आंकड़ों के स्थानीयकरण और सीमापार डेटा की आवाजाही को लेकर भले ही भारत ने रुख बदल दिया है, डब्ल्यूटीओ के ई-कॉमर्स पर बहुपक्षीय समझौते में उसके शामिल होने की संभावना नहीं है। शुक्रवार को आम लोगों की राय के लिए रखे गए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) के नए मसौदे में सरकार ने मित्र देशों के साथ आंकड़ों के सीमा पार मुक्त प्रवाह का प्रस्ताव किया है, जो आंकड़ों के स्थानीयकरण के पहले के रुख से अलग है।
भारत अब तक उन 87 देशों के समूह से दूर रहा है, जो दिसंबर 2017 से ही ई-कॉमर्स से व्यापार संबंधी पहलुओं को लेकर बात कर रहे हैं, जिनमें अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, चीन व जापान शामिल हैं। जनवरी 2019 में समूह के सदस्य इस बात पर सहमत हुए थे कि डब्ल्यूटीओ के सदस्यों की अधिकतम हिस्सेदारी के साथ डब्ल्यूटीओ समझौते और मौजूदा ढांचे के मुताबिक एक उच्च मानकयुक्त परिणाम हासिल किया जाएगा।
चर्चा में शामिल विषयों में डिजिटल सीमा शुल्क पर रोक लगाना, स्थानीयकरण की बाधाओं को रोकना, बलपूर्वक प्रोद्योगिकी हस्तांतरण पर रोक लगाना, महत्त्वपूर्ण सोर्स कोड की रक्षा करना, प्रौद्योगिकी विकल्प और प्रमाणीकरण के तरीकों को सुनिश्चित करना, नेटवर्क प्रतिस्पर्धा को सुरक्षित रखना, बाजार से संचालित मानकीकरण, वैश्विक इंटरऑपरेटिबिलिटी, तेज और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करना प्रमुख है।
एक सरकारी अधिकारी ने नाम न देने की शर्त पर कहा, ‘बाजार तक पहुंच के मसले के अलावा ई-कॉमर्स जेएसआई सदस्य देशों के बीच आंकड़ों के मुक्त प्रवाह पर बल दे रहा है। लेकिन डीपीडीपी विधेयक के मुताबिक इस तह के डेटा का प्रवाह मित्रवत देशों की अधिसूचना पर निर्भर होगा। अगर हम जेएसआई (ज्वाइंट स्टेटमेंट इनीशिएटिव) में शामिल होते हैं तो हमें सभी सदस्य देशों को विश्वसनीय साझेदार के रूप में अधिसूचित करना होगा, जिसमे चीन भी शामिल है। भारत ऐसा नहीं चाहता है।’
जेएसआई को व्यापक तौर पर बहुपक्षीय वार्ता के साधन के रूप में देखा जा रहा है, जिसकी पहल डब्ल्यूटीओ के एक समूह द्वारा की गई है। भारत व अन्य विकासशील देशों ने डब्ल्यूटीओ ढांचे में नए व्यापार नियम पेश किए जाने को लेकर चिंता जताई है। ऐसे में जेएसआई समझौते को लेकर सभी सदस्य देशों में आम राय बनने की संभावना नहीं है। भारत अब तक कहता रहा है कि विकसित देशों द्वारा डब्ल्यूटीओ ढांचे से अलग ई-कॉमर्स नियम बनाने की कवायद की जा रही है, जो बहुपक्षीय निकाय की आम सहमति के सिद्धांत की उपेक्षा करता है।