प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2070 तक नेट जीरो के लक्ष्य की घोषमा हाल ही में सीओपी26 सम्मेलन में किया है और 2030 तक हरित भारत की घोषणा की है। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत पहले ही वैश्विक कार्बनडाई ऑक्साइड उत्सर्जन कम करने की राह पर है। आवर वल्र्ड इन डेटा के मुताबिक 2109 में कार्बन का उत्सर्जन पिछले साल से 3.7 प्रतिशत बढ़ा है। 2001 में कार्बन उत्सर्जन की वृद्धि दर 3.8 प्रतिशत थी. इसके बाद के वर्षों में वृद्धि 7.5 प्रतिशत पर पहुंच गई।
कार्बन उत्सर्जन की वृद्धि दर 2009 के बाद से गिर रही है। बहरहाल 3.7 प्रतिशत वृद्धि दर के साथ भारत अभी भी अन्य अर्थव्यवस्थाओंं की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। चीन भारत की तुलना में 4 गुना ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है, जिसकी वृद्धि दर 2019 में 0.7 प्रतिशत रही है, वहीं भारत का दोगुना उत्सर्जन करने वाले अमेरिका का उत्सर्जन घटकर 1 प्रतिशत हो गया है। ब्रिक्स देशों में ब्राजील के उत्सर्जन में वृद्धि 2.3 प्रतिशत हैस वहीं दक्षिण अफ्रीका में 0.1 प्रतिशत की गिरावट आई है। भारत से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों में वियतनाम है, जहां उत्सर्जन 9.5 प्रतिशत बढ़ा है।
बहरहाल वियतनाम की वृद्धि दर बहुत कम आधार पर आई है और उसका सालाना उत्सर्जन भारत का दसवां हिस्सा ही है। प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो भारत का प्रदर्शन अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं बेहतर है। भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन महज 1.91 टन है। वहीं चीन का 7,38 और अमेरिका का औसत 16.06 टन है। यहां तक कि ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, रूस और वियतनाम का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन भारत से ज्यादा है।
भारत ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन घटाकर 1 अरब टन करने का वादा किया है। क्लाइमेट ऐक् शन ट्रैकर के मुताबिक मौजूदा नीति के हिसाब से भारत 2030 तक 4 अरब टन कार्बन का उत्सर्जन करेगा।