अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया अभी भी भारतीय छात्रों के पसंदीदा चार देश हैं, वहीं जर्मनी, इटली, आयरलैंड, तुर्की, रूस और चीन भी तेजी से छात्र-छात्राओं के पसंदीदा देशों के रूप में अपनी जगह बना रहे हैं। विभिन्न देशों के बीच विभिन्न मुद्राओं और भुगतान की सेवा प्रदान करने वाली प्रमुख कंपनी वेस्टर्न यूनियन की ओर से कराये गये अध्ययन ‘एजुुकेशन ओवरसीज- एन इवॉल्विंग जर्नी’ के मुताबिक करीब 22 फीसदी (यानी हर पांचवां) छात्र अब आयरलैंड, तुर्की और स्पेन जैसे नये और अपारंपरिक शैक्षणिक केंद्र को वरीयता दे रहा है।
अध्ययन में यह पता लगाने की कोशिश की गई भारतीय परिवार अपने बच्चों की अंतरराष्ट्रीय शिक्षा और वैश्विक भविष्य को लेकर किस तरह की सामूहिक यात्रा से गुजरते हैं। अध्ययन में जो अन्य अहम निष्कर्ष निकले उनके मुताबिक विदेश में पढऩे की चाहत रखने वाले 52 फीसदी विद्यार्थी पारंपरिक पाठ्यक्रमों के बजाय डेटा एनालिटिक्स जैसी विशेषज्ञता की उपलब्धता, कृत्रिम मेधा, डिजिटल मार्केटिंग, साइबर सुरक्षा, एथिकल हैकिंग और इकोटेक्रॉलजी जैसे विषयों को तरजीह दे रहे हैं। वे उन विषयों को तवज्जो दे रहे हैं जो धीरे-धीरे अपना महत्त्व बना रहे हैं। यही वजह है कि छात्र पारंपरिक विश्वविद्यालयों से परे देख रहे हैं क्योंकि वहां अक्सर ये विषय नहीं मिलते।
ये निष्कर्ष बताते हैं कि विदेशों में शिक्षा को लेकर छात्रों और उनके मातापिता के नजरिये में काफी बदलाव आया है। विदेश मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक महामारी के बावजूद वर्ष 2021 के पहले दो महीनों में 70,000 परिवारों के बच्चे पढऩे के लिए विदेश गए। आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2021 तक 10.9 लाख से अधिक भारतीय बच्चे दुनिया के 85 देशों में अध्ययनरत थे। चीन में 29,600 छात्र जबकि जर्मनी और फ्रांस में मिलाकर 10,000 भारतीय छात्र पढ़ रहे थे।
इस सर्वेक्षण में शामिल बच्चों में करीब 45 प्रतिशत ने कहा कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन करना इसलिए चाह रहे हैं कि उनकी प्राथमिकता आत्मनिर्भरता और अपनी शर्तों पर जीवन जीना है। इतना ही नहीं महामारी के कारण हाइब्रिड अध्ययन अब मुख्यधारा में आ गया है और 46 फीसदी बच्चे इस मॉडल को वरीयता दे रहे हैं।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि करीब 43 फीसदी बच्चे बेहतर रोजगार और बेहतर शिक्षा के बजाय घूमने और नई संस्कृति को जानने को वरीयता दे रहे हैं।
वेस्टर्न यूनियन की पश्चिम एशिया और एशिया प्रशांत प्रमुख सोहिनी राजोला के मुताबिक चूंकि उनकी फर्म 200 से अधिक देशों में मौजूद है इसलिए छात्र-छात्राओं को इसका वैश्विक वित्तीय नेटवर्क सहज और भरोसेमंद लगता है। वह कहती हैं कि चूंकि बच्चे शिक्षा के लिए नए क्षेत्र तलाश रहे हैं इसलिए हम यह सुनिश्चित कर सककते हैं कि उन्हें हर समय वित्तीय समर्थन मिलता रहे।
वेस्टर्न यूनियन ने यह भी पाया कि भारतीयों द्वारा विदेश भेजे जाने वाली धनराशि में अक्टूबर 2020 के बाद 34 फीसदी का इजाफा हुआ है क्योंकि बच्चे पढऩे के लिए विदेश जाने लगे हैं। वित्त वर्ष 2020-21 में भारत से जो धनराशि बाहर गई उसमें शिक्षा संबंधी धनराशि 30 फीसदी थी। सालाना आधार पर देखा जाए तो शिक्षा संबंधी धन प्रेषण 64 फीसदी बढ़ा। अप्रैल से जून 2021 के बीच 1.2 अरब डॉलर की राशि विदेश भेजी गई जो जनवरी-मार्च 2021 की तुलना में 5.3 फीसदी अधिक थी।
चुनौतियों की बात करें तो 64 प्रतिशत विद्यार्थियों के लिए अभी भी अर्हता परीक्षा बड़ी चुनौती है। ऐसे में वे उन विश्वविद्यालयों और देशों का रुख करते हैं जहां प्रवेश परीक्षा या अंग्रेजी ज्ञान की परीक्षा नहीं होती। दूसरी ओर मौजूदा परिदृश्य में मातापिता शिक्षा ऋण को लेकर चिंतित दिखे। छात्रों और मातापिता दोनों की चिंताओं में वित्तीय नियोजन सबसे प्रमुख रहा।
आधे से अधिक यानी करीब 54 फीसदी बच्चों ने विदेश में अध्ययन के मामले में वित्तीय चिंताओं को शीर्ष वरीयता दी। यही वजह है कि 47 फीसदी बच्चे कम अवधि के पाठ्यक्रम चुन रहे हैं क्योंकि विदेशों में पढ़ाई काफी महंगी है।
इस बीच सर्वेक्षण में शामिल चार में से तीन बच्चों ने पाठ्यक्रम चुनते वक्त छात्रवृत्ति प्राप्त करने की इच्छा जताई क्योंकि विदेशों में शिक्षण शुल्क भी काफी अधिक है।