यूरोपियन यूनियन की कार्यकारी शाखा यूरोपीय आयोग ने उच्च जोखिम वाले क्षेत्राधिकार की सूची से मॉरीशस का नाम हटा दिया है, जिसे ईयू की काली सूची के नाम से भी जाना जाता है। इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में फाइनैंंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ की ग्रे सूची से टापू वाला यह देश बाहर निकला था। एफएटीएफ अंतर-सरकारी निकाय है, जो धनशोधन और आंतकी फंडिंग पर लगाम कसता है।
आयोग के विश्लेषण में कहा गया है, उपलब्ध सूचनाओं के मुताबिक बहामाज, बोत्सवाना, घाना, इराक और मॉरीशस की धनशोधन निरोधक व्यवस्था और आतंकी फंडिंग को रोकने वाले नियमोंं में कोई रणनीतिक खामी नहीं है। पिछले हफ्ते आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है, बहामाज, बोत्सवाना, घाना, इराक और मॉरीशस ने धनशोधन निरोधक व आतंकी फंडिंग को रोकने वाली व्यवस्था को मजबूत व प्रभावी बनाया है और एफएटीएफ की तरफ से चिन्हित खामियों को दूर किया है। साथ ही आयोग की तरफ से सामने रखी गई चिंता को भी दूर किया है।
7 मई, 2020 को यूरोपीय आयोग ने तीसरी दुनिया के उन देशों को लेकर नियम अपनाया था, जहां धनशोधन निरोधक व आतंकी फंडिंग को रोकने वाली व्यवस्था में रणनीतिक खामियां थीं, जिससे ईयू की वित्तीय व्यवस्था को खतरा था। इसके मुताबिक आयोग ने मॉरीशस को भी 11 अन्य देशों के साथ संशोधित सूची में शामिल कर लिया था।
विशेषज्ञों ने कहा, ईयू की यह व्यवस्था 1 अक्टूबर 2020 से लागू हुई, हालांकि कोविड की पृष्ठभूमि में इसके आर्थिक असर का अनुमान लगाना मुश्किल रहा है। वैश्विक स्तर पर एफएटीएफ और ईयू की सूची ने मॉरीशस को लेकर नकारात्मक अवधारणा बना दी, खास तौर से बड़े निवेशकोंं मसलन पेंशन, एन्डॉमेंट और सॉवरिन वेल्थ फंडों के बीच।
सैन, मॉरीशस के निदेशक व बिजनेस डेवलपमेंट प्रमुख वी. गोइंडेन ने कहा, उच्च जोखिम वाली तीसरी दुनिया के देशों की ईयू सूची में मॉरीशस को शामिल किए जाने से मॉरीशस इंटरनैशनल फाइनैंंशियल सेंटर का इस्तेमाल करने वाले कुछ संस्थागत निवेशकों के बीच चिंता देखने को मिली थी, इनमें से ज्यादातर का ईयू के साथ जुड़ाव था। इस सूची से मॉरीशस को बाहर किया जाना साबित करता है कि हमने वैश्विक मानकों के मुताबिक नियमों में बदलाव किया है।