भारत अगले 5 महीने में कम से कम 3 जल्द परिणाम देने वाले और पूर्ण कारोबारी समझौते पर हस्ताक्षर करने की ओर बढ़ रहा है, वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि इस दिशा में सावधानीपूर्वक कदम रखे जाने की जरूरत है।
भारत इस समय मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए ब्रिटेन, यूरोपीय संघ (ईयू), संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ऑस्ट्रेलिया के साथ बात कर रहा है। ज्यादातर मामलों में भारत की कवायद है कि पहले जल्द परिणाम देने वाले समझौते या मिनी ट्रेड सौदे पर हस्ताक्षर हो जाए, जो समय के साथ होने वाले एफटीए का शुरुआती कदम होगा।
नामों का खुलासा किए बगैर वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले सप्ताह यह भी कहा था कि दो और देशों और देशों के समूह ने भारत के साथ एफटीए वार्ता में रुचि दिखाई है, यह संकेत है कि दुनिया इस समय भारत के साथ व्यापार की इच्छुक है।
उद्योग और सरकार के अधिकारियों ने कहा कि जल्द लाभ देने वाले समझौते पर हस्ताक्षर अच्छी रणनीति हो सकती है क्योंकि यह दोनों देशों की ओर से प्रतिबद्धता होगी और साथ ही छोटे या सीमित स्तर पर कारोबार शुरू हो जाएगा। वहीं कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा स्थिति में इसका लक्ष्य बहुत महत्त्वाकांक्षी है।
व्यापार, नियमन व प्रशासन पर वैश्विक पॉलिसी थिंक टैंक कट्स इंटरनैशनल के महासचिव प्रदीप मेहता ने कहा, ‘हमारे पास इस समय स्टाफ की कमी है। मार्च तक के इस तरह के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के मामले में ईएचए (जल्द परिणाम देने वाले समझौते) पर हस्ताक्षर में हम कोई गलती नहीं कर सकते।’
इक्रियर की ट्रेड पॉलिसी और डब्ल्यूटीओ के शोध कार्यक्रम में चेयर प्रोफेसर अनवारुल होदा ने कहा कि भारत को एफटीए, खासकर ईएचए के संबंध में पहले के अनुभवों को ध्यान में रखना होगा, क्योंकि उनका विपरीत असर पड़ा था।
होदा ने कहा, ‘ईएचए का मसौदा सावधानी से तैयार किया जाना चाहिए। बहुत पहले हमने थाईलैंड के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर किए थे, उसमें भी ईएचए था। इसके परिणाम सिर्फ विपरीत शुल्क ढांचे के रूप में आया और भारत को बहुत नुकसान हुआ। इसके पहले के अनुभवों को ध्यान में रखना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि विपरीत शुल्क ढांचे के माध्यम से कोई बुरा असर न हो।’ अब तक भारत ने सिर्फ थाईलैंड और सिंगापुर के साथ जल्द लाभ देने वाला समझौता किया है।
होदा ने यह भी कहा कि जहां तक द्विपक्षीय समझौते का संबंध है, यह व्यापक प्रकृति का होना चाहिए, न कि अपवादों से भरा हुआ हो। भारत ने पहले जिन व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किए, उसमें तमाम अपवाद भरे हुए थे और कृषि जैसे तमाम क्षेत्रों को इससे बाहर रखा गया था। इसके अलावा एफटीए के मामले में भारत के सामने बड़ी चुनौती ह रही है कि भारत को इससे ज्यादा फायदा नहीं हुआ और उन देशों के साथ व्यापार घाटा भी बढ़ गया।