाजार में पहुंचने में देरी के कारण आपूर्ति को लेकर डर पैदा हो गया। रूस द्वारा 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला किए जाने के बाद तेल की कीमत 29.4 प्रतिशत बढ़ी है और रुपया 3.2 प्रतिशत लुढ़का है।
सैद्धांतिक रूप से देखें तो रुपये के कमजोर होने से निर्यातकों को लाभ होता है, लेकिन वैश्विक मांग कमजोर रहने व उतार चढ़ाव होने के कारण निर्यातक रुपये में आई गिरावट से खुश नहीं हैं।
फियो के डीजी और सीईओ अजय सहाय ने कहा कि रुपये में गिरावट से निर्यात को मदद मिली है, लेकिन आम धारणा के विपरीत इसे तुलनात्मक हिसाब और खासकर इस हिसाब से देखे जाने की जरूरत है कि हमारे प्रतिस्पर्धियों की मुद्रा किस तरह व्यवहार कर रही है। उन्होंने कहा, ‘अगर हमारे प्रतिस्पर्धी की मुद्रा तेजी से गिर रही है तो संभवत: हमें इसका लाभ नहीं मिल पाएगा।’ एक निर्यातक ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा कि मुद्रा में उतार-चढ़ाव से ज्यादा अनिश्चितता आती है और निर्यातक को यह पता नहीं होता कि यह कितने समय जारी रहेगा। उन्होंने कहा, ‘निर्यातक मुद्रा में आगे और गिरावट का इंतजार कर सकते हैं। अगर वे हेजिंग कर रहे हैं तो इसका मतलब उन्हें फैसले को लेकर भरोसा नहीं है कि क्या रुपया आगे और गिरेगा या मुद्रा में स्थिरता आएगी। निश्चित रूप से शुद्ध रूप से मुद्रा में गिरावट से मदद मिलती है।’
भारत की ओर से निर्यात किए जाने वाले सामान जैसे रत्न एवं आभूषण, पेट्रोलियम उत्पाद, कार्बनिक रसायन और ऑटोमोबाइल व मशीनरी के सामान उल्लेखनीय रूप से आयात पर निर्भर हैं। आपूर्ति में कमी के कारण जिंसों के दाम बढऩे से निर्यातकों की उत्पादन लागत बढ़ी है और इससे उनके मुनाफे पर असर पड़ रहा है।
सहाय ने कहा, ‘हमारे यहां से आयात पर निर्भर निर्यात बहुत ज्यादा है। कुछ क्षेत्रों जैसे पेट्रोलियम, रत्न एवं आभूषण और इलेक्ट्रॉनिक्स को मुद्रा की चाल से ज्यादा लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि यह क्षेत्र आयात पर निर्भर हैं। लेकिन परंपरागत सेक्टर जैसे कृषि, कालीन, कपड़ा आदि को लाभ मिल सकता है, क्योंकि इनमें आयात का अंशदान मामूली है।’
एक अन्य निर्यातक ने कहा कि परिधान जैसे परंपरागत उत्पादों में आयात का हिस्सा मामूली है और निर्यातक खरीदारों के बाजार से संचालित होते हैं, जहां मुद्रा में गिरावट से खरीदार भारी छूट की मांग करते हैं और इस तरह से उनका मुनाफा घट जाता है।
बैंक आफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि सामान्यतया निर्यातकों को रुपये के गिरावट का लाभ तब मिलता है, जब अन्य मुद्राएं न गिर रही हों, लेकिन इस बार का मामला अलग है। उन्होंने कहा, ‘निर्यातकों का जोखिम यह है कि मुद्रा के उतार चढ़ाव में उन्हें यह पता नहीं होता कि अभी जो दर है, वह भविष्य में रहेगी या नहीं। अगर मुद्रा आगे और गिरती है तो निर्यातक और बुरे हाल में आ सकते हैं। आयातकों के सामने भी यही समस्या होती है।’
शोध फर्म क्वांटइको के अर्थशास्त्री विवेक कुमार के मुताबिक उनका मानना है कि रिजर्व बैंक को हस्तक्षेप करने की जरूरत है।
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से बढ़ी अनिश्चितता के बीच निर्यातकों को पहले ही यूरोप से निर्यात ऑर्डर मिलने कम हो गए हैं। पिछले एक सप्ताह से परिधान व इंजीनियरिंग सेक्टर में यह स्थिति है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर यह स्थिति बनी रहती है तो इससे आने वाले महीनों में कुल मिलाकर निर्यात मांग पर असर पड़ सकता है क्योंकि यूरोप भारत के निर्यात का सबसे बड़ा बाजार है।