रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को कहा कि शांघाई सहयोग संगठन (एससीओ) क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के लिए विश्वास का माहौल, गैर-आक्रामकता, अंतरराष्ट्रीय नियमों के प्रति सम्मान तथा मतभेदों का शांतिपूर्ण समाधान जरूरी है। उनके इस बयान को पूर्वी लद्दाख में भारत के साथ सीमा विवाद में संलिप्त चीन को परोक्ष संदेश के तौर पर देखा जा रहा है। रूस की राजधानी में शांघाई सहयोग संगठन के एक मंत्री स्तरीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध का भी उल्लेख किया और कहा कि उसकी स्मृतियां दुनिया को सबक देती हैं कि एक देश की दूसरे देश पर ‘आक्रमण की अज्ञानता’ सभी के लिए विनाश लाती हैं। भारत और चीन दोनों ही देश आठ सदस्यीय क्षेत्रीय समूह का हिस्सा हैं जो मुख्य रूप से सुरक्षा और रक्षा से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देता है।
सिंह ने कहा, ‘एससीओ के सदस्य देशों, जहां दुनिया की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है, के शांतिपूर्ण, स्थिर और सुरक्षित क्षेत्र के लिए विश्वास और सहयोग, गैर-आक्रामकता, अंतरराष्ट्रीय नियम-कायदों के लिए सम्मान, एक दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशीलता तथा मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान की जरूरत है।’
उन्होंने ये बयान चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेइ फेंगहे की मौजूदगी में दिए। पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में कई जगहों पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच चार महीने से गतिरोध की स्थिति है। पांच दिन पहले चीन ने पैंगोंग झील के दक्षिणी तटीय क्षेत्र में भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने की असफल कोशिश की थी जिसके बाद तनाव और बढ़ गया। सिंह ने कहा, ‘इस साल द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति और संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ है। संयुक्त राष्ट्र एक शांतिपूर्ण दुनिया को आधार प्रदान करता है जहां अंतरराष्ट्रीय कानूनों तथा देशों की संप्रभुता का सम्मान किया जाता है एवं देश दूसरे देशों पर एकपक्षीय तरीके से आक्रमण करने से बचते हैं।’ रक्षा मंत्री ने आतंकवाद और उग्रवाद के खतरों की भी बात की और इन चुनौतियों से निपटने के लिए संस्थागत क्षमता विकसित करने की वकालत की। उन्होंने कहा कि भारत हर तरह के आतंकवाद की और इसकी हिमायत करने वालों की स्पष्ट तरीके से निंदा करता है। उन्होंने कहा कि भारत एससीओ के क्षेत्रीय आतंकवाद निरोधक ढांचे (आरएटीएस) के काम को अहमियत देता है। उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक सुरक्षा ढांचे के विकास के लिए प्रतिबद्ध है जो खुला, पारदर्शी, समावेशी, नियम आधारित तथा अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दायरे में काम करने वाला होगा।’
सिंह ने फारस की खाड़ी क्षेत्र के हालात पर भी गहन चिंता जताई। उन्होंने कहा, ‘भारत के खाड़ी के सभी देशों के साथ सभ्यता तथा संस्कृति के महत्त्वपूर्ण हित और संपर्क हैं। हम क्षेत्र के देशों, जो भारत के मित्र हैं, का आह्वान करते हैं कि आपसी सम्मान, संप्रभुता और एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के आधार पर संवाद के माध्यम से मतभेद सुलझाएं।’ अफगानिस्तान के हालात का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा कि देश में सुरक्षा स्थिति चिंता का विषय बनी हुई है। उन्होंने कहा, ‘भारत अफगान-नीत, अफगानिस्तान के स्वामित्व वाली तथा अफगान नियंत्रित समावेशी शांति प्रक्रिया के लिए अफगानिस्तान की जनता और सरकार के प्रयासों का समर्थन करता रहेगा।’ फरवरी में अमेरिका के तालिबान के साथ शांति समझौता करने के बाद से भारत, अफगानिस्तान के राजनीतिक हालात पर लगातार नजर रख रहा है। इस समझौते के तहत अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी होनी है। सिंह ने एससीओ के अफगानिस्तान संपर्क समूह की प्रशंसा करते हुए कहा कि सदस्य देशों के बीच जानकारी का आदान-प्रदान करने के लिए यह उपयोगी है। एससीओ के आठ सदस्य देशों में -भारत, कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान तथा उज्बेकिस्तान हैं।