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मनोनीत अमेरिकी राजदूत का एजेंडा

Last Updated- December 11, 2022 | 10:49 PM IST

भारत और अमेरिका के संबंधों को लेकर काफी कुछ चल रहा है। दोनों देशों ने कई बार अपनी रणनीतिक साझेदारी के महत्त्व को रेखांकित किया है और निश्चित तौर पर महामारी के बाद आर्थिक सुधार प्रक्रिया को लेकर परस्पर निर्भरता बढ़ेगी। लेकिन इस साझेदारी से कई चुनौतियां जुड़ी हुई हैं। ये चुनौतियां भूराजनीति के साथ-साथ विशेष घरेलू मुद्दों से असहमति या विरोध की वजह से बढ़ती हैं। दोनों देशों के बीच भारत-अमेरिका मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की बात है। दोनों देश इस ‘राजनीतिक समझौते’ पर पहुंच गए हैं कि भारत ओईसीडी देशों के अनुरूप इक्विलाइजेशन लेवी (बड़ी तकनीकी कंपनियों की भारतीय आमदनी पर 2 प्रतिशत कर) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करेगा और अमेरिका पारस्परिक दंडात्मक कर नहीं लगाएगा। (पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 25 प्रतिशत कर लगाने की धमकी दी थी।) राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोकतंत्र पर आधारित शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया, भले ही उनके दूसरे साथी भारत के लोकतंत्र की स्थिति के बारे में जो कुछ भी सोचते हों।
लेकिन लॉस एंजलिस के मेयर एरिक गार्सेटी (50 वर्षीय) को भी सीनेट की विदेश संबंध समिति के सवालों का सामना करना पड़ा जब उन्होंने भारत में राजदूत के रूप में अपने नामांकन के लिए बहस में हिस्सा लिया। बहस के दौरान गार्सेटी ने इस बात को रेखांकित किया कि मानवाधिकार भारत में एक संभावित संवेदनशील मुद्दा है। गार्सेटी ने समिति को बताया कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के लिए उन्होंने अमेरिका की तरफ  से जिस एजेंडे के बारे में सोचा है, उसमें चीन की बढ़ती शक्ति और प्रभाव को देखते हुए उस पर दबाव बनाने के लिए भारत को अमेरिका का महत्त्वपूर्ण साझेदार बनाया जा सकता है। यह अलग बात है कि भारत को ये योजनाएं रास आएंगी या नहीं। हालांकि, उन्हें अपने ही देश में सांसदों के बीच चुनौतियों से दो-चार होना पड़ेगा जिन्हें गंभीर तरीके से यह समझाने की जरूरत है कि भारत अपने धार्मिक अल्पसंख्यकों को कोई नुकसान नहीं पहुंचने देगा।
गार्सेटी एक ऐसी पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसका इस बात को लेकर बेहद मजबूत और तयशुदा विचार है कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार होता है। इस पद के लिए उनकी पुष्टि होने के वक्त उन्होंने अपनी अकादमिक रिकॉर्ड (मानवाधिकार विषय में स्नातकोत्तर) को खासतौर पर दिखाया और कहा कि भारत के साथ काम करते हुए उनका मुख्य जोर मानवाधिकार पर होगा। लॉस एंजलिस के मेयर ने समिति से कहा, ‘मानवाधिकार, लोकतंत्र की रक्षा हमारी विदेश नीति का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है लेकिन विशेष रूप से इसका उत्तर देने के लिए मैं पूरी सक्रियता से या पूरी विनम्रता के साथ इन मुद्दों को उठाऊंगा।’
हालांकि अमेरिका से मानवाधिकारों पर मुफ्त सलाह लेने का भारत का कोई इरादा नहीं है, ऐसे में गार्सेटी के लिए यह कहना आसान भले हो लेकिन करना काफी मुश्किल होगा। यह एक अलग वास्तविकता भी है। भारत में धर्म से जुड़े प्यू सर्वेक्षण (इस साल अगस्त में जारी) में यह बात सामने आई कि अल्पसंख्यकों में हिंदुत्व बलों के उभार से चिंता बढ़ी है लेकिन वे खुद को संस्थागत भेदभाव के पीडि़त के रूप में नहीं देखते हैं। इसके अलावा सर्वे के मुताबिक हिंदुत्व के उभार का विरोध बहुसंख्यकों की तरफ  से भी है। ऐसे में गार्सेटी को अपने राजनीतिक कौशल का इस्तेमाल करते हुए अपने देश में लोगों को यह आश्वस्त करना होगा कि भारत में हर सड़क पर किसी पहलू खान को नहीं मारा जा रहा है।
राजनीति गार्सेटी के लिए केंद्र बिंदु है। वह राष्ट्रपति बाइडन के दोस्त भी है और उन्हें भारत के लिए चुनने का मतलब ही है कि राष्ट्रपति एक वफादार को पुरस्कृत कर रहे हैं। वह लॉस एंजलिस से हैं और उप राष्ट्रपति पद के लिए कमला हैरिस के प्रतिद्वंद्वी भी थे। हालांकि उन्होंने खुद को उस दौड़ से बाहर खींच लिया और उन्होंने इसके बजाय उस समिति में काम करना चुना जो बाइडन के उप राष्ट्रपति पद के दावेदार के लिए काम कर रही थी। हालांकि इस वक्त यह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है। लेकिन हैरिस अगर बड़ी चीजों पर अपना ध्यान केंद्रित करती हैं तब गार्सेटी भी भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण शख्सियत हो सकते हैं।
मेयर के रूप में उनका मनोवांछित काम (उनके कार्यकाल के दौरान बेघर लोगों की तादाद और अपराध रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ गया) काफी हद तक अधूरा रहा है ऐसा लगता है कि उन्होंने नए सिरे से एक शुरुआत करने के लिए सारी चीजें पीछे छोड़ दी हैं। व्हाइट हाउस ने उनका परिचय देते हुए बताया है कि मेयर के रूप में उन्होंने पश्चिमी गोलाद्र्ध के सबसे व्यस्ततम कंटेनर बंदरगाह, देश की सबसे बड़ी नगरपालिका और दुनिया के सबसे व्यस्ततम हवाई अड्डों में से एक की देखरेख की।
भूराजनीति उनके लिए एक चुनौती नहीं होनी चाहिए। उन्होंने एक दशक से अधिक समय तक अमेरिकी सेना (संयुक्त राज्य अमेरिका के नौसेना रिजर्व में एक खुफिया अधिकारी) की सेवा की है ऐसे में उन्हें उपमहाद्वीप में रणनीतिक और सैन्य मुद्दों को समझने में कोई मदद की जरूरत नहीं होगी। वह प्रशांत बेड़े में थे जो भारत को कवर करता है। उनकी उत्कृष्ट अकादमिक साख है और वह ऑक्सफर्ड और लंदन स्कूल ऑफ  इकनॉमिक्स में रोड्स स्कॉलर रहे हैं और उन्होंने कोलंबिया से एमए किया है। उन्होंने कूटनीति भी पढ़ाई है। मुमकिन है कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत को पश्चिमी देशों की बात मानने के लिए तैयार करने की उनकी उम्मीदों को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। जब उनका मनोनयन किया गया तब व्हाइट हाउस ने द्विदलीय ‘जलवायु मेयर’ के नेटवर्क के सह-संस्थापक के रूप में और पेरिस जलवायु समझौते को अपनाने के लिए 400 से अधिक अमेरिकी मेयर का नेतृत्व करने में गार्सेटी की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने सांसदों को मेयर के रूप में अपने अनुभवों के बारे में बताया कि लॉस एंजलिस 2035 तक 100 फीसदी अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल करेगा। यह देखते हुए कि भारत कोयले के इस्तेमाल को पूरी तरह से खत्म करने के बजाय उसमें कमी लाना चाहता है ऐसे में गार्सेटी ने अमेरिका के सांसदों से ‘हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए ऐसे साहसिक दृष्टिकोण’ अपनाने का जो वादा किया है उसमें दिक्कत आ सकती है।

First Published - December 16, 2021 | 11:23 PM IST

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